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दिनकर जी की दलान कह रही है 'समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याघ्र'

बेगूसराय, 05 फरवरी (हि.स.)। हिन्दी पट्टी में कोई भी साहित्यिक मंच हो या बिहार आने वाले बड़े राजनेताओं का मंच, वहां किसी ना किसी रूप में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की कालजयी रचना रश्मिरथी, उर्वशी और कुरुक्षेत्र की चर्चा हो ही जाती है। रश्मिरथी के सर्ग का बड़े-बड़े नेता, अभिनेता और साहित्यकार गर्व से पाठ करते हैं लेकिन जिस दलान (दरवाजा) पर बैठकर दिनकर जी ने इन कालजयी साहित्य की रचना की थी, वह किसी भागीरथ का इंतजार कर रहा है जो उसका उद्धार कर सके। दलान कह रहा है 'लोहे के पेड़ हरे होंगे तूं गान प्रेम का गाता चल-नम होगी यह मिट्टी जरूर आंसू के कण बरसाता चल।' दलान की दुर्दशा देखकर शायद दिनकर जी की आत्मा भी कह रही होगी 'समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याघ्र, जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनके भी अपराध।' राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जयंती एवं पुण्यतिथि पर बड़े-बड़े लोग सिमरिया आते हैं, प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित कर उनके व्यक्तित्व, कृतित्व पर चर्चा करते हैं लेकिन घर के बगल में बने दलान पर किसी का ध्यान नहीं जाता है। जिस दलान पर बैठकर उर्वशी, कुरुक्षेत्र जैसी कालजयी रचना को गढ़ा गया था। एक समय था जब दिनकर जी गांव आते थे तो इसी दलान पर बैठकी लगती थी। बैठकी में जम्मू कश्मीर के रहने वाले रेलवे के चीफ इंजीनियर मिस्टर कॉल से लेकर दक्षिण भारत के रहने वाले सिमरिया ब्रिज के चीफ पद्मनाभन तक शामिल होते थे। बैठकी में साहित्य और समाज की बातें होती थी, साहित्य की रचना को धार दिया जाता था लेकिन उदासीनता के अभाव में वह दो कमरे का दलान आज धराशाई हो रहा है। सांसद डॉ. भोला सिंह ने गांव को गोद लिया, बरौनी रिफाइनरी ने पुस्तकालय परिसर में भव्य सभागार आदि बनवा दिया लेकिन, दलान की ओर ध्यान नहीं देना कहीं ना कहीं इतिहास की उपेक्षा है। इस गांव को दो बार आदर्श ग्राम तथा एक बार निर्मल ग्राम घोषित किया गया। 2014 में तत्कालीन सांसद डॉ. भोला सिंह ने सांसद आदर्श ग्रााम योजना के तहत सिमरिया को गोद लिया तो लगा था कि गांव की किस्मत बदल जाएगी। उन्होंने प्रयास भी किया लेकिन, फंड नहीं आने तथा उनके निधन के बाद यह योजना अधर में लटक गई। दिनकर जन्मस्थली के विकास की कमान थामने वाले दिनेश सिंह के प्रयास से 15 जनवरी 2003 को जब बरौनी रिफाइनरी ने जन्मस्थली को भव्य रूप देने के लिए शिलान्यास किया तो उस योजना में इस दलान को भी भव्य रुप दिया जाना था लेकिन, शिलान्यास के अगले ही दिन दिनेश सिंह की हत्या हो जाने के बाद दिनकर के दलान को लोगों ने विस्मृत कर दिया, योजना भी उठकर पुस्तकालय पर चली गई। हलांकि, दिनकर जी के पुत्र केदारनाथ सिंह ने अपने खर्च से जन्मगृह को भव्य रुप दिया है। ग्रामीणों कहते हैं कि इस ऐतिहासिक दलान के संरक्षण की ओर नहीं जाना दुर्भाग्य की बात है। फिलहाल इस मामले पर कोई भी जिम्मेदार व्यक्ति बोलने को तैयार नहीं हैं और धराशाई हो रहे दलान को तलाश है किसी भागीरथ जैसे महापुरुष की। हिन्दुस्थान समाचार/सुरेन्द्र/चंदा-hindusthansamachar.in

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