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कोविड-19: हिरासत केंन्द्रों से रिहा हुए 45 हज़ार बच्चे, ‘अनुकूल न्याय समाधान सम्भव’

वैश्विक महामारी कोविड-19 की शुरुआत से अब तक, 45 हज़ार से अधिक बच्चे, हिरासत केन्द्रों से रिहा किये गए हैं और अब या तो वे अपने परिवार के साथ या किसी अन्य उपयुक्त माहौल में जीवन जी रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) ने अपने नए विश्लेषण में, बच्चों को हिरासत में रखे जाने पर रोक लगाने का आहवान करते हुए, नाबालिगों के लिये न्याय प्रक्रिया में सुधार की मांग की है. यूएन एजेंसी ने 'Detention of children in the time of COVID' शीर्षक वाली रिपोर्ट, बच्चों के साथ न्याय के विषय पर आयोजित हो रहे विश्व सम्मेलन से पहले जारी की है. दुनिया भर में कथित रूप से किसी अपराध के आरोप में, दो लाख 61 हज़ार से अधिक बच्चे हिरासत में रखे गए हैं. रिपोर्ट के अनुसार इन केन्द्रों पर बच्चों को उनकी आज़ादी से वंचित रखा जा रहा है. We have long known that justice systems are ill-equipped to handle the specific needs of children – a situation further exacerbated by the COVID-19 pandemic. We commend countries which heeded our call and released children from detention.https://t.co/5IlbvrT6cB — Henrietta H. Fore (@unicefchief) November 15, 2021 कम से कम 84 देश ऐसे हैं जहाँ देशों की सरकारों और हिरासत केन्द्रों के प्रशासनों ने, अप्रैल 2020 के बाद से हज़ारों बच्चों को रिहा किया है. यूनीसेफ़ ने, कोविड-19 महामारी का प्रकोप बढ़ने के मद्देनज़र, बन्द व भीड़भाड़ भरे केन्द्रों पर कोरोनावायरस संक्रमण का जोखिम बढ़ने के प्रति ध्यान आकृष्ट करते हुए, बच्चों को तत्काल रिहा किये जाने का आग्रह किया था. यूनीसेफ़ की कार्यकारी निदेशक हैनरीएटा फ़ोर ने कहा, “हम लम्बे समय से जानते हैं कि न्याय प्रणालियाँ, बच्चों की विशिष्ट ज़रूरतों का ख़याल रखने के लिये पूरी तरह सक्षम नहीं हैं. कोविड-19 महामारी से ये हालात और भी ख़राब हो गए.” “हम उन दशों की सराहना करते हैं, जिन्होंने हमारी बात सुनी और बच्चों को हिरासत से रिहा कर दिया.” यूएन एजेंसी की शीर्ष अधिकारी ने बताया कि इस क़दम से हम जिस बात को पहले से जानते थे, वही साबित हुई है कि बच्चों के लिये अनुकूल न्याय समाधान सम्भव हैं और उन्हें हासिल किया जा सकता है. हिरासत में बच्चे बच्चों को हिरासत में अनेक कारणों से रखा जाता है. मुक़दमे की कार्रवाई से पहले या बाद में, आव्रजन मामलों के दौरान, सशस्त्र संघर्ष और राष्ट्रीय सुरक्षा के सम्बन्ध में, या फिर हिरासत में रखे गए अभिभावकों के साथ. इन हिरासत केन्द्रों पर क्षमता से अधिक बन्दियों को रखा जाता है, और रहने की जगह बेहद सीमित होती है. यहाँ बच्चों के लिये पोषण, स्वास्थ्य देखभाल, और स्वच्छता सेवाओं की पर्याप्त सुलभता का अभाव है और उनके उपेक्षा, शारीरिक व मनोवैज्ञानिक दुर्व्यवहार और लिंग-आधारित हिंसा का शिकार होने का जोखिम अधिक होता है. बहुत से बच्चों के लिये वकीलों तक पहुँच पाना या पारिवारिक देखभाल सुलभ नहीं है और अक्सर वे स्वयं को हिरासत में रखे जाने के क़ानूनी पहलू को चुनौती दे पाने में असमर्थ होते हैं. कोविड-19 महामारी ने बच्चों के लिये न्याय को गहराई से प्रभावित किया: न्यायालय बन्द हो गए, अति-आवश्यक सामाजिक व न्याय सेवाओं की सुलभता पर पाबन्दी लग गई. तथ्य दर्शाते हैं कि सड़कों पर रह रहे बच्चों सहित अनेक अन्य को महामारी के दौरान करफ़्यू के आदेश व आवाजाही पर पाबन्दियों की अवहेलना करने के लिये हिरासत में ले लिया गया. समाधान यूएन एजेंसी के अनुसार अनेक देशों में रिकॉर्ड रखने की पुख़्ता व्यवस्था ना होने और डेटा प्रणाली पूरी तरह विकसित ना होने की वजह से, हिरासत में रखे गए बच्चों का वास्तविक आँकड़ा, इससे कहीं अधिक हो सकता है. बच्चों के लिये न्याय की नए सिरे से परिकल्पना करने और सभी बच्चों को हिरासत में रखे जाने का अन्त करने के लिये, सरकारों व नागरिक समाज संगठनों से निम्न उपायों की पुकार लगाई है: - न्याय एवं कल्याण प्रणालियों में बच्चों के क़ानूनी अधिकारों के प्रति जागरूकता प्रसार में निवेश - सभी बच्चों के लिये निशुल्क क़ानूनी सहायता, प्रतिनिधित्व व सेवाओं का विस्तार - क़ानूनी सुधारों के ज़रिये आपराधिक ज़िम्मेदारी के लिये उम्र बढ़ाए जाने सहित बच्चों को हिरासत में रखे जाने पर रोक - यौन हिंसा, दुर्व्यवहार व शोषण के बाल पीड़ितों के लिये न्याय, लैंगिक नज़रिये को समाहित करने वाली न्याय प्रक्रिया में निवेश - बच्चों के लिये अनुकूल विशेषीकृत, वर्चुअल व सचल अदालतों की स्थापना --संयुक्त राष्ट्र समाचार/UN News

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