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चीन के साथ जापान की कूटनीति गुमराह के पथ पर

बीजिंग, 29 अप्रैल (आईएएनएस)। जापानी विदेश मंत्रालय ने 27 अप्रैल को कूटनीतिक नीले पत्र का 2021 संस्करण जारी किया। इसने एक तरफ चीन और जापान के बीच द्वीप मुठभेड़, दक्षिण चीन महासागर, हांगकांग, शिनच्यांग आदि मुद्दे की चर्चा की और तथाकथित चीन खतरे को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया। दूसरी तरफ, आर्थिक स्तर पर चीन-जापान संबंधों को सबसे महत्वपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों में से एक कहा। राजनीति और अर्थव्यवस्था का गंभीर अलगाव जापान की चीन नीति के भारी विरोधाभास को दिखाता है। दरअसल, चीन की नीति पर योशीहिदे सुगा के मंत्रिमंडल द्वारा असाधारण कार्रवाइयों की श्रृंखला, खासकर थाईवान जलडमरुमध्य की स्थिति के बारे में खुले आम तथाकथित चिंता व्यक्त की, जिससे जाहिर है कि इसने चीन-जापान संबंधों को संभालने में लाल रेखा को गंभीरता से पार कर लिया है। जापान के कूटनीतिक रुख में बदलाव का संबंध केवल अमेरिका-जापान गठबंधन कारकों से नहीं है, बल्कि योशीहिदे सुगा के पिछले साल सितंबर से सत्ता में आने के बाद खराब प्रतिष्ठा से भी जुड़ा है। इसके साथ ही महामारी के खिलाफ कमजोरी और आर्थिक मंदी से भी संबंधित है। इस तरह, योशीहिदे सुगा का मंत्रिमंडल अमेरिका के करीब होने और चीन को ताकत दिखाने के लिए एक महत्वपूर्ण साधन बना, ताकि फिर से चुनाव के लिए दबाव को कम किया जा सके। लेकिन वास्तविकता यह है कि जापान अभी भी आर्थिक रूप से चीनी बाजार पर बहुत निर्भर करता है। चीन और जापान में आर्थिक विकास के विभिन्न चरण हैं, लेकिन उनके पास मजबूत पूरक लाभ हैं। जाहिर है, चीन के साथ जापान के राजनीतिक टकराव से चीन पर अपनी आर्थिक निर्भरता के साथ एक बहुत बड़ा विरोधाभास पैदा हुआ है। जापान को यह भी महसूस करना चाहिए कि चीन के एक करीबी पड़ोसी के रूप में जापान चीन और अमेरिका दोनों महाशक्तियों के बीच अवसरवाद ढूंढ़ने से खुद के राष्ट्रीय हितों को कोई लाभ नहीं मिलेगा। आज के जापान को कूटनीतिक गुमराह से बाहर निकल कर चीन के साथ संबंधों की फिर से जांच करने की आवश्यकता है। ( साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग ) --आईएएनएस आरजेएस

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