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पृथ्वी के तीसरे ध्रुव की रक्षा करें, एशिया और दुनिया की रक्षा करें : दक्षिण एशियाई जानकार

बीजिंग, 15 अक्टूबर (आईएएनएस)। संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता संधि के हस्ताक्षरकतार्ओं के 15वें सम्मेलन के दौरान छिंगहाई-तिब्बत पठार पारिस्थितिक सभ्यता और पारिस्थितिक सुरक्षा थीम वाला मंच 15 अक्तूबर को युन्नान प्रांत के खुनमिंग शहर में स्थित त्येनछी झील अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन और प्रदर्शनी केंद्र में आयोजित हुआ। चीन, पाकिस्तान, नेपाल, जर्मनी के विशेषज्ञ और विद्वान, अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान संगठनों का गठबंधन (एएनएसओ) के अध्यक्ष पाई छुनली, अंतर्राष्ट्रीय भौगोलिक संघ की परिषद के अध्यक्ष माइकल मीडोज सहित अंतरराष्ट्रीय संगठनों के नेताओं ने ऑनलाइन और ऑफलाइन के माध्यम से मंच में भाग लिया। मंच में भाग लेने वाले विशेषज्ञों और विद्वानों ने छिंगहाई-तिब्बत पठार के पारिस्थितिक पर्यावरण संरक्षण और हरित विकास पर चर्चा की। छिंगहाई-तिब्बत पठार, दुनिया का सबसे ऊंचा पठार है और इसे दुनिया की छत और पृथ्वी का तीसरा ध्रुव के रूप में जाना जाता है। यहां पीली नदी, यांग्त्जी नदी, गंगा, मेकांग, सिंधु, सालवीन और इरावदी सहित एशिया की सात महत्वपूर्ण नदियों का उद्गम स्थल है। इसे एशियाई जल मीनार के रूप में जाना जाता है। यह दुनिया भर में 3 अरब से अधिक लोगों के अस्तित्व और विकास से संबंधित है। मंच के अवसर पर, चाइना मीडिया ग्रुप के संवाददाता ने नेपाल, बांग्लादेश और भारत के विशेषज्ञों और विद्वानों का साक्षात्कार लिया। उन सभी ने कहा कि छिंगहाई-तिब्बत पठार का पारिस्थितिक वातावरण न केवल एशियाई देशों से संबंधित है, बल्कि वैश्विक पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता और सुरक्षा से भी संबंधित है। नेपाल के डंबारू बल्लब कट्टेल चीनी विज्ञान अकादमी के छिंगहाई-तिब्बत पठार संस्थान में विदेशी सहयोगी प्रोफेसर हैं, जो मुख्य रूप से छिंगहाई-तिब्बत पठार के साथ तीसरे ध्रुव क्षेत्र में हाइड्रोक्लाइमेटोलॉजी अनुसंधान में संलग्न हैं। उन्होंने कहा कि ग्लोबल वामिर्ंग से प्रभावित होकर छिंगहाई-तिब्बत पठार में बड़े पर्यावरणीय परिवर्तन हो रहे हैं, जिससे वैश्विक पारिस्थितिक तंत्र और जैव विविधता को खतरा है। कट्टेल ने कहा कि तीसरा ध्रुव क्षेत्र एशिया में रहने वाले करोड़ों लोगों के लिए मीठे पानी का एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्रोत है। तीसरे ध्रुव क्षेत्र का न केवल इस क्षेत्र की जलवायु प्रणाली पर गहरा प्रभाव पड़ता है, बल्कि उत्तरी गोलार्ध और यहां तक कि सारी दुनिया के जलवायु के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है। चीनी सरकार और राज्य के नेता हमेशा छिंगहाई-तिब्बत पठार पर पारिस्थितिक सभ्यता की उच्च-भूमि के संरक्षण को बहुत महत्व देते हैं। राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने बार-बार पृथ्वी के तीसरे ध्रुव पारिस्थितिकी की अच्छी तरह रक्षा करने और पठार के जीवन, वनस्पति और पहाड़ों की रक्षा करने की आवश्यकता पर जोर दिया है। बांग्लादेश के राजशाही विश्वविद्यालय के प्रोफैसर डॉ. शाह हुसैन अहमद महदी ने साल 2013 से साल 2015 तक पेइचिंग विश्वविद्यालय के लाइफ साइंसेज कॉलेज में पोस्ट-डॉक्टरल शोध किया। उन्होंने कहा कि चीन ने जैव विविधता के संरक्षण में काफी परिणाम हासिल किए हैं। इसने विभिन्न स्तरों और प्रकारों के लगभग 10 हजार प्राकृतिक संरक्षण केंद्रों को स्थापित किए हैं, जो थलीय राष्ट्रीय भूमि का लगभग 18 प्रतिशत का हिस्सा है। यह एक बहुत ही सराहनीय उपलब्धि है। छिंगहाई-तिब्बत पठार के पारिस्थितिक पर्यावरण के संरक्षण की बात करते हुए प्रोफेसर महदी ने कहा चीन ने पारिस्थितिक संरक्षण के लिए लाल रेखा प्रणाली तैयार की है, जिससे छिंगहाई-तिब्बत पठार सहित पारिस्थितिक रूप से नाजुक क्षेत्रों को सख्ती से संरक्षित किया गया है। छिंगहाई-तिब्बत पठार को एशियाई जल मीनार कहा जाता है, और बांग्लादेश में जमुना नदी भी तिब्बत में उत्पन्न हुई है। छिंगहाई-तिब्बत पठार की पारिस्थितिकी की रक्षा के लिए चीन द्वारा किए गए उपाय सराहनीय हैं। वहीं, भारतीय लाइव इंडिया टीवी चैनल के वरिष्ठ पत्रकार अभिनव जैन, जो लंबे समय से पर्यावरण संबंधी क्षेत्र में रिपोटिर्ंग करते हैं, ने कहा छिंगहाई-तिब्बत पठार का पारिस्थितिक पर्यावरण न केवल एशियाई देशों के साथ निकटता से जुड़ा हुआ है, बल्कि पूरी पृथ्वी-घर से भी जुड़ा हुआ है। जलवायु परिवर्तन के खतरे का मुकाबला करना सभी देशों के लिए साझा चुनौती है। हमें एक दूसरे के साथ सहयोग को मजबूत करना चाहिए, और पृथ्वी के तीसरे ध्रुव की रक्षा करना हमारी सामान्य जिम्मेदारी है। अभिनव ने कहा कि जैव विविधता का नुकसान और जलवायु परिवर्तन अभूतपूर्व दरों पर हो रहा है, जिससे मानवता के अस्तित्व को खतरा है और प्रकृति संकट में है। हाल के कुछ समय से छिंगहाई-तिब्बत पठार पर ग्लोबल वामिर्ंग का प्रभाव देखने को मिल रहा है, जो कि चिंता का विषय है। हमें समझना होगा कि ग्लोबल वामिर्ंग का हल किसी एक देश के हाथ में नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया को साथ आकर करना होगा। लोग हरे-भरे पहाड़ों को निराशा नहीं देते, तो हरे-भरे पहाड़ निश्चित रूप से लोगों को निराशा नहीं देंगे। 12 अक्तूबर को चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने वीडियो के माध्यम से सीओपी 15 शिखर सम्मेलन में भाग लेते हुए दिए भाषण में यह बात कही। पृथ्वी के तीसरे ध्रुव की रक्षा करना, न केवल एशिया की रक्षा करना है, बल्कि दुनिया की रक्षा करना भी है, और साथ-ही-साथ स्वयं मानव जाति की रक्षा करना भी है। (थांग युआनक्वेइ, चाइना मीडिया ग्रुप, खुनमिंग) --आईएएनएस एएनएम

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