अश्वेत आंदोलन : जान लेविस के बाद एक और गांधी की तलाश .
अश्वेत आंदोलन : जान लेविस के बाद एक और गांधी की तलाश .

अश्वेत आंदोलन : जान लेविस के बाद एक और गांधी की तलाश .

ललित मोहन बंसल लॉस एंजेल्स, 27 जुलाई (हि.स.)। महात्मा गांधी के अहिंसा, शांति और सद्भाव आंदोलन के अनुगामी अश्वेत नेता जान लेविस नहीं रहे। बीते शनिवार जब उनके गांव ट्रॉय (अल्बामा) के खेत-खलिहानों से उनकी अंतिम शव यात्रा शुरू हुई तब प्रशासन को अनुमान नहीं था कि रविवार को उसी अल्बामा नदी के सेल्मा सेतु पर कोविड के बावजूद सैकड़ों लोग जमा हो जाएँगे। यह वही सेल्मा सेतु है, जहाँ इस अश्वेत नेता ने 07 मार्च 1965 में नागरिक अधिकारों के लिए बिगुल बजाया था। उन्होंने सैकड़ों निहत्थे प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व किया था। यों जान लेविस ने सन 1961 से छात्र जीवन से अन्याय और पक्षपात के ख़िलाफ़ लड़ाई शुरू कर दी थी। स्कूल में लंच वितरण में भेदभाव का मामला हो अथवा बस में श्वेत और अश्वेत को लेकर दुराव, एक छात्र नेता के रूप वह पक्षपात के ख़िलाफ़ थे। उन्होंने दो वर्ष बाद 'वाशिंगटन मार्च' में मार्टिन लूथर किंग का दामन पकड़ा और लिंकन स्मारक के सम्मुख इतना तेज़ तर्रार भाषण दिया कि मार्टिन लूथर किंग को उन्हें धैर्य रखने को कहना पड़ा। अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए गोरी पुलिस के हाथों सिर पर इतने डंडे खाए थे कि वह लहूलुहान हो गए थे, सिर की हड्डियाँ टूट गई थीं। इस छोटी सी अवस्था में जान लेविस के इस आंदोलन का एक लाभ यह हुआ कि देर-सवेर लोगों को मताधिकार का लाभ मिला। इसके बावजूद अमेरिका में अश्वेत समुदाय आज भी नस्लीय पक्षपात झेलने को विवश हैं। उन्हें मानवीय, शेक्षिणिक और रोज़गार के एक समान अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। जॉन राबर्ट लेविस की छह दिवसीय अंतिम शव यात्रा ट्रॉय, सेल्मा (मोंटगोमरी) होते हुए वाशिंगटन जाएगी, जहाँ से यह शव यात्रा 30 जुलाई को एटलांटा में विराम लेगी। लेविस का शव एटलांटा में ही एक बापतिस्ट चर्च सेंकचुरी में पूरे राजकीय सम्मान के साथ दफ़ना दिया जाएगा। अस्सी वर्षीय लेविस का 17 मार्च को निधन हुआ था। जान लेविस अटलांटा, जार्जिया से निरंतर तीन दशक तक डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसद थे। यह जॉन लेविस ही थे, जिन्होंने एक डेमोक्रेटिक सांसद के रूप में महात्मा गांधी और मार्टिन लूथर किंग जूनियर की विरासत और उनके नागरिक अधिकारों तथा नस्लीय पक्षपात के विचारों को जीवंत रखने के लिए प्रतिनिधि सभा में प्रस्ताव प्रेषित किया था। इस विधेयक का उद्देश्य विश्व की दो बड़ी लोकतंत्रीय व्यवस्था में पारस्परिक साझेदारी, पारस्परिक लोकतांत्रिक मूल्यों और आपसी सहयोग को बढ़ावा देना था। इससे पहले लेविस ने एक और विधेयक प्रस्तुत किया था, जिसमें गांधी-किंग के आदर्शों पर चलते हुए विश्व में अहिंसा, शांति और सद्भाव के माध्यम से समस्याओं के निदान पर ज़ोर दिया गया था। 'ब्लैक लाइव मैटर' को परवान चढ़ाने और पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ देशभर में पुलिस सुधारों के लिए प्रशासन को घुटनों के बल बैठने पर विवश करने वाले जान राबर्ट लेविस का एक ही मंत्र था, अहिंसा के बल पर जातिवाद, नस्लवाद और मानवीय/नागरिक अधिकारों के लिए बड़ी से बड़ी जंग जीती जा सकती है। अमेरिका में शीर्ष अश्वेत नेता मार्टिन लूथर किंग जूनियर और उन के परम सहयोगी जान लेविस महात्मा गांधी के सम्पर्क में तो कभी नहीं आए। उन्होंने महात्मा गांधी के साबरमती आश्रम में ज़रूर उनके अहिंसा, शांति और सद्भाव के सबक़ से अमेरिका में अश्वेत आंदोलन को बहुमुखी बनाने में दिशा दी है। विदित हो, अल्बामा नदी पर यही वह सेल्मा सेतु था, जहाँ जान लेविस के सिर से रक्त बहा था और उसी रक्त का नतीजा है कि अश्वेत नागरिकों को लगता है कि उन्हें आज फिर एक अहिंसा के पुजारी की दरकार है, जो प्रशासन को एक समान अधिकारों के लिए विवश कर सके। बता दें, लेविस की अंतिम शव यात्रा में लोगों की टी शर्ट पर लिखा था, 'गुड ट्रबल।' महात्मा गांधी के अहिंसा पथ से प्रेरित मार्टिन लूथर किंग ज़ू॰ के निधन के बाद पाँच दशक तक जान लेविस ने अश्वेत आंदोलन को जीवंत रखा। इस से वह अमेरिका में करोड़ों अफ़्रीकी-अमेरिकी जनसमुदाय के निर्विवाद नेता बन गए थे। अमेरिकी मीडिया में सूर्खियों में रहने वाले जान लेविस की यह अंतिम इच्छा थी कि वह अगले महीने अगस्त में वाशिंगटन डी सी में अब्राहम लिंकन स्मारक के सम्मुख एक बार फिर अश्वेत समुदाय को नस्लवाद के ख़िलाफ़ ज़ोरदार आंदोलन के लिए प्रेरित करते। उन्होंने मात्र बीस वर्ष की उम्र में इसी स्थान पर मार्टिन लूथर किंग जूनियर के साथ मंच साझा किया था। जॉन लेविस के जन्म स्थल ट्रॉय, मोंटगोमरी (अल्बामा) में शनिवार को जब उन्हें श्रद्धांजलि दी जा रही थी, उस समय उनके पारीवारिक मित्रों, स्थानीय जनप्रतिनिधियों और बापटिस्ट चर्च पादरी मौजूद थे। उन्होंने मूलत: एक तथ्य को रेखांकित किया कि इरादे नेक हों, तो बड़ी से बड़ी जंग जीती जा सकती है।-hindusthansamachar.in

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