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स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार: छह अहम बातें

8 अक्टूबर को जिनीवा में मानवाधिकार परिषद का सभागार का करतल ध्वनि से गूँजना, एक असाधारण अनुभव था. दशकों से पर्यावरण संरक्षण और अधिकार कार्यकर्ताओं द्वारा किये जा रहे अथक प्रयास फलीभूत हो गए हैं. मानवाधिकार परिषद का मिशन, विश्व भर में मानवाधिकारों को बढ़ावा देना और उनकी रक्षा करना है. संयुक्त राष्ट्र की इस संस्था ने पहली बार एक प्रस्ताव पारित किया है, जिसमें स्वस्थ व टिकाऊ पर्यावरण की सुलभता को एक सार्वभौमिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है. प्रस्ताव में सभी देशों और अन्य साझीदारों से एक साथ मिलकर प्रयास करने का आग्रह किया गया है ताकि इस अभूतपूर्व क़दम को लागू किया जा सके. A little bit of joyful emotion at the very staid Human Rights Council, as the UN for the first time recognizes the right to a clean, healthy and sustainable environment! (Mask was only off for a moment!) pic.twitter.com/8rUXJpz9z0 — SREnvironment (@SREnvironment) October 8, 2021 मानवाधिकार परिषद की प्रमुख और फ़िजी की राजनयिक नज़हत शमीम ने हथौड़े की चोट से जब मतदान के नतीजों को पेश किया तो उस क्षण, पर्यावरण एवँ मानवाधिकार के मुद्दे पर यूएन के विशेष रैपोर्टेयर, डेविड बॉयड भी सभागार में मौजूद थे. उन्होंने बताया कि पेशेवर जीवन में, यह अब तक उनके सबसे रोमांचकारी अनुभवों में से एक के रूप में याद रहेगा. इस क्रम में उन्होंने विशाल पैमाने पर किये गए सामूहिक प्रयासों की सराहना की. “इस प्रस्ताव को हासिल करने में वस्तुत:, लाखों लोगों और वर्षों दर वर्षों का समय लगा है.” इस प्रस्ताव में एक हज़ार से ज़्यादा नागरिक समाज, बाल, युवा और आदिवासी समुदाय के संगठनों के प्रयासों का उल्लेख किया गया है और इसके पक्ष में 43 वोट डाले गए, जबकि चार सदस्य देश मतदान के दौरान अनुपस्थित रहे. प्रस्ताव में एक सुरक्षित, स्वच्छ, स्वस्थ और टिकाऊ पर्यावरण को मानवाधिकार के रूप में मान्यता दिये जाने, उसे लागू किये जाने और इस अधिकार की रक्षा किये जाने की बात कही गई है. मगर, यह अधिकार किन मायनों में महत्वपूर्ण है और जलवायु परिवर्तन से प्रभावित होने वाले समुदायों के लिये इसके क्या निहितार्थ हैं? यूएन न्यूज़ ने इस विषय में छह महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर सामग्री तैयार की है. 1. पहले, एक नज़र मानवाधिकार परिषद के कामकाज और इस प्रस्ताव के महत्व पर... मानवाधिकार परिषद, संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के तहत एक अन्तर-सरकारी संस्था है, जिसका दायित्व विश्व भर में मानवाधिकारों को बढ़ावा देने और उनकी रक्षा सुनिश्चित करना है. साथ ही, मानवाधिकार हनन के मामलों और सम्बन्धित परिस्थितियों से निपटे जाने के लिये अनुशन्साएँ भी पेश की जाती हैं. परिषद में 47 सदस्य देश हैं, जिनका चुनाव संयुक्त राष्ट्र महासभा में मतदान और पूर्ण बहुमत के आधार पर तय होता है. मानवाधिकार परिषद में विश्व के हर क्षेत्र को प्रतिनिधित्व दिया गया है. मानवाधिकार परिषद के प्रस्ताव “राजनैतिक अभिव्यक्ति” हैं, जोकि विशेष मुद्दों और परिस्थितियों पर परिषद के सदस्यों (या उनके बहुमत) के रुख़ को प्रदर्शित करती हैं. मानवाधिकार से जुड़े विशिष्ट मुद्दों पर इन दस्तावेज़ों का मसौदा, सदस्य देशों द्वारा तैयार किया जाता है, जिसके बाद उन पर चर्चा होती है. आम तौर पर, इनसे सदस्य देशों, नागरिक समाज और अन्तर-सरकारी संगठनों के बीच बहस व विचार-विमर्श की प्रक्रिया आगे बढ़ती है. नए मानक,रुख़ और आचरण के सिद्धान्त स्थापित किये जाते हैं, या फिर आचरण के मौजूदा नियम परिलक्षित होते हैं. प्रस्तावों का मसौदा, मुख्यत: देशों के एक मूल समूह (core group) द्वारा तैयार किया जाता है. परिषद में पारित करने के लिये, प्रस्ताव 48/13 को कोस्टा रीका, मालदीव, मोरक्को, स्लोवेनिया और स्विट्ज़रलैण्ड द्वारा तैयार किया गया. इस प्रस्ताव के ज़रिये पहली बार, एक स्वच्छ, स्वस्थ और टिकाऊ पर्यावरण की सुलभता की एक मानवाधिकार के रूप में शिनाख़्त की गई है. 2. प्रस्ताव को रूप देने में दशकों का समय लगा... वर्ष 1972 में, स्टॉकहोम में पर्यावरण के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जोकि एक ऐतिहासिक घोषणापत्र के साथ सम्पन्न हुआ. इस सम्मेलन के ज़रिये, पहली बार पर्यावरणीय मुद्दों को अन्तरराष्ट्रीय चिन्ताओं के केंद्र में रखा गया. इसके साथ ही, आर्थिक प्रगति, वायु, जल और महासागर के प्रदूषण, और मानवता के स्वास्थ्य-कल्याण के मुदे पर, औद्योगिक व विकासशील देशों के बीच सम्वाद आरम्भ हुआ. WHO/Diego Rodriguez हर इनसान को, एक स्वस्थ पर्यावरण और वातावरण में जीवन जीने का अधिकार हासिल है, जो प्रदूषण और उसके हानिकारक प्रभावों से मुक्त हो. संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों ने उस समय घोषणा की थी कि गरिमामय और ख़ुशहाल जीवन को एक गुणवत्तापूर्ण पर्यावरण के ज़रिये ही सुनिश्चित किया जा सकता है, और यह लोगों का बुनियादी अधिकार है. इस क्रम में ठोस कार्रवाई की पुकार लगाई गई थी. जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से अग्रिम मोर्चे पर जूझ रहा लघु द्वीपीय विकासशील देश, मालदीव, वर्ष 2008 से ही, मानवाधिकारों और जलवायु परिवर्तन के मुद्दों पर सिलसिलेवार प्रस्ताव पेश करता रहा है. पिछले एक दशक में मानवाधिकार और पर्यावरण के मुद्दे पर प्रस्ताव, सभा पटल पर रखे गए हैं. पिछले कुछ वर्षों में, मालदीव व उसके सहयोगी देशों और मानवाधिकारों व पर्यावरण पर यूएन के विशेष रैपोर्टेयर सहित कुछ संगठनों के प्रयासों के परिणामस्वरूप, अन्तरराष्ट्रीय समुदाय, एक नए, सार्वभौमिक अधिकार की घोषणा किये जाने की दिशा में अग्रसर रहा है. कोविड-19 महामारी के दौरान, संयुक्त राष्ट्र द्वारा इस अधिकार को मान्यता दिये जाने के लिये समर्थन में वृद्धि हुई. यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश, मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट और विश्व भर में एक हज़ार से अधिक नागरिक समाज संगठनों ने इस मुहिम को समर्थन दिया. हाल के समय में, परिषद के क़रीब 70 सदस्य देशों ने प्रस्तावों का मसौदा तैयार करने वाले मूल समूह के देशों द्वारा मानवाधिकारों और पर्यावरण के मुद्दे पर ऐसी कार्रवाई के आहवान को अपना समर्थन दिया. संयुक्त राष्ट्र की 15 एजेंसियों ने एक साझा घोषणापत्र जारी करते हुए ऐसे प्रस्ताव के लिये पैरवी की. Emmanuel Rouy/Lycée Français d न्यूयॉर्क के एक प्राइमरी स्कूल के छात्र, जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर जुलूस निकालते हुए. इस वर्ष, विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर यूएन विशेषज्ञों के एक समूह द्वारा जारी वक्तव्य में पशुजनित बीमारियों, जलवायु आपात स्थिति, ज़हरीले प्रदूषण और लुप्त होती जैवविविधता पर चिन्ता जताई गई. विशेषज्ञों ने आगाह किया कि मौजूदा चुनौतियों ने पृथ्वी के भविष्य को फिर से अन्तरराष्ट्रीय एजेण्डा के शीर्ष पर ला दिया है. 3. डेविड बनाम गोलिएथ की लोकप्रसिद्ध कहानी के अनुरूप… अन्तत:, मतदान और निर्णय के पड़ाव तक पहुँचने के लिये, देशों के मूल समूह ने गहन अन्तर-सरकारी चर्चा और विचार-विमर्श को आगे बढ़ाया, और पिछले कुछ वर्षों में विशेषज्ञों के सेमिनार भी आयोजित किये गए. ज़ाम्बिया के एक युवा पैरोकार और पर्यावरणवादी लेवी मुवाना ने भी एक ऐसे ही सेमिनार में हिस्सा लिया. उन्होंने बताया कि बचपन में उन्हें घर के पास गन्दे पानी में खेलने की वजह से, बिलहर्ज़िया नामक एक परजीवी बीमारी हो गई थी. कुछ साल बाद, मेरे समुदाय में हैज़ा की वजह से एक बच्ची की मौत हो गई. ऐसी घटनाएँ आम बात हैं और अक्सर होती रहती हैं. उन्होंने पिछले वर्ष अगस्त महीने में मानवाधिकार परिषद को बताया कि जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया भर में जलजनित संक्रामक बीमारियाँ बढ़ रही हैं, विशेष रूप से सब-सहारा अफ़्रीका में. लेवी मुवाना ने स्पष्ट किया कि उनकी कहानी कोई अनूठी बात नहीं है, और दुनिया भर में बड़ी संख्या में बच्चों पर, पर्यावरणीय संकटों का विनाशकारी असर हुआ है. लेवी मुवाना के साथ, एक लाख से अधिक अन्य बच्चों व साथियों ने स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार को पहचान दिये जाने का आहवान करने वाली एक याचिका पर हस्ताक्षर किये थे. अन्तत: उनकी आवाज़ को सुना गया है. यूएन के विशेष रैपोर्टेयर डेविड बॉयड ने बताया कि यह लोकप्रसिद्ध, डेविड बनाम गोलिएथ की कहानी के समान है. सभी नागरिक समाज संगठन, पुरज़ोर विरोध के बावजूद अपनी मुहिम में कामयाब रहे, और अब एक ऐसा औज़ार प्राप्त हुआ है जिसकी मदद से, एक न्यायोचित व टिकाऊ विश्व के लिये लड़ाई लड़ी जा सकती है. 4. मगर, प्रस्ताव के क़ानूनी रूप से बाध्यकारी ना होने से कितना असर होगा... स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ डेविड बॉयड ने बताया कि यह प्रस्ताव, हर एक पर्यावरणीय मुद्दे पर ज़्यादा महत्वाकाँक्षा कार्रवाई के उत्प्रेरक के रूप में काम करेगा. © UNICEF/Scott Moncrieff काँगो लोकतांत्रिक गणराज्य के इतुरी प्रान्त में लड़कियाँ, घर से दूर स्थित एक स्रोत से पानी ला रही हैं. “यह वास्तव में ऐतिहासिक है, और यह हर किसी के लिये अर्थपूर्ण है, चूँकि हम जानते हैं कि फ़िलहाल, विश्व में 90 फ़ीसदी लोग प्रदूषित हवा में साँस ले रहे हैं.” उन्होंने बताया कि इस प्रस्ताव के ज़रिये वायु की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिये किये जाने वाले प्रयासों में स्फूर्ति लाई जा सकती है, जिससे अरबों लोगों के जीवन में बेहतरी आएगी. मानवाधिकार परिषद के प्रस्ताव, क़ानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं होते हैं, लेकिन उनकी मदद से मज़बूत राजनैतिक संकल्प को दर्शाया जाता है. यूएन के विशेष रैपोर्टेयर ने बताया कि यूएन प्रस्तावों से आने वाले बदलावों का सर्वोत्तम उदाहरण, वर्ष 2010 में पारित वो प्रस्ताव है, जिसमें पहली बार जल सुलभता के अधिकार को मान्यता दी गई. इस प्रस्ताव ने दुनिया भर में सरकारों के लिये, अपने संविधान और क़ानूनों में जल के अधिकार को जगह देने के लिये प्रेरित किया. डेविड बॉयड ने मैक्सिको का उदाहरण दिया जहाँ संविधान में जल के अधिकार को जोड़े जाने के बाद, एक हज़ार से अधिक ग्रामीण समुदायों तक सुरक्षित पेयजल पहुँचाया गया है. इसी प्रकार, यूएन प्रस्ताव पारित होने और स्लोवेनिया के संविधान में इस अधिकार को जगह मिलने के बाद में, रोमा समुदायों तक सुरक्षित पेयजल पहुँचाया गया है. ये समुदाय अक्सर शहरों के बाहरी इलाक़ों में अनियमित बस्तियों में रहते हैं. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के मुताबिक़, वैश्विक स्तर पर स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार को मान्यता दिये जाने से पर्यावरणीय संकटों से एक ज़्यादा समन्वित, कारगर और बिना किसी भेदभाव के निपटने के प्रयासों को समर्थन मिलेगा. साथ ही, टिकाऊ विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में मदद मिलेगी और पर्यावरण संरक्षण में जुटे व्यक्तियों को मज़बूत समर्थन मिलेगा और एक ऐसे विश्व का निर्माण होगा, जहाँ लोग प्रकृति के साथ समरसतापूर्ण सम्बन्ध स्थापित कर पाएँगे. 5. मानवाधिकारों और पर्यावरण के बीच सम्बन्ध निर्विवाद है... स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ डेविड बॉयड ने जलवायु परिवर्तन की वजह से लोगों के अधिकारों पर हुए विनाशकारी असर का प्रत्यक्ष अनुभव किया है. एक विशेष रैपोर्टेयर के तौर पर अपने पहले मिशन में, उन्होंने ऐसे समुदायों से मुलाक़ात की जिन्हें, बढ़ते समुद्री जलस्तर, तटीय क्षरण और गहन होते तूफ़ानों की वजह से विस्थापित होना पड़ा है. OCHA/Danielle Parry चरम मौसम घटनाएँ अनेक देशों में तबाही का सबब बन रही हैं. 2016 में फ़िजी में एक चक्रवाती तूफ़ान से हुई बर्बादी. फ़िजी के एक द्वीप पर समुद्र किनारे एक सुन्दर तटीय इलाक़े से, लोगों को अपना पूरा गाँव तीन किलोमीटर भीतर ले जाना पड़ा. वृद्धजन, विकलांगजन और गर्भवती महिलाएँ अब उस महासागर से दूर हो गए हैं जिन्होंने अनेक पीढ़ियों से उनकी संस्कृति व आजीविका को पोषित किया है. और ये हालात महज़ विकासशील देशों में ही नहीं देखे जा रहे हैं. डेविड बॉयड ने नॉर्वे का दौरा किया जहाँ सामी आदिवासी समुदाय को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सामना करना पड़ रहा है. “मैंने वहाँ बेहद दुख भरी कहानियाँ सुनी. हज़ारों सालों से उनकी संस्कृति और उनकी अर्थव्यवस्था, रेण्डियर झुण्ड के पालन पर आधारित है, मगर अब सर्दियों में गर्म मौसम की वजह से, आर्कटिक सर्किल के उत्तर में स्थित, नॉर्वे में भी कभी-कभी बारिश होती है.” उन्होंने बताया कि रेण्डियर हज़ारों वर्षों से सर्दियों के दौरान बर्फ़ को खुरच कर काई और शैवाल तक पहुँच पाते थे, जिससे उनका गुज़ारा चलता है. मगर अब वे जमे हुए पानी को नहीं खुरच पा रहे हैं, और उन्हें भूखा रहना पड़ रहा है. यही कहानी केनया में दोहराई जा रही है जहाँ पशुपालक और चरवाहे अपने मवेशियों को खो रहे हैं, चूँकि जलवायु परिवर्तन के कारण गम्भीर सूखा पड़ रहा है. “उन्होंने इस वैश्विक संकट को पैदा करने के लिये कुछ नहीं किया और उन्हें ही यह पीड़ा झेलनी पड़ रही है. और इसीलिये यह एक मानवाधिकारों का मुद्दा है.” उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि यह न्याय का मुद्दा भी है. सम्पन्न देशों और व्यक्तियों को उस प्रदूषण की क़ीमत चुकाने की ज़रूरत है जिसके लिये वे ज़िम्मेदार हैं ताकि नई परिस्थितियों के अनुरूप अपना जीवन ढालने में निर्बल समुदायों व व्यक्तियों की मदद की जा सके. 6. भविष्य का रास्ता... मानवाधिकार परिषद के प्रस्ताव में संयुक्त राष्ट्र महासभा के लिये इस विषय पर विमर्श के लिये एक निमंत्रण भी शामिल है. विशेष रैपोर्टेयर ने बताया कि उन्हें आशा है कि अगले वर्ष के दौरान ही ऐसा ही एक अन्य प्रस्ताव पारित हो जाएगा. “हमें इसकी ज़रूरत है. हमें सरकारों और हर किसी के तात्कालिक ज़रूरत की समझ के साथ आगे बढ़ने की आवश्यकता है.” © UNICEF/Habibul Haque बांग्लादेश की राजधानी ढाका में वायु प्रदूषण के ऊँचे स्तर से स्वास्थ्य समस्याएँ पैदा हो रही हैं. उन्होंने कहा कि दुनिया फ़िलहाल जलवायु, जैवविविधता और प्रदूषण संकटों से जूझ रही है और कोविड-19 जैसी अन्य महामारियों के उभरने का ख़तरा भी बढ़ रहा है. इसकी मूल वजहों में पर्यावरणीय क्षति ही है. इसी वजह से यह प्रस्ताव बेहद अहम है, चूँकि इसमें हर सरकार को कहा गया है कि “जलवायु कार्रवाई, संरक्षण, प्रदूषण से निपटने और भावी महामारियों की रोकथाम के केंद्र में आपको मानवाधिकारों को रखना है.” विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़, पैरिस समझौते के लक्ष्यों की प्राप्ति से वायु गुणवत्ता, आहार, शारीरिक गतिविधियों में बेहतरी लाकर, हर साल लाखों ज़िन्दगियों की रक्षा सम्भव है. यूएन विशेषज्ञ ने कहा कि अनेक आबादियों के लिये जलवायु आपाता स्थिति, जीवित रहने का प्रश्न बन गई है. “केवल व्यवस्थागत, गहरे और त्वरित बदलावो से ही इस वैश्विक पारिस्थितिकी संकट से निपटने की कार्रवाई सम्भव होगी.” डेविड बॉयड ने बताया कि मानवाधिकार परिषद में इस ऐतिहासिक प्रस्ताव को स्वीकृति मिलने विरोधाभासों भरा लम्हा है. “एक ओर सफलता मिलने की अविश्वसनीय अनुभूति है और उसी समय यह भी एहसास है कि इन सुन्दर शब्दों से आगे जाकर उन्हें बदलावों में बदलने के लिये कितना काम बाक़ी है, जिससे लोगों की ज़िन्दगियों को बेहतर बनेंगी और हमारे समाज ज़्यादा टिकाऊ होंगे.” ऐसी सम्भावना जताई गई है कि स्वस्थ और स्वच्छ पर्यावरण के नए घोषित अधिकार के ज़रिये, ग्लासगो में यूएन के आगामी जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (कॉप26) में बातचीत सकारात्मक माहौल में आगे बढ़ेगी. यूएन महासचिव ने इस सम्मेलन को बहाव का रुख़ मोड़ने और प्रकृति के विरुद्ध युद्ध का अन्त करने का अन्तिम अवसर क़रार दिया है. --संयुक्त राष्ट्र समाचार/UN News

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