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जलवायु परिवर्तन लक्ष्य प्राप्ति और जीवाश्म ईंधन उत्पादन योजनाओं के बीच गहरी खाई

जलवायु महत्वाकाँक्षा में बढ़ोत्तरी और कार्बन तटस्थता संकल्पों के बावजूद, देशों की सरकारें, जीवाश्म ईंधन उत्पादन, वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी के लक्ष्य को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिये ज़रूरी मात्रा से दोगुनी मात्रा में उत्पादन की योजनाओं पर काम कर रही हैं. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) और साझीदार संगठनों द्वारा तैयार और बुधवार को जारी एक नई रिपोर्ट में यह निष्कर्ष सामने आया है. Production Gap Report नामक रिपोर्ट दर्शाती है कि अगले दो दशकों में, देशों की सरकारें, वैश्विक तेल और गैस उत्पादन में बढ़ोत्तरी होने का अनुमान जता रही है और कोयला उत्पादन में भी मामूली कमी आने की ही सम्भावना है. इन योजनाओं के मद्देनज़र, कुल मिलाकर जीवाश्म ईंधन उत्पादन में, कम से कम वर्ष 2040 तक वृद्धि होने की सम्भावना व्यक्त की गई है. There is still time to limit long-term warming to 1.5°C but only just. At #COP26 govts. must take immediate steps to close the fossil fuel production gap & ensure a just and equitable transition. This is what climate ambition looks like.#ProductionGaphttps://t.co/aawuetAbzQ — Inger Andersen (@andersen_inger) October 20, 2021 यूएन पर्यावरण एजेंसी की कार्यकारी निदेशक इन्गर एण्डरसन ने कहा कि वैश्विक तापमान में दीर्घकालीन बढ़ोत्तरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिये अब भी समय है, मगर यह समयावधि तेज़ी से बन्द हो रही है. उन्होंने बताया कि नवम्बर में ग्लासगो में यूएन के वार्षिक जलवायु सम्मेलन (कॉप26) में, सरकारों को कार्रवाई का स्तर बढ़ाना होगा, और जीवाश्म ईंधन उत्पादन में कमी करने के लिये त्वरित और तत्काल क़दम उठाने होंगे. साथ ही इस प्रक्रिया को न्यायोचित ढंग से आगे बढ़ाया जाना होगा. इस वर्ष की रिपोर्ट में 15 मुख्य उत्पादक देशों से जुड़ी जानकारी को साझा करते हुए दर्शाया गया है कि अधिकतर देश अब भी जीवाश्म ईंधन उत्पादन में वृद्धि को समर्थन दे रहे हैं. कोयले पर निर्भरता का अन्त अहम संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने इस रिपोर्ट पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि हाल के दिनों में दुनिया की कई बड़ी अर्थव्यवस्थाओं ने कोयला आधारित परियोजनाओं के लिये वित्त पोषण रोकने की घोषणा की है. उन्होंने भरोसा जताया कि जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को चरणबद्ध ढंग से बन्द करने की दिशा में यह अहम क़दम है. महासचिव गुटेरेश के मुताबिक़ रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि स्वच्छ ऊर्जा भविष्य की दिशा में आगे बढ़ने के लिये अभी एक लम्बा रास्ता तय करना है. उन्होंने ध्यान दिलाया कि वाणिज्यिक बैंक और सम्पत्ति प्रबन्धकों सहित सार्वजनिक व निजी वित्त संस्थाओं को अपना निवेश, कोयले से हटाकर नवीकरणीय ऊर्जा पर केन्द्रित करना होगा. इससे बिजली सैक्टर के पूर्ण विकार्बनीकरण को बढ़ावा दिया जा सकेगा और सर्वजन के लिये नवीकरणीय ऊर्जा को सुलभ बनाना सम्भव होगा. मुख्य निष्कर्ष रिपोर्ट के अनुसार, तापमान बढ़ोत्तरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिये ज़रूरी मात्रा की तुलना में, वर्ष 2030 में 110 प्रतिशत ज़्यादा जीवाश्म ईंधनों का उत्पादन होगा. 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिये ज़रूरी मात्रा के लक्ष्य से यह उत्पादन, 45 फ़ीसदी अधिक होने की सम्भावना है. यूएन एजेंसी की यह रिपोर्ट पहली बार वर्ष 2019 में जारी की गई थी और इसमें सरकारों की ऊर्जा उत्पादन योजनाओं और पेरिस समझौते के तहत उनकी अनुरूपता के बीच के अन्तर को मापा जाता है. मौजूदा योजनाओं से वर्ष 2030 में, 1.5 डिग्री सेल्सियस तक की बढ़ोत्तरी को सीमित रखने के लिये ज़रूरी मात्रा से, 240 प्रतिशत अतिरिक्त कोयले, 57 प्रतिशत अतिरिक्त तेल और 71 फ़ीसदी अतिरिक्त गैस का उत्पादन होगा. वैश्विक स्तर पर गैस का उत्पादन भी 2020 से 2040 के बीच बढ़ने की सम्भावना है, और दीर्घकालीन बढ़ोत्तरी का यह रुझान, पेरिस समझौते के लक्ष्यों के अनुरूप नहीं है. स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा कोविड-19 महामारी की शुरुआत से ही, देशों ने 300 अरब डॉलर की धनराशि जीवाश्म ईंधन गतिविधियों में निर्देशित की हैं, जो कि स्वच्छ ऊर्जा के लिये आबण्टित राशि से कहीं अधिक है. इसके विपरीत, जी20 देशों और मुख्य बहुपक्षीय बैंकों से जीवाश्म ईंधन के लिये, अन्तरराष्ट्रीय सार्वजनिक वित्त पोषण में कमी आई है. फ़िलहाल, ऐसे एक-तिहाई बैंकों और जी20 विकास वित्तीय संस्थानों ने ऐसी नीतियाँ अपनाई हैं जिनमें भविष्य में जीवाश्म ईंधन उत्पादन के लिये निवेश शामिल नहीं हैं. रिपोर्ट के मुख्य लेखक प्लॉय अचाकुविसुत ने बताया कि शोध स्पष्ट है: “वैश्विक कोयला, तेल और गैस उत्पादन में तत्काल बड़ी गिरावट लानी होगी और इसे तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की दीर्घकालीन बढ़ोत्तरी के अनुरूप रखना होगा.” यह रिपोर्ट स्टॉकहोम पर्यावरण संस्थान (SEI), टिकाऊ विकास के लिये अन्तरराष्ट्रीय संस्थान (IISD), संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम सहित अन्य साझीदारों ने मिलकर तैयार की है, और 80 से ज़्यादा शोधकर्ताओं ने विश्लेषण और समीक्षा में मदद की है. --संयुक्त राष्ट्र समाचार/UN News

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