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एशियाई विरोधी घृणा से निपटने के लिये, लचीलेपन और आशा का संचार

कोविड-19 महामारी की शुरुआत के बाद के दौर में, अमेरिका में एशियाई और प्रशान्त द्वीप के लोगों के ख़िलाफ़ घृणा अपराधों में वृद्धि ने, कलाकार ऐमेण्डा फिंगबोधिपक्किया को एशियाई विरासत के लोगों की जीवन्त कलाकृतियाँ बनाने के लिये प्रेरित किया. न्यूयॉर्क शहर के आसपास सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शित छवियों और उनके द्वारा दिये गए सन्देशों ने दुनिया भर में सुर्खियाँ बटोरीं. 2021 के वसन्त में बस स्टॉप, मैट्रो स्टेशनों और न्यूयॉर्क शहर में ऐतिहासिक इमारतों पर चमकीले रंग के पोस्टर, भित्ति चित्र और प्रदर्शक बोर्ड लगाए गए, जो "आई स्टिल बिलीव इन दिस सिटी" (“इस शहर में अब भी मेरा विश्वास है”) नामक एक परियोजना का हिस्सा हैं, जिसमें ऐमैण्डा फिंगबोधिपक्किया की कृतियाँ दर्शाई गई हैं. 'वे संरक्षक के रूप में हमारा उत्थान करते हैं' अटलाण्टा में थाई और इण्डोनेशियाई आप्रवासियों के घर पैदा हुईं, अमेरिकी न्यूरो - साइण्टिस्ट से कलाकार बनीं ऐमैण्डा फिंगबोधिपक्किया लम्बे समय से कला की दुनिया में एक जाना-माना नाम हैं. नारीवाद, विज्ञान और समुदाय पर उनके चित्र बहुत मशहूर होते हैं, व विरोध प्रदर्शनों और रैलियों के साथ-साथ इमारतों और राजमार्गी सुरंगों पर भी देखे जा सकते हैं. लेकिन कोविड-19 महामारी शुरू होने के बाद से ही एशियाई विरोधी घृणा में वृद्धि पर उनकी कलात्मक अभिव्यक्ति ने उन्हें बहुत व्यापक पहचान दी: "आई स्टिल बिलीव इन दिस सिटी" को कई प्रमुख मीडिया संगठनों ने जगह दी है, जिसमें प्रसिद्ध टाइम पत्रिका का एक ऐसा मुखपृष्ठ भी शामिल है जिसमें एशियाई-अमेरिकियों के प्रति क्रोध और हिंसा के बारे में एक नई जागरूकता को दर्शाता है. MK Luff 'आई स्टिल बिलीव इन दिस सिटी' नामक अभियान की एक प्रतिनिधि तस्वीर हालाँकि एशिया व प्रशान्त द्वीप के लोगों की छवियों को पेश करते उनके चित्र मुख्यत: सकारात्मकता और एक उत्साहित दृष्टिकोण का संचार करते हैं, लेकिन साथ ही वो दर्शकों को एक अलग परिप्रेक्ष्य भी देते हैं, जिसमें इन्हें प्रेरित करने वाले गहरे सन्दर्भ छिपे होते हैं, जैसे "यह हमारा घर भी है", "मैं आपका बलि का बकरा नहीं हूँ", और "मैंने आपको बीमार नहीं किया". इनमें अन्तिम नारा, कोविड-19 फैलाने के लिये एशियाई लोगों को ज़िम्मेदार मानकर उनको लक्षित करती हिंसा के सन्दर्भ में सामने आया. ऐमैण्डा फिंगबोधिपक्किया का कहना है कि पोस्टर और भित्ति चित्रों में "हमारे समुदाय के ख़िलाफ़ इन भयानक हमलों का सामना करने के लिये, लचीले, आशावादी अभिभावक" का प्रतिनिधित्व दिखता है. वे हमारा उत्थान करते हैं, हमें सुरक्षित रखते हैं, हमें अपने अधिकारों के लिये खड़े होने हेतु प्रोत्साहित करते हैं. कला और मानवाधिकार न्यूयॉर्क स्थित सांस्कृतिक मानवविज्ञानी, नर्तक और क्यूरेटर व संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार अल्पसंख्यक पैरोकार, डेरिक लियोन वाशिंगटन ने इस सार्वजनिक कला प्रदर्शनी की प्रशंसा की है. वो मानते हैं कि मानवाधिकारों को बढ़ावा देने के लिये, कला बेहद महत्वपूर्ण है: "ऐमैण्डा की तरह की कला, कठिन सम्वाद शुरू करने का एक महत्वपूर्ण तरीक़ा है. यह जीवित लोगों के अनुभवों से जुड़ी है, और हमें विभिन्न समुदायों तक पहुँच बनाने और उनके जीवन को छूने में मदद करती है." MK Luff 'आई स्टिल बिलीव इन दिस सिटी' नामक अभियान की एक प्रतिनिधिक तस्वीर डेरिक लियोन वाशिंगटन कहते हैं, “ये कलाकृतियाँ, एशियाई-विरोधी हिंसा के विरुद्ध एशियाई-अमेरिकियों की हिम्मत का उदाहरण हैं. हालाँकि, यह केवल न्यूयॉर्क या अमेरिका की कहानी नहीं है. संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने दुनिया भर में इसी तरह के हमलों में वृद्धि पर "गहरी चिन्ता" व्यक्त की है. न्यूयॉर्क शहर के मानवाधिकार आयोग की अध्यक्ष कैरमेलिन मैलेलिस कहती हैं, "एशियाई और प्रशान्त द्वीपवासियों के ख़िलाफ़ नस्लवाद कोई नई घटना नहीं है. हम सभी के पास इस पर युवावस्था के समय की कहानियाँ भरी पड़ी हैं, लेकिन यह भी सच है कि महामारी के कारण पिछला साल विशेष रूप से ख़राब रहा है." कैरमेलिन मैलेलिस बताती हैं कि न्यूयॉर्क और उसके बाहर, नस्लवाद के सभी रूपों के सन्दर्भ में एशियाई विरोधी घृणा के स्तर में बढ़ोत्तरी हुई है. "पिछले एक साल में ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ आन्दोलन, काले-विरोधी, और अब एशियाई-विरोधी, यहूदी-विरोधी और ज़ेनोफ़ोबिया के अन्य रूपों के ख़िलाफ़ लड़ रहा है. यह एक बहुत ही विविध शहर है, और हम अपने सभी विभिन्न समुदायों के बीच एकजुटता देखना चाहते हैं." हम अपनी शक्ति पहचानें जिस समय जब न्यूयॉर्क शहर में "आई स्टिल बिलीव इन दिस सिटी" कलाकृतियाँ प्रदर्शित की जा रही थीं, ऐमेण्डा फिंगबोधिपक्किया ने न्यूयॉर्क शहर के मानवाधिकार आयोग के सहयोग से एक और, अधिक गम्भीर प्रदर्शनी शुरू की, जिसका शीर्षक था "हम अपनी शक्ति पहचानें." यह मार्च 2021 में एक सामूहिक गोलीबारी की घटना पर आधारित थी, जिसमें आठ लोगों की मौत हो गई, जिनमें से छह एशियाई मूल की महिलाएँ थीं. "यह शरुआत, धीरे-धीरे एशियाई-अमेरिकियों और प्रशान्त द्वीपसमूह (एएपीआई) के लोगों द्वारा हिंसा की कहानियाँ साझा करने से विकसित हुई, लेकिन हर उस मुश्किल से गुज़रने वाले व्यक्ति के लिये खुली थी, जहाँ वो अपने मन का बोझ हलका कर सकते थे." हमले और अन्य प्रकार के दुर्व्यवहार से बचे लोगों ने गुमनाम रूप से अपनी कहानियों को एक ऑनलाइन फ़ॉर्म के रूप में पोस्ट किया, जो अक्सर बहुत ही व्यक्तिगत और कष्टदायक होती थीं. ऐसी हर एक कहानी दाख़िल करने पर, स्टोरफ्रंट में एक प्रिंटर सक्रिय होता था, जो एक लाइटबल्ब जलाते हुए कहानियों को कागज़ के रिबन पर रिले करता था. ऐमेण्डा फिंगबोधिपक्किया ने फिर इन कहानियों को, लटकती हुई जटिल मूर्तियों में पिरोया. उनका कहना है कि उन्हें उम्मीद है कि प्रदर्शनी के ज़रिये प्रत्येक कहानी के दर्द और नुक़सान को "शान्ति व करूणा का एक नया मार्ग प्रशस्त करने, और आगे बढ़ने के अवसर" में तब्दील करने में मदद मिलेगी. वह आगे कहती हैं, "हम अक्सर, नृशंस कृत्यों को देखकर मुँह मोड़ लेते हैं. लेकिन, दूसरों के लिये दरवाज़ा बन्द करके, हम ख़ुद अपनी मानवता के लिये दरवाज़ा बन्द कर देते हैं. कला इसे वापस ला सकती है." यह लेख संयुक्त राष्ट्र की डरबन घोषणा की बीसवीं वर्षगांठ के स्मरणोत्सव के हिस्से के रूप में प्रकाशित मल्टीमीडिया सुविधाओं की एक श्रृँखला में से एक है, जिसे नस्लवाद के ख़िलाफ़ वैश्विक लड़ाई में एक मील का पत्थर माना जाता है. --संयुक्त राष्ट्र समाचार/UN News

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