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इसराइल द्वारा फ़लस्तीनी मानवाधिकार संगठनों पर पाबन्दी लगाने के फ़ैसले पर चिन्ता

संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों और अन्तरराष्ट्रीय विकास एजेंसियों के संगठन (AIDA) ने मंगलवार को कहा है कि वो, इसराइल के क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़ों में, सिविल सोसायटी संगठनों के साथ मज़बूती से खड़े हैं. ये बयान, इसराइली सेना द्वारा, फ़लस्तीनी इलाक़ों में काम कर रहे छह सिविल सोसायटी संगठनों पर पाबन्दी लगाए जाने के फ़ैसले की ख़बरों के बाद आया है. इन अन्तरराष्ट्रीय एजेंसियों ने मंगलवार को जारी एक वक्तव्य में कहा है कि वो, फ़लस्तीनी क्षेत्र - पश्चिमी तट में इसराइल के सैन्य कमाण्डर के, 7 नवम्बर को आए इस फ़ैसले पर दुखी हैं. वक्तव्य में कहा गया है कि ये फ़ैसला, सिविल और मानवीय स्थान के अतिक्रमण को दर्शाता है. इसराइल के रक्षा मंत्री ने अक्टूबर में इन फ़लस्तीनी मानवाधिकार संगठनों और सिविल सोसायटी समूहों को आतंकवादी संगठन घोषित किया था और ये फ़ैसला अब पश्चिमी तट में लागू किया गया है. यूएन एजेंसियों का मानना है कि इसराइल द्वारा ये फ़ैसला लागू करने के कारण, इन मानवाधिकार संगठनों और सिविल सोसायटी समूहों के कामकाज में बहुत सारी रुकावटें उत्पन्न होंगी. ध्यान रहे कि इन संगठनों ने दशकों तक अन्तरराष्ट्रीय समुदाय के साथ मिलकर काम किया है जिनमें संयुक्त राष्ट्र भी शामिल है, और उनके कामकाज में, अनगिनत फ़लस्तीनी लोगों को ज़रूरी सेवाएँ मुहैया कराना शामिल रहा है. आरोप मीडिया ख़बरों के अनुसार इसराइल ने कहा है कि ये मानवाधिकार संगठन और सिविल सोसायटी समूह, पॉपुलर फ़्रण्ट ऑफ़ द लिबरेशन ऑफ पेलेस्टाइन (PFLP) के साथ सम्बद्ध हैं. इसे एक राजनैतिक संगठन माना जाता है जिसकी एक सशस्त्र शाखा भी है. इसराइल के अनुसार, इस शाखा ने इसराइलियों के ख़िलाफ़ हमलों को अंजाम दिया है और कुछ पश्चिमी देश, इसे, एक आतंकवादी संगठन समझते हैं. इसराइल के क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़ों के लिये संयुक्त राष्ट्र की रैज़िडैण्ट और मानवीय कोऑर्डिनेटर लिन हेस्टिंग्स ने एक वक्तव्य में कहा है कि इस तरह के आरोप बहुत गम्भीर हैं. उनके अनुसार, अलबत्ता, संयुक्त राष्ट्र की किसी एजेंसी या AIDA को, ऐसा कोई लिखित दस्तावेज़ नहीं सौंपा गया है, जिनमें इन आरोपों के लिये कोई आधार साबित हों. लिन हैस्टिंग्स ने कहा, “हम और ज़्यादा जानकारी के लिये, सम्बद्ध पक्षों के साथ सम्पर्क बनाए रखेंगे.” अन्तरराष्ट्रीय क़ानून वक्तव्य में कहा गया है कि आतंकवाद निरोधक क़ानूनी प्रक्रिया को भी, अन्तरराष्ट्रीय मानवीय और मानवाधिकार क़ानून का पालन करना ज़रूरी है, जिनमें सभा करने, संगठन बनाने और विचार अभिव्यक्ति के अधिकारों के लिये पूर्ण सम्मान शामिल है. आतंकवाद निरोधक क़ानून, वैध मानवाधिकार और मानवीय कामकाज पर भी लागू नहीं किया जा सकता. यूएन एजेंसियों की नज़र में, इसराइल के वर्ष 2016 के आतंकवाद निरोधक क़ानून का दायरा और बेगुनाही के सिद्धान्त पर इसके व्यापक प्रभाव, अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के अन्तर्गत गम्भीर चिन्ताएँ उत्पन्न करते हैं. अन्तरराष्ट्रीय एजेंसियों का कहना है कि अतीत में भी, फ़लस्तीनी सिविल सोसायटी संगठनों के साझीदारों पर, धन का दुरुपयोग करने के आरोप साबित नहीं किये जा सके हैं. एजेंसियों के अनुसार, “हम अन्तरराष्ट्रीय क़ानून और सिविल सोसायटी संगठनों के साथ खड़े रहना जारी रखेंगे, जो अन्तरराष्ट्रीय क़ानून, मानवाधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देते हैं.” एक चौतरफ़ा हमला इसराइल द्वारा जिन फ़लस्तीनी संगठनों को ग़ैर-क़ानूनी क़रार दिया जा रहा है वो हैं - Addameer, Al-Haq, Defense for Children International – Palestine, the Union of Agricultural Work Committees, the Bisan Center for Research and Development, and the Union of Palestinian Women Committees. इन मानवाधिकार संगठनों को आतंकवादी क़रार दिये जाने के बाद, दरअसल, मानवाधिकार रक्षा के क्षेत्र में इनके कामकाज को बन्द किया जा सकता है, और इसराइली सेना उनके स्टाफ़ को गिरफ़्तार कर सकती है, उनके कार्यालय बन्द किये जा सकते हैं, उनकी सम्पत्ति को ज़ब्त किया जा सकता है और उनकी गतिविधियों पर रोक लगाई जा सकती है. संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने अक्टूबर के अन्त में, इसराइल के इस फ़ैसले को, फ़लस्तीनी मानवाधिकार आन्दोलन, और अन्यत्र स्थानों पर भी, एक चौतरफ़ा हमला क़रार दिया था. --संयुक्त राष्ट्र समाचार/UN News

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