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एचआईवी-एड्स से संक्रमित कामकाजी लोग अब भी कलंक व भेदभाव के शिकार

अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने मंगलवार को कहा है कि एचआईवी और एड्स के बारे में व्याप्त भ्रान्तियों और ग़लतफ़हमियों के कारण, कामकाज के स्थानों पर अब भी कलंक की मानसिकता और भेदभाव जारी हैं. एड्स नामक व्यापक संक्रामक रोग शुरू होने के समय से लगभग 40 वर्षों के दौरान, लोगों में इस बीमारी के लिये कुछ सहिष्णुता देखी गई है, मगर इसके बावजूद 50 देशों 55 हज़ार लोगों के साथ किये गए एक सर्वेक्षण में पाया गया है कि केवल दो में से एक व्यक्ति, यानि 50 प्रतिशत को ही ये मालूम था कि एचआईवी संक्रमण, बाथरूम या स्नानघर साझा इस्तेमाल करने से नहीं फैलता है. More than 40 years after the AIDS epidemic began, significant HIV stigma and discrimination persist. Nearly 4️⃣ out of 🔟 people are not comfortable working with colleagues who have HIV. Ahead of #WorldAidsDay, check out the new @ilo and @Gallup report 👉https://t.co/KDW3tD5yvC pic.twitter.com/NqHBseovms — International Labour Organization (@ilo) November 30, 2021 आईएलओ के लैंगिक समानता, विविधता और समावेश शाखा की अध्यक्षा शिडी किंग का कहना है, “यह देखना कितना आश्चर्यजनक है कि एचआईवी और एड्स महामारी शुरू होने के 40 वर्ष बाद भी, इतनी भ्रान्तियाँ और ग़लतफ़हमियाँ फैली हुई हैं.” जागने की ज़रूरत उनका कहना है कि एचआईवी संक्रमण फैलने के बारे में बुनियादी तथ्यों की जानकारी नहीं होने के कारण, कलंकित मानसिकता और भेदभाव को ईंधन मिल रहा है. उन्होंने कहा कि यह सर्वेक्षण एक एचआईवी रोकथाम और इसके बारे में जागरूकता फैलाने के कार्यक्रमों में फिर से जान फूँकने के लिये, नीन्द से जगाने वाली एक घण्टी है. कामकाजी दुनिया को, इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी. शिडी किंग ने कहा कि कामकाजी स्थलों पर कलंकित मानसिकता और भेदभाव, लोगों को हाशिये पर धकेलते हैं, परिणामस्वरूप एचआईवी से संक्रमित लोग निर्धनता में धकेल दिये जाते हैं. सर्वेक्षण में कहा गया है कि एचआईवी संक्रमण फैलने के बारे में जानकारी के अभाव से, भेदभावकारी रुख़ व नज़रिये को बढ़ावा मिलता है. वर्ष 2020 के अन्त तक, दुनिया भर में लगभग तीन करोड़ 80 लाख लोग, एचआईवी के संक्रमण के साथ जीवन जी रहे थे, जिनमें 15 लाख लोग, उस वर्ष नए संक्रमित थे. सर्वेक्षण के अनुसार, एड्स सम्बन्धित बीमारियों से हर साल लगभग छह लाख 80 लाख लोगों की मौत भी हो रही है. कलंकित मानसिकता का मुक़ाबला करने के प्रयासों में प्रगति होने के बावजूद, कोरनावायरस महामारी ने स्थिति को और बदतर बना दिया है. देखभाल का बोझ शिडी किंग का कहना है कि कोविड-19 महामारी ने, निश्चित रूप से, एचआईवी संक्रमण का ख़ात्मा करने के प्रयासों में हुई कुछ प्रगति को पीछे धकेल दिया है, और अब उससे भी ज़्यादा अहम ये है कि ये प्रयास दोगुने करने होंगे. उन्होंने कहा कि एचआईवी से संक्रमित लोगों पर प्रभाव को देखा जाए तो इसके मरीज़ों पर ही नहीं, बल्कि उनकी देखभाल करने वालों पर भी, कोरोनावायरस महामारी के दौरान बोझ बढ़ा है क्योंकि बहुत सी स्वास्थ्य सेवाएँ अनुपलब्ध रही हैं. एशिया व प्रशान्त मुख्य केन्द्र सर्वेक्षण में पाया गया है कि एचआईवी से संक्रमित लोगों के साथ काम करने में सबसे कम सहिष्णुता या सहनशीलता, एशिया व प्रशान्त क्षेत्रों में देखी गई है. उसके बाद मध्य पूर्व और उत्तरी अफ़्रीका क्षेत्र हैं. इस बारे में पूर्वी और दक्षिण अफ़्रीका क्षेत्रों में सबसे ज़्यादा सकारात्मक नज़रिये व रुख़ देखे गए. इन क्षेत्रों में सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले 90 प्रतिशत से भी ज़्यादा प्रतिभागियों ने कहा कि वो एचआईवी से संक्रमित लोगों के साथ काम करने में सहज होंगे. इस तरह के सकारात्मक रुख़ और नज़रिये के साथ, उच्च शिक्षा स्तर भी सम्बन्धित हैं. रिपोर्ट में अनेक सिफ़ारिशें भी पेश की गई हैं जिनमें एचआईवी के संक्रमण के बारे में जागरूकता फ़ैलाने के कार्यक्रम चलाना और कामकाजी लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिये, क़ानूनी और नीतिगत वातावरण बेहतर बनाए जाने की सिफ़ारिशें शामिल हैं. शिडी किंग ने जिनीवा में पत्रकारों से कहा कि इस जागरूकता प्रसार में, कामकाज के स्थलों की अहम भूमिका है. कामकाजियों और नियोक्ताओं की निश्चित रूप से अहम भूमिका है. रिपोर्ट कहती है कि असमानताओं का मुक़ाबला करना और भेदभाव ख़त्म करना, एड्स का ख़ात्मा करने के लिये बहुत ज़रूरी है, विशेष रूप से मौजूदा कोविड-19 महामारी के दौरान. --संयुक्त राष्ट्र समाचार/UN News

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