प्रेज़िडेंशियल डिबेट महाभारत अथवा रामायण सीरियल से कम लोकप्रिय नहीं होती
प्रेज़िडेंशियल डिबेट महाभारत अथवा रामायण सीरियल से कम लोकप्रिय नहीं होती

प्रेज़िडेंशियल डिबेट महाभारत अथवा रामायण सीरियल से कम लोकप्रिय नहीं होती

-नेशनल कन्वेंशन में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का ग्राफ़ बढ़ा है ! -रूसी, चीनी और ईरानी ख़ुफ़िया एजेंसिया सक्रिय क्यों है? ललित मोहन बंसल लॉस एंजेल्स, 30 अगस्त (हि.स)। अमेरिका में अरबों डालर के बजट वाले राष्ट्रपति चुनाव में प्रेज़िडेंशियल डिबेट महाभारत अथवा रामायण सीरियल से काम लोकप्रिय नहीं होती। ये डिबेट जिस दिन नेशनल टीवी के चैनलों पर 'प्राइम टाइम' समय के दौरान प्रसारित होती हैं, तो थिएटर हों अथवा डाउन टाउन की भीड़ भरी रूपहली जगमगाती मार्केट में विचरण करने वाले लोगों की निगाह प्रेज़िडेंशियल डिबेट पर टिकी होती है। पिछले 2016 के राष्ट्रपति चुनाव की तीनों डिबेट को 25 करोड़ 90 लाख लोगों ने देखा था। उस वक़्त प्रेज़िडेंशियल डिबेट में भाग ले रहे थे रिपब्लिकन पार्टी से उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प और डेमोक्रेटिक पार्टी से हिलेरी क्लिंटन। इस बार पहली डिबेट 29 सितंबर क्लीवलैंड, ओहायो, द्वितीय डिबेट 15 अक्टूबर मियामी, फ़्लोरिडा और तृतीय 22 अक्टूबर को बेल्मांट, टेनेसी में होनी है। उपराष्ट्रपति पद की डिबेट डेमोक्रेट कमला हैरिस और रिपब्लकन माइक पेंस के बीच 7 अक्टूबर को सालत लेक सिटी, ऊटा में होगी। अमेरिकी मतदाता चार सितंबर से डाक के ज़रिए अपने मत पत्र प्रेषित कर सकेंगे। ये डाक मत पत्र चुनाव की तिथि 03 नवंबर से 15 दिन पहले तक डाल सकते हैं। अमेरिका की विभाजित मीडिया ने अपने दावों में पिछले सप्ताहों में रिपब्लिकन कन्वेंशन की तुलना में डेमोक्रेटिक कन्वेंशन की पहुँच ज़्यादा बताई है। इसके बावजूद यह सच्चाई है कि इनमें डोनाल्ड ट्रम्प का ग्राफ़ बढ़ा है। हिन्दुस्थान समाचार के इस संवाददाता ने पिछले चुनाव में इस मेगा इवेंट पर मीडिया में चर्चा, पार्टी स्तर पर प्रचार, एजेंडे और मुद्दों के आधार पर डोनाल्ड ट्रम्प की विजय की संभावनाएँ जताई थीं। उस समय डोनाल्ड ट्रम्प को मीडिया ने राजनीति में नौसीखिए, एक बड़बोले, बिल्डर और मात्र ग्यारह अरब डालर के होटलियर तथा टीवी 'रिएलिटी शो' के मँजे हुए कलाकार के रूप में प्रस्तुत किया था। यही नहीं उन्हें अपने बेटे-बेटियों की उम्र वाली एक कम्युनिस्ट देश की प्रवासी माडल मेलेनिया से विवाह रचाने के आरोप लगाए गए थे। ट्रम्प को एक बिगड़ैल- मसखरे के रूप में प्रस्तुत किया गया था। आज डोनाल्ड ट्रम्प रिपब्लिकन श्वेत मतदाताओं के चहेते हैं। उनके 82 प्रतिशत श्वेत इवेंजिलिस्ट समर्थक हैं। साउथ कैरोलाइना से अश्वेत समुदाय के सिनेटर टिम स्काट उनके प्रबल समर्थक है। इसी स्काट की बदौलत ट्रम्प को सौलह लाख अश्वेत वोट मिले थे। फिर लेटिनो का डेमोक्रेट से मोह भंग हुआ है तो एशियाई अमेरिकी मतदाताओं में इस बार भारतीय मतदाताओं का रूझान ट्रम्प के प्रति बढ़ा है। हालाँकि चीनी मतदाताओं का मोह भंग हुआ है। दूसरी ओर, डेमोक्रेटिक पार्टी के बहुचर्चित राष्ट्र्पतियों में पहले अश्वेत राष्ट्रपति बराक ओबामा के मंत्री मंडल में विश्वस्त विदेश मंत्री तथा प्रथम महिला के रूप में व्हाइट हाउस के तौर तरीक़ों से परिचित हिलरी क्लिंटन थी। हिलेरी ने ट्रम्प को ख़ासी टक्कर दी थी, वह पापुलर मतों में जीत भी गई थीं लेकिन संविधानिक नियमों के अनुसार प्रतिनिधि मतों में पिछड़ कर उन्हें पराजय का मुँह देखना पड़ा था। इवांका ट्रम्प की निगाहों में उनके पिता की छवि इस बार एक कुशल राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प (73 वर्ष) की है। उनके मुक़ाबले में डेमोक्रेटिक पार्टी से ओबामा के साथ आठ वर्ष तक उप राष्ट्रपति के रूप में सहयोगी और इससे पूर्व 46 वर्षों तक सिनेटर रहे 78 वर्षीय जोई बाइडन हैं। जोई की उम्र तो आड़े आ रही है, तो वह उदारवादी पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा, समाजवादी नेताओं में बर्नी सैंडर्स और एलिज़ाबेथ वारेन आदि नेताओं के समाजवादी एजेंडे से उबर नहीं पा रहे हैं। राष्ट्रवाद बनाम समाजवाद- हिलेरी की मदद के लिए उनके पति, राष्ट्रपति बिल क्लिंटन रात-दिन जुटे थे, तो अमेरिका में अत्यधिक श्वेत कंज़र्वेटिव वेंजिलिस्ट समुदाय के ख़िलाफ़ अश्वेत अफ़्रीकी अमेरिकी, एशियाई अमेरिकी, लेटिनो एकजुट थे। उस समय राष्ट्रपति चुनाव पूरी तरह राष्ट्रवाद बनाम समाजवाद की बहस में उलझ चुका था। अमेरिका ही नहीं, दुनिया भर की मीडिया डेमोक्रेट हिलरी क्लिंटन को चुनाव पूर्व पोल सर्वे में दस से पंद्रह प्रतिशत अंक से विजयी दिखा रही थी। इस पोल सर्वे के विपरीत देश भर के श्वेत युवा समुदाय, इवेंजिलिस्ट चर्च और बराबर की टक्कर वाले कुछ राज्यों में स्विंग वोटर को लपकने के लिए 'एक अंडरकरंट' काम कर रहा था। यह अंडर करंट आज भी सक्रिय है। रिपब्लिकन और डेमोक्रेट की नेशनल कन्वेंशन में मुख्य वक्ताओं ट्रम्प हो अथवा बाइडन सहित एक छोटे से छोटे वक्ता के भाषण और बॉडी लेंगवेज का लब्बोलोआब तब और आज भी राष्ट्रवाद और चरमपंथी समाजवाद पर आधारित नज़र आ रहा है। हाँ, इस इस बार के चुनाव को आधुनिक काल के अत्यधिक महत्वपूर्ण चुनाव के रूप में चित्रित किया जा रहा है। चुनाव में मूलत: दोनों पार्टियों और उनके उम्मीदवारों के ख़ज़ाने में चंदे की रक़म बरस रही है। चुनाव में एक महत्वपूर्ण पक्ष सोशल मीडिया पहले भी था। इस बार भी है। इसे 'हैक' करने तथा रूसी ख़ुफ़िया एजेंसी की सक्रियता के आरोप थोपे जा रहे थे। इन आरोपों पर कांग्रेशनल इंटेलीजेंस समिति में ढेरों चर्चा भी हुई, सोशल मीडिया के महानायकों की पेशी भी हुई। ये आरोप आए गए हो गए। ये आरोप आज भी लगाए जा रहे हैं। इस बार चीनी ख़ुफ़िया एजेंसी और जुड़ गई है। रूसी और चीनी ख़ुफ़िया एजेंसिया सक्रिय क्यों?- कहा जा रहा है कि ट्रम्प की मदद के लिए रूसी ख़ुफ़िया एजेंसियाँ सक्रिय हैं, तो उन्हें हराने और डेमोक्रेट जोई बाइडन-कमला हैरिस की जोड़ी को जिताने के लिए चीन ने कमर कस ली है। लेकिन इसे स्वीकार करने के लिए कोई भी पक्ष तैयार नहीं है। कहा जा रहा है कि रूसी एजेंसी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के संरक्षण में जुटी है तो चीनी एजेंसी इस बार ट्रम्प को कारोबार जंग का मज़ा चखाने और बाइडन-कमला हैरिस टीम को जिताने के लिए जुटी हैं। जैसे जैसे चुनाव ( 03 नवंबर, 2020, मंगलवार) समीप आ रहे हैं, इन ख़ुफ़िया एजेंसियों की सक्रिय भूमिका और सोशल मीडिया को हथियार बनाए जाने की ख़बरें आए दिन नेशनल मीडिया में मुद्दा बन रही हैं। इन ख़ुफ़िया एजेंसियों के निशाने पर रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टी के शीर्ष नेताओं, चुनाव प्रचार में जुटे मैनेजर, दान और विज्ञापनदाताओं, चुनाव प्रचार में लगे ऑफिस और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए डाटा एकत्र किए जा रहे हैं। अपने अपने डाटा के संरक्षण के दावे कर रहे हैं। अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसिया भी इन एजेंसियों की टोह लेने में जुटी हैं। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार शनिवार को एफबीआई के एक पूर्व एजेंट बिल एवानिया के हवाले से दावा किया गया है कि रूस, चीन और ईरान के इस चुनाव में अपने-अपने हित जुड़े हैं हिन्दुस्थान समाचार/-hindusthansamachar.in

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