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अफ़ग़ानिस्तान में, मानवाधिकार रक्षकों के लिये गम्भीर डर का माहौल

संयुक्त राष्ट्र की एक स्वतंत्र मानवाधिकार रैपोर्टेयर ने कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान में मानवाधिकार पैरोकारों ने बताया है कि वो अब डर, धमकियों और देश के मौजूदा हालात पर बढ़ती हताशा के माहौल में जी रहे हैं. मानवाधिकार पैरोकारों पर संयुक्त राष्ट्र की विशेष रैपोर्टेयर मैरी लॉलर ने कहा है कि “ख़तरा बहुत वास्तविक है”. उन्होंने अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से तत्काल, एक संयोजित कार्रवाई किये जाने का आग्रह किया है. 🇦🇫 #Afghanistan: human rights defenders are living under a climate of fear, threats, intense insecurity & growing desperation, says UN expert @MaryLawlorhrds. She calls for urgent coordinated action from the international community: https://t.co/fWJ9qxJuZJ#StandUp4HumanRights pic.twitter.com/hAy5rNxJ66 — UN Special Procedures (@UN_SPExperts) November 3, 2021 मैरी लॉलर ने कहा, “मानवाधिकार पैरोकार, उन्हें मिलने वाली सीधी धमकियों के बारे में बताते हैं, जिनमें महिलाओं के ख़िलाफ़ लिंग आधारित धमकियाँ भी शामिल हैं. इनमें मारने-पीटने, गिरफ़्तार किये जाने, जबरन ग़ायब कर दिये जाने, और पैरोकारों की हत्याएँ तक किये जाने के मामले शामिल हैं.” उन्होंने बताया कि मानवाधिकार पैरोकार, लगातार डर के माहौल में जीने की बात कहते हैं. सबसे ज़्यादा जोखिम का सामना करने वाले मानवाधिकार पैरोकारों में, वो लोग शामिल हैं जो कथित युद्धापराधों की जाँच-पड़ताल कर रहे हैं और उनके बारे में सूचनाएँ व दस्तावेज़ एकत्र कर रहे हैं, ख़ासतौर से महिलाएँ, और उनमें भी आपराधिक मामलों की वकील व संस्कृतिक अधिकारों के पैरोकार ज़्यादा जोखिम का सामना कर रहे हैं. कुछ मानवाधिकार पैरोकारों ने मैरी लॉलर को बताया कि उन्होंने अपनी पहचान छुपाने के लिये, अपनी ऑनलाइन मौजूदगी सम्बन्धी तमाम डेटा मिटा दिया है, और तालेबान, अब उन्हें तलाश करने के लिये, अन्य तरीक़े अपना रहे हैं. मसलन, एक मानवाधिकार पैरोकार को, उसकी टांग में लगी चोट के ज़रिये पहचाना गया. तत्काल कार्रवाई स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ मैरी लॉलर के अनुसार, तालेबान ने मानवाधिकार और सिविल सोसायटी संगठनों के कार्यालयों पर छापे मारे हैं, जिस दौरान वो लोगों के नाम, पते-ठिकाने और सम्पर्क सूत्रों की तलाश कर रहे थे. यूए विशेषज्ञ का ने बताया, “बहुत से मानवाधिकार पैरोकार, अपने समुदायों में बहुत जाने-पहचाने हैं, विशेष रूप से ग्रामीण इलाक़ों में. ऐसे मानवाधिकार रक्षक, गोपनीय रूप से शहरी इलाक़ों में रहने लगे हैं, मगर वहाँ भी उन्हें जल्दी-जल्दी अपने ठिकाने बदलने पड़ते हैं.” “ज़्यादातर मानवाधिकार रक्षकों की आय के स्रोत ख़त्म हो गए हैं, जिसके कारण सुरक्षित ठिकाने तलाश करने के उनके विकल्प और भी सीमित हो गए हैं.” मैरी लॉलर ने तत्काल अन्तरराष्ट्रीय सहायता व समर्थन की पुकार लगाई है, जिसमें जोखिम का सामना कर रहे ऐसे लोगों को, उनके परिवारों सहित, वहाँ से कहीं सुरक्षित ठिकानों पर पहुँचाने के लिये तत्काल कोई योजना लागू करने की पुकार भी शामिल है. उन्होंने कहा कि ये वो लोग हैं जो देश में, मानवाधिकारों की स्थिति बेहतर बनाने के लिये, पिछले क़रीब 20 वर्षों से संघर्ष करते रहे हैं. उन्होंने कहा, “बहुत से मानवाधिकर रक्षकों का कहना है वो बेसहारा महसूस कर रहे हैं. जिन देशों ने, पिछले 20 वर्षों के दौरान उनके काम को समर्थन दिया है, उन्हें अब इन बेसहारा रह गए सैकड़ों मानवाधिकार रक्षकों को वीज़ा, यात्रा दस्तावेज़ और अपने यहाँ शरण देने का मार्ग उपलब्ध कराने और उनकी मदद करने के लिये और ज़्यादा क़दम उठाने चाहिये.” आपबीतियाँ यूएन विशेष रैपोर्टेयर ने, 100 से भी ज़्यादा मानवाधिकार रक्षकों से, ऑनलाइन जानकारियाँ हासिल करने के बाद, अपनी ये रिपोर्ट तैयार की है. अफ़ग़ानिस्तान के पश्चिमी हिस्से में रहने वाली एक महिला ने बताया कि हर दिन 5 से 10 लोग गिरफ़्तार किये जा रहे हैं, और बहुत से परिवार, पहचान लिये जाने के डर में जी रहे हैं. मैरी लॉलर ने कहा, “बहुत से परिजन, रास्तों पर रखे गए अपने सम्बन्धियों के शवों की पहचान करके उन्हें अपनाने से भी बच रहे हैं. वो बहुत डरे हुए हैं. विदेशी सेनाओं की देश से वापसी की योजनाओं में मानवाधिकार रक्षकों की स्थिति पर कोई विचार नहीं किया गया.” एक अन्य मानवाधिकार कार्यकर्ता ने दलील देते हुए कहा कि “तालेबान से उनकी कथनी पर अमल करने और अपने वादों पर अटल रहने की अपेक्षा नहीं की जा सकती” और ये भी कि “भविष्य बहुत अन्धकारमय नज़र आ रहा है.” 34 प्रान्तों में मानवाधिकारों के लिये काम करने वाली एक महिला मानवाधिकार कार्यकर्ता ने भरोसा देने के अन्दाज़ में कहा कि वो मानवाधिकार रक्षा के क्षेत्र में, 20 वर्षों के दौरान हासिल की गई प्रगति को बचाना चाहती हैं, मगर वो अपने घर से निकलकर दफ़्तर भी नहीं पहुँच सकतीं. उन्होंने कहा कि उन जैसे लोगों को, “विदेशी एजेण्ट कहकर बदनाम किया जा रहा है.” एक अन्य मानवाधिकार रक्षक ने कहा कि 38 हज़ार क़ैदियों को रिहा कर दिया गया है, उनमें से बहुत से क़ैदियों के अपराध न्याय व क़ानून के शासन के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों से सम्बन्धित थे. और इस तरह के क़ैदी, अब मानवाधिकार पैरोकारों के लिये सीधा ख़तरा हैं. एक महिला ने, अपने 12 वर्षीय बच्चे का, तालेबान द्वारा उत्पीड़न किये जाने की शिकायत भी, मैरी लॉलर से की, और उनसे मदद की गुहार लगाई. यूएन विशेष रैपोर्टेयर ने कहा, “उस महिला का मानना है कि हम अब भी बच्चों के अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं, मगर उस महिला को जो अब भी स्पष्ट नहीं था वो ये कि, उनके पास ख़ुद की और अपने बेटे की रक्षा करने की क्षमता नहीं बची है, क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान में मानवाधिकारों की रक्षा के अभियान के साथ-साथ वो ख़ुद भी अलग-थलग पड़ गई हैं.” विशेष रैपोर्टेयर और स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों की नियुक्ति जिनीवा स्थित यूएन मानवाधिकार परिषद करती है. उनका कार्य, किसी विशेष मानवाधिकार मुद्दे या किसी देश की स्थिति के बारे में, जाँच-पड़ताल करना होती है. ये पद मानद होते हैं और इन विशेषज्ञों को, उनके काम के लिये, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन नहीं मिलता है. --संयुक्त राष्ट्र समाचार/UN News

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