conspiracy-to-put-the-blame-on-china-for-making-the-virus
conspiracy-to-put-the-blame-on-china-for-making-the-virus

वायरस बनाने का दोष चीन पर मढ़ने की साजिश

बीजिंग, 7 जून (आईएएनएस)। हाल ही में, अमेरिका के कुछ संसद सदस्यों ने न्यू कोरोना वायरस महामारी की उत्पत्ति की फिर एक बार जांच करने की मांग की। उन्होंने चीन पर महामारी फैलाने का दोष मढ़ देने की कोशिश की। हालांकि, वायरस के जन्म स्रोत का पता लगाने का काम एक वैज्ञानिक मुद्दा है, और न्यू कोरोना वायरस के जन्म स्रोत का पता लगाने की कोशिश वैज्ञानिकों के बीचअंतरराष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से की जानी चाहिए, न कि किसी भी देश को हराने के षड़यंत्र में। इस साल 14 जनवरी से 10 फरवरी तक डब्ल्यूएचओ के 17 विशेषज्ञों ने चीनी विशेषज्ञों के साथ एक संयुक्त विशेषज्ञ दल के रूप में चीन के वुहान शहर में करीब एक महीने तक जांच-पड़ताल की। संयुक्त विशेषज्ञ दल ने हुबेई प्रांतीय रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र, वुहान रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र, वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी जैसी विभिन्न जैव सुरक्षा प्रयोगशालाओं का दौरा किया और चीनी प्रयोगशालाओं के विशेषज्ञों के साथ गहन और स्पष्ट वैज्ञानिक आदान-प्रदान किया। इसी आधार पर, संयुक्त विशेषज्ञ दल ने सावधानीपूर्वक वैज्ञानिक चर्चा के बाद निष्कर्ष निकाला कि इस बात की बहुत कम संभावना है कि चीनी प्रयोगशाला की घटना से वायरस फैला है। यह निष्कर्ष संयुक्त जांच रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से दर्ज है और वह एक आधिकारिक, औपचारिक और वैज्ञानिक निष्कर्ष है। वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में काम किये एक अमेरिकी वैज्ञानिक पीटर दासजाक ने कहा, मैंने वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में 15 साल तक काम किया है। हम स्पष्ट रूप से जानते हैं कि न्यू कोरोना वायरस महामारी फैलने से पहले उन के प्रयोगशाला में ऐसा कोई वायरस मौजूद नहीं था। लेकिन, अमेरिका में कुछ लोग वैज्ञानिक तथ्यों की पूरी तरह से अनदेख कर बार-बार झूठ को गढ़ते हैं कि वायरस वुहान वायरस प्रयोगशाला द्वारा लीक किया गया है। इससे न केवल विज्ञान की अवमानना है, बल्कि महामारी से लड़ने में वैश्विक एकजुटता को भी कमतर आंकना है। उनका मकसद बहुत साफ है, यानी वायरस ट्रेसबिलिटी की मदद से चीन को हराना, ताकि उनके आधिपत्य के रास्ते पर पड़ी इस बाधा को पूरी तरह से हटा दें। लंबे समय से, अमेरिका ने अपनी आर्थिक, वित्तीय, तकनीकी और सैन्य शक्तियों, तथा अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व वाले असमान व्यापार के माध्यम से, दुनिया भर से धन और प्रतिभाओं को लूूटा है। हाल के वर्षों में चीन के विकास ने अमेरिका के इस आधिपत्य को कुछ हद तक खतरे में डाल दिया है। चीनी विकास की क्षमता को देखते ही अमेरिका की ट्रम्प सरकार ने आधिकारिक तौर पर चीन के खिलाफ व्यापारिक तथा विज्ञान व तकनीक युद्ध शुरू किया है। विशेष रूप से प्रेस व लोकमतों के क्षेत्र में, अमेरिका ने अपने नियंत्रित अंतर्राष्ट्रीय मीडिया का उपयोग कर चीन पर हमला किया। अगर चीन की सैन्य ताकत से डरता नहीं, तो मुझे शंका है कि अमेरिका चीन के खिलाफ सैन्य प्रहार करने से भी नहीं हिचकिचाएगा। अमेरिका के विदेशी युद्धों के इतिहास से पता चला है कि शक्तिशाली विरोधियों को निशाना बनाने के लिए, वह हमेशा सबसे पहले विरोधियों को बदनामी लगाने का प्रचार करता रहा है। अमेरिका ने चीन के वुहान प्रयोगशाला से न्यू कोरोना वायरस उत्पन्न होने का आरोप लगाया, और चीन के शिनच्यांग प्रदेश में नरसंहार और जबरन श्रम जैसे झूठ को गढ़ा, ये सब इस चाल के तरीके हैं। अमेरिका अपने नियंत्रित मीडिया का उपयोग करके प्रेस युद्ध के माध्यम से अपने विरोधियों को सोशल मीडिया और इंटरनेट जैसे क्षेत्रों में बोलने के अधिकार से वंचित करता है। सबूतों के अभाव में, अमेरिका ने चीन के खिलाफ वायरस पैदा करने की निंदा की और उन के अपने कर्मियों को चीन में जांच करवाने के लिए भेजने की मांग की। यदि चीन उसकी मांगों को स्वीकार करता है, तो तथ्य कुछ भी हों, निष्कर्ष उन के कर्मियों के द्वारा ही निकाला जाना चाहिए। पर यदि चीन उसकी मांगों को स्वीकार नहीं करता है, तो वह तथ्यों को छिपाने के लिए चीन की निंदा करेगा। विश्व में अमेरिका का वर्चस्व सिर्फ अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और वित्त का आधिपत्य से आता नहीं, बल्कि मीडिया में भी उसके नियंत्रण भी है। पश्चिमी समाचार एजेंसियां दुनिया में 90 प्रतिशत सूचनाओं को नियंत्रित करती हैं, और सभी सबसे प्रमुख समाचार आम तौर पर पश्चिमी मीडिया द्वारा जारी किए जाते हैं, जबकि चीन और भारत जैसे विकासशील देश अक्सर अंतरराष्ट्रीय प्रेश युद्धों में निष्क्रिय होते हैं। हालांकि, अधिकार में महारत हासिल करने का मतलब सच्चाई में भी महारत हासिल करना नहीं है। विश्व की जनता ने धीरे-धीरे यह महसूस किया है कि अमेरिका की नैतिकता उसके हाथ में नियंत्रित प्रेस औजार से आती है, और साथ ही उसके द्वारा महारत हासिल की गयी आर्थिक, प्रौद्योगिकी और सैन्य शक्तियां। जो लोग अमेरिका का अनुसरण नहीं करते हैं, उनके खिलाफ अमेरिका पहले आर्थिक और कानूनी प्रतिबंध अपनाता है, और अंत में सैन्य हमले करता है। विजेता नियम बनाते हैं के सिद्धांत के तहत अमेरिका दुनिया के भाग्य को तय करता है। लेकिन, वह युग जब अमेरिकी आधिपत्य के साथ जो चाहते हैं वह करते हैं, लंबे समय से चला आ रहा है। आज अमेरिका के सामने जो गर्व से खड़े हुए है, वह इराक, लीबिया या वेनेजुएला जैसे देश नहीं है, बल्कि चीन के एकजुट 1.4 अरब चीनी जनता ! और चीनी सरकार की अमेरिकी दबाव का सामना करने की जो हिम्मत है, वह मिसाइलों और विमानवाहक पोतों से आयी नहीं, बल्कि अपने देश के प्रति सभी चीनी लोगों के ²ढ़ समर्थन ही है! ( साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग ) --आईएएनएस एएनएम

Related Stories

No stories found.
Raftaar | रफ्तार
raftaar.in