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सौ साल पहले 1921 में हुए तुलसा नस्लीय नरसंहार में सरकार, मीडिया की मिलीभगत का आरोप

वाशिंगटन, 22 जून (आईएएनएस)। वाशिंगटन पोस्ट की हालिया जांच से पता चला है कि साल 1921 के तुलसा नस्लीय नरसंहार की सच्चाई और तबाही को जानबूझकर स्थानीय सरकारों और मीडिया आउटलेट्स की मिलीभगत के तहत छुपाया गया था। सिन्हुआ न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 1921 में ओक्लाहोमा राज्य के तुलसा शहर का एक जिला ग्रीनवुड, सबसे अमीर अफ्रीकी-अमेरिकी समुदायों में से एक था। उस वर्ष 31 मई से 1 जून तक नरसंहार जारी रहा , जिसे बाद में अमेरिकी इतिहास में नस्लीय हिंसा की सबसे खराब घटनाओं के रूप में जाना जाने लगा। 19 वर्षीय अफ्रीकी-अमेरिकी डिक रोलैंड पर तुलसा शहर में एक व्हाइट लिफ्ट ऑपरेटर सारा पेज पर हमला करने का आरोप लगाने के बाद ये नरसंहार शुरू हुआ था। वाशिंगटन पोस्ट द्वारा मई के अंत में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि रोलैंड के खिलाफ लगा आरोप आखिरकार स्थानीय श्वेत भीड़ और काले लोगों के बीच संघर्ष में बदल गया। रिपोर्ट में कहा गया है, इसके बाद भगदड़ मच गई, जिसके बारे में इतिहासकार सोचते हैं कि 300 से अधिक लोग मारे गए और करीब 10,000 लोग बेघर हो गए। हालांकि, हताहतों और संपत्ति के विनाश के लिए किसी को भी जिम्मेदार नहीं ठहराया गया। इतना ही नहीं, घर के मालिकों और व्यवसायों द्वारा दायर बीमा दावों को खारिज कर दिया गया था, जो आंशिक रूप से दर्शाता है कि अमेरिकी संस्थान में निहित नस्लवाद त्रासदी इसकी प्रमुख वजह थी। वाशिंगटन पोस्ट ने तुलसा सिटी,तुलसा काउंटी, ओक्लाहोमा राज्य और तुलसा चैंबर ऑफ कॉमर्स के खिलाफ पिछले साल तीन बचे लोगों द्वारा पेश एक पुनर्मूल्यांकन मुकदमे का हवाला देते हुए कहा, शहर का पुलिस विभाग और पूरे देश के पुलिस विभाग के लोग और सारे सफेद तुलसान पुलिस ग्रीनवुड जिले के लगभग 40 शहर ब्लॉकों को हत्या, लूट और जलाने के लिए जिम्मेदार ठहराए जा सकते हैं। मुकदमे में कहा गया है, स्टेट नेशनल गार्ड इस गुस्से में सफेद लोगों भीड़ के साथ ग्रीनवुड के काले निवासियों की हत्या और लूटपाट और संपत्ति को नष्ट करने में शामिल हुए। शहर, शेरिफ, चैंबर और काउंटी ने नरसंहार के भड़काने वाले के रूप में अभियोजन के लिए अश्वेत समुदाय के नेताओं और नरसंहार के पीड़ितों को निशाना बनाया गया। साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने तुलसा, उसके पुलिस विभाग और राज्य के खिलाफ पहले के मुकदमे को बिना टिप्पणी के खारिज कर दिया था, जबकि निचली अदालतों ने फैसला सुनाया था कि दावों पर सीमाओं की दो साल के कानून की अवधि 1923 में समाप्त हो गई थी। इस बीच, तुलसा में जो कुछ हुआ था, उसके बारे में मीडिया कवरेज भी मितभाषी था। वाशिंगटन पोस्ट ने कहा, नरसंहार के बाद दशकों तक जो हुआ उसके बारे में चुप्पी साधी हुई थी। इससे तुलसा में लोगों ने बहुत कुछ सीखा। रिपोर्ट में कहा गया है, धीरे-धीरे, जिन लोगों ने हिंसा देखी, वे अपनी यादों को अपने साथ लेकर मर गए। --आईएएनएस एचके/आरजेएस

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