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'बुरा और भला' के माध्यम से बाल कलाकारों ने दिया नैतिक सामाजिक संदेश

बेगूसराय, 21 फरवरी (हि.स.)। रंगमंच की नई पौधे तैयार करने के लिए बाल रंगमंच आर्ट एंड कल्चरल सोसायटी की ओर से आयोजित 20 दिवसीय प्रस्तुति परक नाटक कार्यशाला का समापन शनिवार की रात विजयदान देथा की कहानी पर आधारित बुरा और भला की प्रस्तुति के साथ हो गया। कार्यशाला में प्रशिक्षित हुए नए बाल कलाकारों ने मध्य विद्यालय बीहट में प्रस्तुत इस नाटक की परिकल्पना एवं निर्देशन किया श्याम कुमार सहनी ने जबकि संयोजक और सहायक निर्देशक थे रवि वर्मा। विजयदान देथा की कथा 'भला और बुरा' वस्तुतः दो मित्र भले और बुरे की थी। जो अपने नाम के अनुरूप ही अपने चरित्र निर्धारण करते हैं। बुरे की दुर्बुधि हमेशा भले को नीचा दिखाना चाहती है, बुरे की बातों में आकर भला परदेस की यात्रा पर निकलता है, जहां रास्ते में ही अवसर पाकर बुरा भले के आँखों में आक का दूध डालकर उसकी सारी सम्पति ले उसे कुएं में गिरा कर भाग जाता है। कुएं में ही रहने वाले दो भूतों के द्वारा भला बाहर निकाला जाता है। इसके बाद भला फिर बुरे से मिलता है जो अब उस नगर का दीवान बन चूका है। उस राज्य की राजकुमारी पर भूतों का साया है, जिसे भला ठीक कर सकता है। कुछ समय बाद राज्य पर फिर विपत्ति के बादल छाते हैं, जिससे दूसरी बार भी भला ही निजात दिलाता है। नगर का राजा प्रसन्न होकर भले का ब्याह राजकुमारी से करवाता है तो बुरा एक बार फिर पराजित होता है लेकिन दुर्बुद्धि आगे भी साजिश रचती है। नाटक की प्रस्तुति में विभिन्न संस्कृति मिलकर एक हुई थी। विजयदान देथा की राजस्थानी कहानी में तमिलनाडू के पारम्परिक रंग शैली तेरुकुठू के साथ मिथिला की बोली और भाषा का भी बखूबी उपयोग किया गया। बच्चे इस रंगभाषा में घुलमिल गए और सहजता के साथ अपनी प्रस्तुति 'बुरा और भला' के माध्यम से नैतिक सामाजिक संदेश दिया। नाटक के पात्रों ने अपनी प्रस्तुति से कला का अमिट छाप छोड़ी। हिन्दुस्थान समाचार/सुरेन्द्र/चंदा

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