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रामनवमी पर पटजिरवा माई के दर्शन को ले उमड़ी भीड़

बेतिया, 21 अप्रैल (हि.स.)। जिले के शक्ति पीठ पटजिरवा माई की पूजा अर्चना करने के लिए बुधवार को भक्तों की भीड़ पहले से ज्यादा दिखी। चैत्र नवरात्रि के नौवीं को भक्तों ने माता की पूजा अर्चना की। माता के दरबार मे मुरादें पूरी हो जाने पर नारियल और चुनरी चढ़ाकर माता की पूजा की गई ।वैसे पहले की तरह रामनवमी पर जो मेला लगता था,उस तरह का दृश्य नही था । परंतु तब भी रामनवमी के मेले मे लोगो ने खरीदारी भी की। लोग पहले यहां आकर पूजा अर्चना व माता का दर्शन कर रहे थे उसके बाद मेले का भी आनंद लोगो ने लिया । पुजारी लालबाबू मिश्र व ब्रजेश शुक्ल ने बताया कि पुलिस भी लोगो को सोशल डिस्टेंसिग का भी ख्याल रखने की अपील कर रही थी। परंतु भीड़ के कारण लोग इसका अनुपालन नही कर पा रहे थे। आस्था के आगे सब गाइडलाइन की अनदेखी हो रही थी । सबसे अधिक महिला भक्तों की भीड़ रही । जो नवरात्र किए थे । उन लोगों ने हवन भी किया। रामनवमी के दिन वैदिक मंत्रोच्चारण से पूरा क्षेत्र भक्ति मय हो गया था। कुछ समानो की दुकाने भी लगी थी। मगर आज हुइ बून्दाबांदी से भी दुकानदारों को थोडी परेशानी हुई । उन्होंने कहा कि माता के दरबार से कोई नही लौटता खाली हाथ शक्ति पीठ पटजिरवा माई स्थान पर आने वाले हर भक्तों की मुरादें बिन मांगे पूरी हो जाती है । जिसका ही कारण है कि लोग रामनवमी के दिन दूर दराज से भी आते है । पौराणीक मान्यताओं के मुताबिक माता शती का पैर यही गिरा था,जिससे यह पहले पादजिरवा था । कालांतर में लोग पटजिरवा से लोग जानने लगे। वैसे यह भी कहा जाता है कि माता सीता मिथिला से जब अयोध्या के लिए डोली पर विदा हुई तो यही रास्ता से डोली चली। गंडक घाट मिथिला का सीमांत है। जिससे उनकी डोली यही रुकी । डोली का पट खुला । जिससे लोग पटजिरवा कहने लगे । माता सीता ने यहां पूजा अर्चना की। साथ ही नर और माता पीपल के पेड भी लगायी। जो आज भी मौजूद है । माता पटजिरवा की महत्ता को लेकर आज भी कई तरह की बाते प्रचलित है । यही नही उफनायी गंडक 2003 मे माता के स्थान से महज सौ फीट दूर आकर यू टर्न ले ली थी । तब लोग कहने लगे कि गंगा मईया माता की पैर धोने आयी थी । इन सभी बातो को लेकर यह स्थान अब धाम का रूप लेते जा रहा है। हिन्दुस्थान समाचार/अमानुल हक

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