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फ़ुटबॉल डिज़ाइन के ज़रिये सदभावना सन्देश

यूएन शरणार्थी एजेंसी (UNHCR) ने, लोगों को साथ लाने में, खेल की ताक़त को पहचानने के लिये, वार्षिक ‘यूथ विद रिफ्यूजी आर्ट कॉन्टेस्ट’ के विजेताओं की घोषणा की ही. विजयी डिज़ाइनों में से पाँच फ़ुटबॉल पर, ऑनलाइन बिक्री के लिये उपलब्ध होंगे. इनकी आमदनी, शरणार्थियों के खेल कार्यक्रमों को प्रोत्साहन देने में इस्तेमाल की जाएगी. भारत में एक अफ़ग़ान शरणार्थी, 16 वर्षीय नादिरा गंजी भी इस प्रतियोगिता के विजेताओं में से एक हैं. विजेता अफ़गान शरणार्थी, 16 वर्षीय नादिरा गंजी के रेखा-चित्र में विविध खेलों का एक समूह चित्रित है, जो साथ मिलकर खेलते हुए, सदभाव का सन्देश दे रहे हैं. Through her winning ball design, Nadira, a 16-year-old Afghan refugee in India, sheds light on the importance of inclusion of disabled people and refugees in sport. Buy her inspiring ball to support sport for @refugees https://t.co/WeMT4J8jqh pic.twitter.com/p3gwj9cZgv — UNHCR Asia Pacific (@UNHCRAsia) September 11, 2021 16 वर्षीय नादिरा गंजी ने, खेलों को अधिक समावेशी बनाने की आवश्यकता को उजागर करने के मक़सद से ही, फ़ुटबॉल डिज़ाइन के लिये यह चित्र क़ागज़ पर उकेरा था. विजेता घोषित होने पर उनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था, "मैं अपनी भावना व्यक्त नहीं कर सकती कि मैं यह जानकर कितनी ख़ुश हूँ कि मैं पाँच वैश्विक विजेताओं में से एक हूँ. सच में, अब भी इस पर विश्वास नहीं हो रहा है." नादिरा गंजी ने कहा, "मैंने खेल के समावेशी पहलू को दिखाते हुए यह सन्देश देने की कोशिश की है कि यह लोगों को एक साथ जोड़ने में कैसे सक्षम हो सकता है." "मैं यह दिखाना चाहती थी कि खेलों में हर किसी के लिये आशा व ख़ुशी का संचार करने के साथ-साथ, लोगों के जीवन को बदलने की सामर्थ्य भी है." बहुमुखी प्रतिभा की धनी नादिरा बहु-प्रतिभा की धनी कलाकार, एक विपुल चित्रकार, लेखक और डिज़ाइनर हैं. एक अफ़गान शरणार्थी के रूप में, 2017 से भारत में रह रही नादिरा की बहुमुखी प्रतिभा के कई पहलू हैं. वह भारत की राजधानी दिल्ली के एक अपार्टमेंट में अपनी माँ और छह भाई-बहनों के साथ रहती हैं. अधिक उम्र होने की वजह से, स्कूलों में दाखिला न मिल पाने के कारण, नादिरा फिलहाल ‘ओपन राष्ट्रीय विद्यालयी शिक्षा संस्थान’ से दसवीं कक्षा की पढ़ाई कर रही हैं. विकलांगता के साथ जन्मी, नादिरा बचपन से ही कृत्रिम दाहिने पैर पर निर्भर हैं. इससे उनकी शारीरिक गतिशीलता पर प्रभाव पड़ता है, इसलिये वह अपना ज़्यादातर समय घर के भीतर ही बिताती हैं, जबकि उनके छह भाई-बहन बाहर खेलते हैं. अकेले समय बिताने की वजह से नादिरा का रुझान हुआ - कला के माध्यम से रचनात्मक अभिव्यक्ति में – और फिर जल्दी ही, पेंटिंग के साथ उनका एक मज़बूत रिश्ता बन गया. वो बताती हैं, “मैं पाँच साल की उम्र से चित्रकारी कर रही हूँ. अपनी भावनाओं को अपनी कला के माध्यम से व्यक्त करती हूँ. जब भी मैं अकेली महसूस करती हूँ, चित्रकारी करने लगती हूँ. इन चित्रों को मैंने अपना मित्र बना लिया है. मैं कभी-कभी उनसे बातें भी करती हूँ और इससे मेरा दुख दूर हो जाता है." नादिरा अधिकतर जानवरों के चित्र बनाती हैं.उनका मानना है, "हर जानवर अपना चरित्र दर्शाता है, जैसे भालू ताक़त और पक्षी आज़ादी का प्रतिनिधित्व करते हैं." रचनात्मक भविष्य का दृष्टिकोण अपनी कलात्मक अभिव्यक्ति के लिये नादिरा का एक अनूठा दृष्टिकोण है. हाल ही में उन्होंने सात घण्टे के भीतर कपड़ों के 48 के डिज़ाइन तैयार किये. वो कहती हैं, “कभी-कभी मुझे लगता है कि मेरी क़लम में जादू है. मानो इसका अपना ख़ुद का दिमाग़ है और यह अपने आप डिज़ाइन तैयार करता है.”. पिछले ढाई साल में उन्होंने लगभग 385 डिज़ाइन बनाए हैं. वो कहती हैं, "मैं दुनिया की सबसे कम उम्र की पेशेवर डिज़ाइनर बनना चाहती हूँ." कभी-कभी, नादिरा दर्ज़ी की दुकान से बचे कपड़े उठा लाती थीं और उनसे अपने बनाए हुए डिज़ाइन, सिलाई करके बनाती थीं. उन्होंने बताया, "मैंने अपनी माँ को देखकर सिलाई करना सीखा.मैंने सुई और धागे का उपयोग करना सीखा और फिर अपने खिलौनों के लिये कपड़े डिज़ाइन करना शुरू कर दिया." नादिरा चाहती हैं कि बेकार की प्रथाओं को दरकिनार करके हर चीज़ को कला में उकेर दिया जाए. वह ख़ुद री-सायकिल कागज़ भी बनाती हैं, जिसे वो अपने चित्र बनाने के लिये इस्तेमाल करती हैं. ©UNHCR/Daniel Ginsianmung नादिरा ने युवाओं के लिये लगभग 258 छोटी-छोटी सलाहों की एक सूची तैयार की है, जिसे वो एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित करना चाहती हैं. नादिरा ने अपने 17वें जन्मदिन के लिये, एक गुप्त योजना तैयार की है, जिसमें उन्होंने युवाओं के लिये लगभग 258 छोटी-छोटी सलाहों की एक फ़ेरहिस्त लिखी है. वह कहती हैं, "मैं इन सलाहों को एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित करना चाहती हूँ. मैं पिछले आठ महीनों से गुप्त रूप से इस पर काम कर रही हूँ.” इन 258 सलाहों के पुलिन्दे में से, उनकी पसन्दीदा सलाह है, "ख़ुदा आपके सामने ऐसी कोई स्थिति नहीं रखेंगे, जो आप सम्भाल न पाएँ. मनुष्य होने के नाते, यह हमारा कर्तव्य है कि हम ईश्वर द्वारा दी गई किसी भी ज़िम्मेदारी को स्वीकार करें." उन्होंने कहा, वो ख़ुद भी इस सलाह पर चलती हैं. "मेरी हालत को देखते हुए, मैं ईश्वर की शुक्रगुज़ार हूँ, कि मुझे इतनी प्रतिभाओं से नवाज़ा है." नादिरा की माँ हमीदा, अकेले ही सात बच्चों की परवरिश कर रहीं हैं, वो कहती हैं, “एक अभिभावक के रूप में, मुझे नादिरा पर मुझे बहुत गर्व है. वह बेहद मेधावी है. मुझे उम्मीद है कि वो अपने जुनून और सपनों को पूरा करने में पूरी तरह सक्षम है." नादिरा कहती हैं, “मुझे अपनी प्रतिभा साबित करने के लिये बस एक मौक़ा चाहिये. मैं दुनिया को अपने डिज़ाइन दिखाना चाहती हूँ. मुझे अपने आप पर पूरा विश्वास है. बस एक ऐसे जन की ज़रूरत है, जो मुझ पर भरोसा करे." खेल के ज़रिये सदभाव ©UNHCR/ Daniel Ginsianmung 16 वर्षीय नादिरा गंजी ने, खेलों को अधिक समावेशी बनाने की आवश्यकता को उजागर करने के मक़सद से ही, फ़ुटबॉल डिज़ाइन के लिये यह चित्र कागज़ पर उकेरा था. इस प्रतियोगिता में, 100 देशों के 1600 से अधिक युवा कलाकारों ने "टुगेदर थ्रू स्पोर्ट" थीम से सम्बन्धित कलाकृतियाँ और फुटबॉल डिज़ाइन प्रस्तुत किए थे. प्रतिभागियों में से एक तिहाई. ख़ुद शरणार्थी, आश्रय चाहने वाले या आन्तरिक रूप से विस्थापित लोग थे. --संयुक्त राष्ट्र समाचार/UN News

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