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सहरसा में हर्षोल्लास मनाया गया जुड़ शीतल व बसिया त्योहार

सहरसा, 15 अप्रैल (हि.स.)।सहरसा जिले में मैथिली नववर्ष की शुरुआत के साथ जुड़-शीतल, सिरुवा,बाइस पाबनि तिहार यानी पहला वैशाख हर्षोल्लास के साथ गुरुवार को मनाया गया। इस पर्व में घर के बुजुर्गों द्वारा सभी सदस्यो के सिर पर बासी पानी डाल जुरायत रहूं का आशीर्वाद दिया जाता है। वहीं चैत का बनाया बासी भोजन किया जाता है। इस दिन सभी पेड़ पौधे में भी पानी डालने की परम्परा आज भी कायम है। हालांकि पहले एक दूसरे पर कीचड़-मिट्टी डाल यह पर्व मनाया जाता था। लेकिन अब लोग परहेज कर रहें हैं। प्रभु नारायण लाल दास ने इस पर्व का अध्यात्मिक भाव व्यक्त करते हुए कहा कि जुड़-शीतल संस्कृत कोष में जड़ का एक अर्थ शीतल भी होता है। जड़ से तद्भव जुड़ बना। शीतल अर्थ का भी कालांतर में भावार्थ परिवर्तन हुआ। मानक हिंदी कोष में जुड़ाना का अर्थ है-ठंडा होना, शांत होना, तृप्त होना, ठंडा करना, शीतल करना,शांत करना,संतुष्ट या तृप्त करना है। कल्याणी कोष (मैथिली) में जुड़ाई का अर्थ है (जुड़) शीतलता,(लाक्ष.) प्रसन्नता,जुड़ाएब का अर्थ है-शीतल होएब, सुख पाएब। उन्होंने सिरुवा को परिभाषित करते हुए कहा कि संस्कृत का शिर तद्भव में सिर हो गया। उन्होंने बताया कि संस्कृत कोष में जल के 27 पर्यायवाची में वाः और वारि भी हैं। पूर्व में सिरुवा शिरवा(शिर-वा/जल) था। यह अधिकरण तत्पुरुष का समस्त पद जैसे-आत्मविश्वास,अश्वारोही। सिर पर जल। जल शीतलता का प्रतीक है। देह और मन की स्वस्थावस्था में शिर शीतल होता है,अन्यथा गर्म। इसे ठंडा रखना अनिवार्य है। इस दिन माता-पिता,बड़े-बुजुर्ग हमारे शिर पर जल देकर "सदिखन जुरायल रहू" कहते हुए इसे ठंडा,शांत और तृप्त करते हैं। उनका जलपूर्ण हस्त वरदहस्त ही तो है। आह,वह क्षण कितना रोमांचकारी होता है। जल के अमृतम और जीवनम् भी पर्यायवाची हैं। इस प्रकार वे हमें अमृत और जीवन प्रदान करते हैं। वे दूर तक रास्ते को,पौधों और वृक्षों को, अन्य निर्जीव वस्तुवों को भी जल से शांत, तृप्त और प्रसन्न करते हैं। उन सबकी मंगलकामना करते हैं। वाह, भारतीय संस्कृति की क्या ही विशाल, विलक्षण दार्शनिक दृष्टि है। बाइस पावैन/पहला वैशाख बाइस-बासी(रात का बना) हमारी काल गणना में चांद्र मास और सौर मास दोनों हैं। हमारे कुछ त्योहार चांद्र मास और कुछ सौर मास के अनुसार हुआ करते हैं। प्रधानता सौर मास की ही होती है। उन्होंने बताया कि नव संवत्सर इसी से प्रारंभ और अंत होता है। वर्ष के त्योहारों पर एक पुरानी कहावत है"फगुआ उसारे सिरुवा पसारे"। तात्पर्य यह कि सौर वर्ष का अंतिम त्योहार फगुआ है और सिरुवा से ही त्योहारों का क्रम प्रारम्भ होता है। सौर वर्ष की अंतिम रात्रि (चैत्र मास की अंतिम रात्रि) में बना भोजन अगले दिन अर्थात नव संवत्सर के पहले दिन अर्थात पहला वैशाख को ग्रहण करते हैं,जो बासी हुआ रहता है। अतः इसे बाइस पावैन भी और पहला वैशाख भी कहते हैं। "सर्वे भवन्तु सुखिनः.सर्वे सन्तु निरामयाः सर्वे भद्राणी मां कश्चित् दुखभाग् भवेत्" ही इस त्योहार का मूल संदेश है। हिन्दुस्थान समाचार/अजय

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