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कॉप26: निर्बल देशों का कड़ा सन्देश, जलवायु वित्त पोषण के वादे निभाएँ विकसित देश

भीषण बाढ़, वनों में विनाशकारी आग और बढ़ता समुद्री जलस्तर, ये ऐसी वास्तविकताएँ हैं जिनका सामना अनेक विकासशील व द्वीपीय देशों को करना पड़ रहा है, और जिनसे अनगिनत लोगों के जीवन व आजीविका पर असर पड़ा है. ग्लासगो में यूएन के वार्षिक जलवायु सम्मेलन (कॉप26) के दूसरे सप्ताह की शुरुआत पर, सोमवार को जलवायु अनुकूलन, क्षति व हानि पर चर्चा केन्द्रित रही और जलवायु जोखिमों को झेल रहे देशों ने विकसित देशों से जलवायु कार्रवाई के लिये वित्तीय सहायता के वादों को पूरा करने का आग्रह किया. सोमवार को हुई चर्चाओं व कार्यक्रमों में मुख्य ज़ोर इस बिन्दु पर था: विकसित देशों को जलवायु वित्त पोषण का अपना संकल्प पूरा करना होगा. साथ ही उन छोटे देशों को सहायता देनी करनी होगी, जोकि जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध लड़ाई में अपना बहुत कुछ खो रहे हैं. दक्षिण-पश्चिमी प्रशान्त महासागर में स्थित द्वीपीय देश, पापुआ न्यू गिनी की एक कार्यकर्ता ने सम्मेलन के आठवें दिन अपने एक भावुक सन्देश में कहा कि ये कभी मालूम नहीं हो पाएगा कि समुद्री लहरें कब उठीं और हमारे घरों को निगल गईं. “महासागर हमारी संस्कृतियाँ, हमारी भाषाएँ और हमारी परम्पराएँ, लील जाएंगे. आप जब 2030 से 2050 तक कहते हैं, आप 9 से 29 वर्ष समयसीमाओं को किस तरह देख सकते हैं, जब मेरे लोगों ने साबित किया है कि हमें बिना समय खोए, बिल्कुल अभी कार्रवाई करनी होगी.” उन्होंने दुख जताया कि महासागर ने कभी उनके लोगों को जीवन प्रदान किया था, मगर अब वो मृत्युदण्ड दे रहा है. कुछ ही दूर, एक अन्य कार्यक्रम में, एक ऐसी युवा महिला ने भी दुनिया के सामने सख़्त सन्देश पेश किया जो आठ साल पहले फ़िलिपीन्स में आए चक्रवाती तूफ़ान हाययान के दौरान जीवित बच पाई थीं. “आज से ठीक आठ साल पहले, हाययान ने फ़िलिपीन्स के लोगों के जीवन को बदल कर रख दिया था, और तबसे जलवायु परिवर्तन के प्रभाव बदतर ही हो रहे हैं.” उन्होंने कहा कि लोगों को न्याय पाने के लिये प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिये थी, और कि कम्पनियों व अन्य कार्बन उत्सर्जकों की जवाबदेही सुनिश्चित की जानी होगी. हानि व क्षतिपूर्ति की मांग जलवायु परिवर्तन मामलों पर यूएन संस्था (UNFCCC) की प्रक्रिया में ‘हानि व क्षति’ (loss and damage) से तात्पर्य उन नुक़सानों से है, जिनके लिये मानवीय गतिविधियों के कारण होने वाले जलवायु परिवर्तन को ज़िम्मेदार माना गया है. यूएन सन्धि के पारित होने के बाद से ही, इस मुद्दे पर उपयुक्त जवाबी कार्रवाई विवादों में रही है. UNDP/Silke von Brockhausen जलवायु परिवर्तन के कारण, जो प्रभाव नज़र आ रहे हैं, उनमें दक्षिण प्रशान्त का तुवाली द्वीप, समुद्रों में बढ़ते जलस्तर के जोखिम से प्रभावित होने वाले स्थानों में शामिल है. आर्थिक दायित्व को स्थापित करना और हानि व क्षति के लिये मुआवज़े की व्यवस्था, निर्बल एवं विकासशील देशों के लिये लम्बे समय से एक लक्ष्य रहा है. मगर, विकासशील देशों ने अनेक वर्षों से इस मुद्दे पर उपयुक्त विचार-विमर्श के अनुरोधों का प्रतिरोध किया है. सोमवार को अनुकूलन के मुद्दे पर भी चर्चा हुई है, और यहाँ भी वित्त पोषण का मुद्दा केन्द्र में रहा. लघु द्वीपीय विकासशील देशों (SIDS) के नेताओं ने स्पष्ट कर दिया है कि पिछले सप्ताह, वन, कृषि, निजी वित्त पोषण और अन्य विषयों में लिये गए सकंल्प पर्याप्त नहीं हैं. ग़ौरतलब है कि पिछले सप्ताह यह स्पष्ट हो गया कि धनी देशों द्वारा, विकासशील देशों में जलवायु अनुकूलन के लिये प्रतिवर्ष 100 अरब डॉलर मुहैया करााए जाने के वादे को पूरा करने में अभी और देरी होगी. फ़िजी के प्रधानमंत्री फ्रैंक बेनीमरामा ने कहा, “विकसित देश हमें नाकाम कर रहे हैं. उनके पास बदलाव लाने के लिये संसाधन व टैक्नॉलॉजी हैं, इसके बावजूद उन्होंने, लगातार दो साल से 100 अरब डॉलर के संकल्प को पूरा ना करते हुए, स्वच्छ ऊर्जा और अनुकूलन के लिये सम्भावनाओं को चर्चा से हटा दिया है.” उन्होंने क्षोभ जताया कि पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर के बाद से अब तक फ़िजी में 13 चक्रवाती तूफ़ान आ चुके हैं और सहनक्षमता निर्माण में देरी नहीं की जानी चाहिये, फिर भी सर्वाधिक निर्बल देशों को वर्ष 2023 तक प्रतीक्षा करनी होगी. ग्रेनाडा के जलवायु व पर्यावरण मंत्री सिमोन स्टियेल ने भी कहा कि पिछले सप्ताह लिये गए संकल्पों को वास्तविकता के धरातल पर अर्थपूर्ण कार्रवाई में बदला जाना होगा. उन्होंने बताया कि द्वीपीय देशों के लिये जलवायु परिवर्तन एक वास्तविकता है, जिसे वे हर दिन जीते हैं. उनके मुताबिक़ कार्बन उत्सर्जन में कटौती, 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य की प्राप्ति की दिशा में एक मैराथन दौड़ है, जबकि अनुकूलन एक तेज़ दौड़ है जिसके ज़रिये जीवन व आजीविकाओं की त्वरित रक्षा की जानी होगी. UNFCCC/Kiara Worth अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ग्लासगो में कॉप26 सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए, प्रतिनिधियों से जलवायु संकट के समाधान के लिये एकजुटता की अपील की. कॉप26: बराक ओबामा का आहवान अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा भी सोमवार को ग्लासगो सम्मेलन में नज़र आए और उन्होंने द्वीपीय देशों के प्रतिनिधियों के साथ एक बैठक में हिस्सा लिया. अमेरिका के हवाई प्रान्त में जन्म लेने और वहीं पले-बढ़े होने की वजह से उन्होंने स्वयं को द्वीपीय इलाक़े का एक बच्चा बताया और सचेत किया कि दुनिया, पहले से कहीं अधिक ख़तरों का सामना कर रहे द्वीपों के लिये पर्याप्त उपाय नहीं कर रही है. “ये कुछ ऐसा नहीं है जोकि 10, 20 या 30 साल बाद दिखाई देगा: यह अभी हो रहा है, और हमें अभी कार्रवाई करनी है.” उन्होंने सभी प्रतिनिधियों से एकजुटता के साथ आगे बढ़ने का आहवान किया है. पूर्व राष्ट्रपति ओबामा ने कॉप26 को सम्बोधित करते हुए, एक आम नागरिक के तौर पर जलवायु कार्रवाई के लिये प्रयास करने का संकल्प लिया. उन्होंने स्पष्टता से कहा कि वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखना, मुश्किल साबित होने जा रहा है. उन्होंने युवाओं को अपने परिजनों के साथ, जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर बात करने के लिये प्रोत्साहित किया. “हमारा ग्रह, हमारे कृत्यों से घायल हो गया है. वे घाव आज या कल ठीक नहीं हो पाएंगे, मगर मुझे विश्वास है कि हम एक बेहतर भविष्य सुनिश्चित कर सकते हैं. हमें करना ही है.” जलवायु वार्ता की मौजूदा स्थिति कॉप26 के अध्यक्ष देश - ब्रिटेन ने, सोमवार को सम्मेलन में हो रहे विचार-विमर्श की स्थिति की समीक्षा के लिये एक कार्यक्रम आयोजित किया. चर्चा के दौरान, विकासशील देशों के प्रतिनिधियों ने सम्मेलन के एजेण्डा पर बचे रह गए मुद्दों के निपटारे के लिये आग्रह किया – इनमें जलवायु वित्त पोषण पर विशेष रूप से ज़ोर दिया गया है. Climate Visuals Countdown/Irene Barlian इण्डोनेशिया के जकार्ता में, एक व्यक्ति, समुद्र के निकट बनाई गई लम्बी दीवार पर चलते हुए. उन्होंने कहा कि पिछले सप्ताह अनेक संकल्पों की घोषणा स्वागतयोग्य है, मगर इस सिलसिले में कार्रवाई की जानी अभी बाक़ी है. जी77 देशों के समूह व चीन का प्रतिनिधित्व कर रहे गिनी के वार्ताकार मंत्री ने कहा कि ठोस वित्तीय उपाय के बिना, कॉप को सफल नहीं कहा जा सकता. “हमें निराशा है कि विकसित देश वित्तीय विषयों पर चर्चा के लिये इच्छुक नहीं हैं.” उन्होंने खोखले वादे किये जाने का आरोप लगाया है. लघु द्वीपीय देशों के गठबन्धन का प्रतिनिधित्व कर रहे एण्टीगा एण्ड बरबूडा ने विकसित देशों द्वारा जलवायु वित्त पोषण के लिये 100 अरब डॉलर के वादे को पूरा ना किये जाने, अनुकूलन उपायों के लिये वित्तीय संसाधनों की अनिश्चितता पर निराशा जताते हुए कहा कि महत्वाकांक्षा को बढ़ाना होगा. सबसे कम विकसित देशों के समूह के प्रतिनिधि, भूटान ने दुख जताया कि आम तौर पर देशों के सार्वजनिक वक्तव्यों और वार्ता में सुनाई देने वाली उनकी आवाज़ों में अन्तर होता है. भूटान के प्रतिनिधि का इशारा पारदर्शिता ज़रूरतों, कार्बन बाज़ारों, पेरिस जलवायु समझौते को लागू करने के लिये नियम पुस्तिका और जलवायु वित्त पोषण से था. कॉप26 अध्यक्ष ने कहा है कि इन सभी मुद्दों पर जलवायु वार्ता के अन्तिम सप्ताह में बातचीत होगी. --संयुक्त राष्ट्र समाचार/UN News

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