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वैश्विक खाद्य क़ीमतें एक दशक से अधिक समय के उच्चतम स्तर पर

संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (एफ़एओ) ने गुरुवार को घोषणा की है कि विश्व खाद्य क़ीमतों का संयुक्त राष्ट्र मापदण्ड, जुलाई 2011 के बाद उच्चतम स्तर पर पहुँच गया है, जोकि एक नया चरम है. विभिन्न खाद्य वस्तुओं की अन्तरराष्ट्रीय क़ीमतों पर नज़र रखने वाला, FAO फ़ूड प्राइस इण्डैक्स सितम्बर से लगातार तीसरे महीने बढ़कर, 3.9 प्रतिशत पर पहुँच गया है. कैनेडा, रूस और अमेरिका सहित प्रमुख निर्यातक देशों में कम फ़सल होने के कारण अनाज की क़ीमतों में कुल मिलाकर 3.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जिसमें गेहूँ में पाँच प्रतिशत की वृद्धि देखी गई. साथ ही, अन्य प्रमुख अन्न की क़ीमतों में भी बढ़ोत्तरी हुई. A new report launched today by @FAO & @IRENA on the side lines of #COP26Glasgow explores the relationship between the world’s agri- #FoodSystems and renewable energy and argues that solutions are within our grasp. 👉 https://t.co/XQ27gI8aJP #renewables #COP26 pic.twitter.com/shCEVDv0mX — FAO Newsroom (@FAOnews) November 4, 2021 वनस्पति तेल सूचकांक, अब तक के सबसे ऊँचे स्तर पर, 9.6 प्रतिशत ऊपर चला गया है, और जैसे-जैसे ख़रीदार दोबारा भण्डारण की कोशिश कर रहे हैं, मक्खन, कम वसा वाले मिल्क पाउडर व वसायुक्त दूध पाउडर की बढ़ती मांग के कारण, दुग्ध उत्पादों में 2.6 अंकों की वृद्धि हुई है. इसके विपरीत पनीर की क़ीमतें स्थिर रहीं. चीन से पोर्क उत्पादों की कम ख़रीद और ब्राज़ील से गोमांस में तेज़ गिरावट के बीच, लगातार तीसरे महीने मांस सूचकांक में गिरावट आई. वहीं, मुर्गी-पालन और भेड़ की कीमतें बढ़ीं. छह महीने की लगातार वृद्धि के बाद, सीमित वैश्विक मांग और निर्यात के लिये बड़े अधिशेष के कारण, चीनी की क़ीमतों में भी 1.8 प्रतिशत की गिरावट देखने को मिली. रिकॉर्ड अनाज उत्पादन पिछले वर्ष की तुलना में, 2021 में वैश्विक अनाज उत्पादन में वृद्धि होने और उसके लगभग 279.3 करोड़ टन के एक नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुँचने का अनुमान है. 2021/22 के लिये विश्व अनाज की खपत 1.7 प्रतिशत की वृद्धि की ओर बढ़ रही है, जिसका कारण गेहूँ की वैश्विक खाद्य खपत में अनुमानित बढ़ोत्तरी है, जो बढ़ती वैश्विक आबादी के साथ बढ़ रही है. भोजन और जलवायु ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP26) के मौके पर गुरुवार को जारी एक नई रिपोर्ट के अनुसार, इस सभी खाद्य पदार्थों के उत्पादन, वितरण और खपत में, दुनिया की कुल ऊर्जा का लगभग एक तिहाई हिस्सा इस्तेमाल होता है. दुनिया की आबादी को भोजन मुहैया कराना भी, लगभग एक तिहाई वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार है, जिससे यह जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ लड़ाई में प्राथमिकता बन जाता है. यह रिपोर्ट, कृषि-खाद्य प्रणालियों के लिये अक्षय ऊर्जा - टिकाऊ विकास लक्ष्यों और पेरिस समझौते की ओर’ ( Renewable energy for agri-food systems – Towards the Sustainable Development Goals and the Paris Agreement), इस बात के कई उदाहरण साझा करती है कि इन लक्ष्यों को कैसे हासिल किया जा सकता है. उदाहरण के लिये, सौर सिंचाई के ज़रिये, पानी तक उपलब्धता बनाने में सुधार किया जा सकता है, कई फ़सल चक्रों को सक्षम किया जा सकता है, और वर्षा के बदलते स्वरूपों के बावजूद सहनक्षमता बढ़ाई जा सकती है. भारत में, सौर सिंचाई पम्पों के उपयोग से उन किसानों की आय में कम से कम 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जिनके पास बारिश ही एकमात्र विकल्प था. रवाण्डा में, छोटे किसानों की पैदावार लगभग एक तिहाई बढ़ी है. एक वीडियो सन्देश में, एफ़एओ के महानिदेशक, क्यु डोंग्यु ने तर्क दिया कि रिपोर्ट "से स्पष्ट है कि कृषि-खाद्य प्रणालियों में अक्षय ऊर्जा समाधानों को लागू करने के अनेक अवसर हैं." बीच की दीवारें तोड़ना इस रिपोर्ट में, नवीकरणीय ऊर्जा निवेशों को निर्देशित करने के लिये बेहतर डेटा संग्रह, वित्त तक बेहतर पहुँच और जागरूकता बढ़ाने व क्षमता निर्माण पर अधिक ध्यान देने जैसी सिफारिशें भी पेश की गई हैं. न केवल एक तिहाई कृषि-खाद्य उत्सर्जन, ऊर्जा के उपयोग (उदाहरण के लिये कृषि मशीनरी के लिये ईंधन) की उपज हैं, बल्कि 2000 और 2018 के बीच, इस संख्या में 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. रिपोर्ट के अनुसार, यह बढ़ोत्तरी मुख्य रूप से एशिया में सिंचाई पम्प, कृषि मशीनरी, प्रसंस्करण उपकरण और उर्वरक जैसे मशीनीकरण के कारण हुई है. वैश्विक आबादी के लगभग 15 प्रतिशत हिस्से, यानि अफ़्रीका के लिये भोजन उत्पादन में ऊर्जा का उपयोग काफी हद तक स्थिर रहा है, और यह वैश्विक खपत का केवल 4 प्रतिशत है. यह रिपोर्ट एफ़एओ और अन्तरराष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा एजेंसी (आईआरईएनए) के साथ संयुक्त रूप से तैयार की गई है. --संयुक्त राष्ट्र समाचार/UN News

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