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दुनिया का पेट भरने में, ग्रामीण महिलाओं की अहम भूमिका रेखांकित करता दिवस

लैंगिक समानता व महिलाओं की बेहतरी के लिये सक्रिय संयुक्त राष्ट्र संस्था – यूएन वीमैन का कहना है कि वैसे तो ग्रामीण इलाक़ों में महिलाएँ व लड़कियाँ, खाद्य प्रणालियों में बहुत अहम व ज़रूरी भूमिका निभाती हैं मगर, फिर भी उन्हें पुरुषों के समान अधिकार व शक्ति हासिल नहीं है, इसलिये उन्हें आमदनी भी कम होती है. इसके अलावा, महिलाओं व लड़कियों को उच्च स्तर की खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ता है. यूएन महिला संस्था ने, 15 अक्टूबर, शुक्रवार को मनाए गए अन्तरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस के मौक़े पर, महिलाओं व लड़कियों के साथ इन हालात को ख़त्म किये जाने की पुकार लगाई है. Despite ensuring the world can be fed, many rural women suffer from discrimination, systemic racism & structural poverty. We must invest in rural women so they can access the healthcare, social protection & information services they need. pic.twitter.com/ATJvivT6AV — António Guterres (@antonioguterres) October 15, 2021 इसके लिए, पुरुषों व महिलाओं के बीच असमान शक्ति सम्बन्धों के चलन को तोड़ने और लैंगिक विषमताओं का सामना करने का भी आहवान किया है. सबसे आख़िर में खाना खाती हैं महिलाएँ दुनिया भर में खाद्य प्रणालियाँ महिलाओं के श्रम पर टिकी हुई हैं. वो फ़सलें उगाती हैं, उन्हें अनाज के लिये प्रसंस्कृत भी करती हैं और वितरण और बाज़ार में बिक्री का प्रबन्ध भी करती हैं. ये सब करके, महिलाएँ अपने परिवारों और समुदायों की ख़ुशहाली और रहन-सहन में योगदान करती हैं. मगर, अक्सर इन्हीं महिलाओं को समुचित व पर्याप्त मात्रा में भोजन नहीं मिल पाता है, और उन्हें, पुरुषों की तुलना में, भूखे पेट रहने, कुपोषण और खाद्य असुरक्षा के ज़्यादा जोखिम का सामना करना पड़ता है. लैंगिक भेदभावपूर्ण परम्पराओं के कारण, अक्सर महिलाएँ, सबसे अन्त में भोजन करती हैं या फिर उन्हें सबसे कम मात्रा में भोजन मिलता है, ऐसे घरों में भी जहाँ वो ज़्यादा काम करती है, घरेलू देखभाल भी करती हैं और उन्हें उस कामकाज का कोई मेहनताना भी नहीं मिलता है. इस वर्ष के इस अन्तरराष्ट्रीय दिवस की थीम है – ग्रामीण महिलाएँ – सभी के लिए अच्छा भोजन उत्पन्न करते हुए. इसके ज़रिये, दुनिया का पेट भरने में महिलाओं की अहम भूमिका को उजागर किया गया है. यूएन वीमैन संस्था का कहना है कि वैसे तो पृथ्वी पर इतना क्षमता मौजूद है कि हर किसी को अच्छा और भरपेट भोजन मिल सकता है, मगर ऐसे लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है जिन्हें भरपेट भोजन नहीं मिल पा रहा है. ख़ासतौर से बढ़ते जलवायु और पर्यावरणीय संकट और कोविड-19 महामारी के हालात में, ये स्थिति और ज़्यादा गम्भीर हो गई है. खाद्य प्रणालियों में व्यापक बदलाव जिन लोगों को भरपेट भोजन नहीं मिल पाता है, ऐसे लोगों की संख्या में वर्ष 2020 के दौरान लगभग 20 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी होकर, ये कुल संख्या क़रीब दो अरब 30 करोड़ हो गई. इनमें ग्रामीण महिलायों व लड़कियों की संख्या ज़्यादा थी. यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने 16 अक्टूबर को मनाए जाने वाले विश्व खाद्य दिवस पर, खाद्य प्रणालियों में व्यापक बदलाव किये जाने का आहवान किया है. यूएन वीमैन ने, सततता और सामाजिक न्याय के लिये एक महिला केन्द्रित योजना प्रकाशित की है जिसमें कमज़ोर पड़ चुकी वैश्विक खाद्य प्रणाली में फिर से जान फूँकने और विविधतापूर्ण व स्वस्थ फ़सल उत्पादन को समर्थन देने पर ध्यान दिया जाना भी शामिल है. नई योजना में, लैंगिक समानता, सामाजिक न्याय, और सततता को, कोविड-19 महामारी से पुनर्बहाली और इस स्वास्थ्य संकट से निकल जाने के बाद के हालात में, वैश्विक पुनर्निर्माण प्रयासों के केन्द्र में रखा गया है. --संयुक्त राष्ट्र समाचार/UN News

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