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नेपाल: संक्रमणकालीन न्याय प्रक्रिया के ज़रिये, जवाबदेही व मुआवज़ा सुनिश्चित किये जाने पर ज़ोर

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) ने नेपाल में एक दशक लम्बी हिंसा पर विराम लगाने वाले शान्ति समझौते के संकल्पों को वास्तविकता में पूरा किया जाने की आवश्यकता पर बल दिया है. यूएन एजेंसी का मानना है कि संक्रमणकालीन न्याय प्रक्रिया के ज़रिये मानवाधिकार उल्लंघनों के मामलों में जवाबदेही और पीड़ितों के लिये मुआवज़ा तय करने से, स्थाई शान्ति की ज़मीन तैयार करने में मदद मिलेगी. यूएन मानवाधिकार कार्यालय की प्रवक्ता मार्टा हरटाडो ने मंगलवार को जिनीवा में बताया कि एक के बाद एक, सरकारों ने संक्रमणकालीन न्याय प्रक्रिया को एक खुले, परामर्शक और पीड़ित-केन्द्रित तरीक़े से आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताई है. इसके बावजूद, ये संकल्प लागू नहीं किये गए हैं. We urge #Nepal🇳🇵, 15 years after the end of 10-year conflict, to pursue a fair, comprehensive and transparent transitional justice process ensuring accountability for violations and truth, justice and reparation for victims, as the basis for lasting peace: https://t.co/2jkT06wIUG pic.twitter.com/nh2g12WMAD — UN Human Rights (@UNHumanRights) November 23, 2021 ग़ौरतलब है कि नेपाल में, 15 वर्ष पहले हुए एक शान्ति समझौते के ज़रिये, 10 वर्षों से चले आ रहे हिंसक संघर्ष पर विराम लगाने में मदद मिली थी. एक दशक तक जारी रही हिंसा में 13 हज़ार से अधिक लोगों की मौत हुई, जिनमें अधिकतर आम नागरिक थे. हिंसक टकराव के दौरान, दोनों पक्षों द्वारा मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन किये जाने के आरोप सामने आए थे, इनमें न्यायेतर हत्याएँ, यातना, यौन हिंसा और जबरन गुमशुदगी समेत अन्य मामले थे. इसके बाद से, नेपाल में शान्ति क़ायम रही है. वर्ष 2015 में एक नया संविधान घोषित व लागू किया गया, और अब देश, एक संघीय शासन ढाँचे व व्यवस्था की ओर अग्रसर है. यूएन मानवाधिकार प्रवक्ता ने कहा, “मगर, हमें संक्रमणकालीन न्याय के विषय में ठोस प्रगति के अभाव पर गहरी चिन्ता है, जोकि 21 नवम्बर 2006 पर हस्ताक्षर वाले, व्यापक शान्ति समझौते के तहत लिया गया एक अहम संकल्प था.” उन्होंने स्पष्ट किया कि संक्रमणकालीन न्याय के लिये क़ानूनी फ़्रेमवर्क में संशोधन के इरादे से फ़िलहाल कोई प्रगति नहीं हुई है. अधूरी उम्मीदें यूएन एजेंसी प्रवक्ता के मुताबिक़, सरकार ने वर्ष 2019 में, पीड़ित समूहों और नागरिक समाज के साथ, व्यापक स्तर पर परामर्श की बात कही थी जिससे उम्मीदें बढ़ी थीं. लेकिन जनवरी 2020 में, परामर्श वार्ता जल्दबाज़ी में आगे बढ़ाई गई, जिससे उम्मीदें धूमिल हो गईं. यूएन एजेंसी ने सचेत किया है कि वास्तविक संक्रमणकालीन न्याय प्रक्रिया के बिना, पीड़ितों की आवश्यकताओं को पूरा नहीं किया जा सकेगा. अनसुलझी पीड़ाओं से नेपाल को पूर्ण रूप से, आपसी मेलमिलाप व विकास मार्ग पर ले जाना मुश्किल होगा. संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार कार्यालय ने नेपाल में शान्तिनिर्माण में अहम भूमिका निभाई है. इसके तहत, अन्तरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप, संक्रमणकालीन न्याय प्रक्रिया के तहत समर्थन व विशेषज्ञता को आगे बढ़ाया जाएगा. “हम आशा करते हैं कि शान्ति समझौते की 15वीं वर्षगाँठ, नेपाल के नेताओं को लम्बे समय से अवरुद्ध संक्रमणकालीन न्याय प्रक्रिया को फिर से स्फूर्ति प्रदान करने के लिये प्रेरित करेगी, और यह सुनिश्चित करने के लिये भी कि यह अन्तरराष्ट्रीय मानकों व पीड़ितों की आकांकाओं व अधिकारों के अनुरूप हो.” जवाबदेही पर ज़ोर शान्ति समझौते के तहत तय संकल्पों में, हिंसक संघर्ष के दौरान आचरण के सम्बन्ध में वास्तविकता को सामने लाना है, और यह सुनिश्चित करना है कि पीड़ितों को न्याय व मुआवज़ा, दोनों प्राप्त हों. यूएन एजेंसी ने कहा कि इन उपायों के ज़रिये, हितधारकों के भरोसा हासिल कर पाने में मदद मिलेगी और गम्भीर मानवाधिकार हनन के मामलों में जवाबदेही सुनिश्चित की जा सकेगी, और पीड़ितों के लिये, सच्चाई, न्याय व मुआवज़ा सुनिश्चित किये जा सकेंगे. उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया के ज़रिये, मानवाधिकार उल्लंघनों व दुर्व्यवहारों के ऐसे मामल दोहराए जाने से रोकने में मदद मिलेगी, जिनसे देश एक दशक तक पीड़ित रहा है. साथ ही इससे नेपाल में स्थाई शान्ति प्राप्ति में मदद मिलेगी. बताया गया है कि इस प्रक्रिया की मदद से नेपाल में टिकाऊ विकास लक्ष्यों को साकार करने में योगदान दे पाना भी सम्भव होगा. विशेष रूप से टिकाऊ विकास का 16वाँ लक्ष्य, जोकि शान्तिपूर्ण व समावेशी समाजों के निर्माण, सर्वजन के लिये न्याय सुलभता और कारगर व जवाबदेही संस्थानों पर केन्द्रित है. --संयुक्त राष्ट्र समाचार/UN News

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