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सुरक्षा परिषद का तालेबान से आग्रह – देश छोड़कर जा रहे नागरिकों को सुरक्षित रास्ता मिले

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने सोमवार को एक प्रस्ताव पारित किया है जिसमें अफ़ग़ानिस्तान में तालेबान से देश छोड़ना चाह रहे लोगों को सुरक्षित रास्ता दिये जाने, मानवीय राहत प्रयासों को जारी रखने की अनुमति देने और मानवाधिकारों को सुनिश्चित किये जाने का आग्रह किया गया है. सुरक्षा परिषद के 15 सदस्य देशों में से 13 ने इस प्रस्ताव के समर्थन में मतदान किया, जबकि दो स्थाई सदस्यों – चीन और रूस – वोटिंग के दौरान अनुपस्थित रहे. सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव में माँग की गई है कि अफ़ग़ानिस्तान को आंतकवाद की शरणस्थली नहीं बनने देना होगा. सदस्य देशों ने गुरूवार को काबुल हवाई अड्डे पर हुए घातक हमलों की कठोरतम शब्दों में निन्दा की है. इन हमलों में 150 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी और 200 से ज़्यादा घायल हुए थे. ख़ुरासान प्रान्त में इस्लामिक स्टेट नामक आतंकवादी गुट ने इस हमले की ज़िम्मेदारी लेने का दावा किया है. इस हमले में, देश पर तालेबान के नियंत्रण के बाद अफ़ग़ानिस्तान छोड़ कर जा रहे लोगों, उन्हें सुरक्षित निकालने के काम में जुटे अन्तरराष्ट्रीय सुरक्षा बलों को निशाना बनाया गया. अमेरिका: संकल्प को पूरा करना इस प्रस्ताव को अमेरिका ने अन्य स्थाई सदस्य देशों, फ्राँस व ब्रिटेन के साथ मिलकर पेश किया. अमेरिकी राजदूत लिण्डा थॉमस-ग्रीनफ़ील्ड ने कहा, "सुरक्षा परिषद को आशा है कि तालेबान, उन अफ़ग़ान व विदेशी नागरिकों के लिये सुरक्षित रास्ता मुहैया कराने का संकल्प पूरा करेगा, जो कि देश को छोड़कर जाना चाहते हैं. चाहे यह आज, कल, या 31 अगस्त के बाद हो." उन्होंने कहा कि हर किसी को, किसी भी कारण से, वायु या भूमि मार्ग से सुरक्षित देश छोड़कर जाने की अनुमति मिलनी चाहिए. "यह हमारे लिये सबसे अहम बात है." जुलाई महीने से अमेरिका ने एक लाख 22 हज़ार से अधिक अमेरिकी, विदेशी नागरिकों और जोखिम का सामना कर रहे अफ़ग़ान नागरिकों को देश छोड़ने में मदद की है. फ्राँस: ज़रूरतमन्दों को सहायता सोमवार को जारी प्रस्ताव में तालेबान के एक वक्तव्य का ध्यान किया गया है जिसमें अफ़ग़ानों को किसी भी समय देश छोड़ने की अनुमति देने की बात कही गई है. यूएन में फ्राँस की उपप्रतिनिधि नैथेली एस्टीवल-ब्रॉहर्स्ट ने इस संकल्प को पूरा किये जाने का आग्रह किया है. उन्होंने दुभाषिये के ज़रिये अपनी बात रखते हुए कहा, "यह प्रस्ताव सभी से हवाई अड्डे और आस-पास के इलाक़े को सुरक्षित बनाने के लिये सभी प्रयास करने का आहवान करता है." उन्होंने कहा कि इस सुरक्षित मार्ग व संरक्षण को सृजित करने के लिये एक अनिवार्य शर्त यह है कि ख़तरे को महसूस कर रहे अफ़ग़ानों को सुरक्षित देश छोड़ने की अनुमति दी जाए, और ज़रूरतमन्दों के लिये मानवीय राहत सहयात सुनिश्चित की जाए. ब्रिटेन: अब तक हुई प्रगति की रक्षा मानवाधिकारों के मुद्दे पर, ब्रिटेन की राजदूत बारबरा वुडवर्ड ने ज़ोर देकर कहा कि अफ़ग़ानिस्तान में पिछले दो दशकों में मानवाधिकारों के क्षेत्र में हुई प्रगति की रक्षा की जानी होगी. इस क्रम में, महिलाओं, बच्चों व अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा पर विशेष रूप से बल दिया गया है. उन्होंने कहा कि यह प्रस्ताव, अफ़ग़ानिस्तान में हालात पर, एक एकजुट अन्तरराष्ट्रीय जवाबी कार्रवाई की दिशा में एक अहम क़दम है. उन्होंने कहा कि इस पर आगे कार्य जारी रखा जाएगा ताकि तालेबान द्वारा लिये संकल्पों की जवाबदेही तय की जा सके. ब्रिटेन की राजदूत ने स्पष्ट किया कि अन्तरराष्ट्रीय समुदाय, तालेबान को शब्दों के बजाय उसके कृत्यों द्वारा परखा जाएगा. रूस: चिन्ताएँ परिलक्षित नहीं हुईं रूस के राजदूत वसीली नेबेन्ज़िया ने बताया कि रूस को मतदान के दौरान अनुपस्थित रहने के लिये मजबूर होना पड़ा, चूँकि कुछ सैद्धान्तिक चिन्ताएँ, प्रस्ताव के मसौदे में परिलक्षित नहीं हुई हैं. इस प्रस्ताव का मसौदा शुक्रवार को साझा किया गया था. उन्होंने कहा कि इसके बावजूद कि प्रस्ताव के मसौदे को एक भयावह आतंकी हमले की पृष्ठभूमि में पेश किया गया था, इसमें आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई के सम्बन्ध में आइसिल या पूर्व तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट आतंकी गुटों का उल्लेख किये जाने से सीधे तौर पर मना कर दिया गया. रूस के राजदूत ने कहा कि यह स्पष्ट बात को ना मानने की अनिच्छा दर्शाता है और आतंकवादियों को "हमारे" और "उनके" में विभाजित करने की चाह भी. और इन गुटों की ओर से आ रहे आतंकवादी ख़तरों को कम करके आंकने की भी. चीन: चिन्तन और सुधार चीन के राजदूत झाँग जून ने कहा कि ज़मीन पर नाज़ुक हालात व अनिश्चितताओं के बावजूद, सुरक्षा परिषद की कार्रवाई से तनावों को दूर करने में मदद मिलनी चाहिए, ना कि उन्हें और गहन होना चाहिए. उन्होंने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान में मची अफ़रा-तफ़री, सीधे तौर पर विदेशी सैनिकों की जल्दबाज़ी में और अव्यवस्थित ढँग से हुई वापसी से जुड़ी हुई है. "हमें आशा है कि सम्बद्ध देश, यह स्वीकार करेंगे कि विदेशी सैनिकों की वापसी, ज़िम्मेदारी का अन्त नहीं है, बल्कि चिन्तन और सुधार करने की शुरुआत है." --संयुक्त राष्ट्र समाचार/UN News

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