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सर्वजन को मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ मुहैया कराने की पुकार

संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने रविवार, 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर अपने सन्देश में कहा है कि दुनिया भर में कोविड-19 महामारी ने लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत व्यापक नकारात्मक प्रभाव डाला है, और महामारी द्वारा उजाकर व हर तरफ़ नज़र आ रही विषमताएँ दूर करने के लिये, ठोस कार्रवाई करने की ज़रूरत है. यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने इस अवसर पर ध्यान दिलाया कि दुनिया भर में लाखों-करोड़ों लोगों ने, महामारी में अपने परिजन, सम्बन्धी व मित्र खो दिये हैं और वो सदमों का सामना कर रहे हैं, जबकि बहुत से अन्य लोग रोज़गार वाले कामकाज को लेकर चिन्तित हैं. और बुजुर्ग जन, अलगाव व अकेलेपन के अवसाद वाले अनभुव से गुज़र रहे होंगे. What’s on children’s minds should be on all our minds. COVID-19 has put the wellbeing of an entire generation at risk. Even before the pandemic, too many children and young people carried the burden of mental health conditions without support. This must change. #OnMyMind — UNICEF (@UNICEF) October 5, 2021 उन्होंने कहा कि “ऐसे में ठोस कार्रवाई नहीं की गई तो, मानसिक स्वास्थ्य पर ये नकारात्मक प्रभाव, ख़ुद महामारी से भी ज़्यादा लम्बे समय तक जारी रह सकते हैं.” बच्चों में अलगाव और व्यथित होने की भावना यूएन प्रमुख ने विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर सन्देश में ये भी ध्यान दिलाया है कि बच्चे व किशोर जन, अलगाव और व्यथित होने की भावना के दौर से गुज़र रहे हो सकते हैं. ऐसे में उन्होंने, मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता और उन तक पहुँच में विषमता को दूर करने के लिये, ठोस कार्रवाई करने की पुकार भी लगाई है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार दुनिया भर के कुल बच्चों व किशोरों की लगभग 20 प्रतिशत संख्या को, कोई ना कोई मानसिक स्वास्थ्य समस्या है. और ध्यान रहे कि 15 से 29 वर्ष की उम्र के लोगों में, मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण आत्महत्याएँ हैं. यूएन बाल कोष – यूनीसेफ़ ने बीते सप्ताह, मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं में और ज़्यादा संसाधन निवेश किये जाने का आग्रह किया था. दुनिया भर के बच्चों की स्थिति पर, यूनीसेफ़ की ताज़ा रिपोर्ट - The State of the World’s Children, में ध्यान दिलाया गया है कि कोविड-19 महामारी संकट शुरू होने के पहले भी, बच्चे व किशोर जन, मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के बोझ तले दबे हुए थे, और उन समस्याओं से निपटने के लिये, कोई ख़ास संसाधन निवेश नहीं हुआ है. यूनीसेफ़ की कार्यकारी निदेशक हैनरीएटा फ़ोर का कहना है कि पिछले 18 महीने तो बच्चों के लिये बहुत कठिन हालात वाले रहे हैं. उपचार की उपलब्धता में विषमता यूएन प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने कहा है, “उच्च आय वाले देशों में, अवसाद के शिकार 75 प्रतिशत से ज़्यादा लोगों का ये कहना है कि उन्हें पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल नहीं मिलती है, और निम्न व मध्यम आय वाले देशों में तो मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे, 75 प्रतिशत से ज़्यादा लोगों को बिल्कुल कोई उपचार ही नहीं मिल पाता है.” उन्होंने ध्यान दिलाया कि देशों की सरकारें, अपने स्वास्थ्य बजटों का मात्र दो प्रतिशत हिस्सा ही, मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता पर ख़र्च करती हैं और यह बहुत कम संसाधन निवेश, लम्बे समय से जारी है. ये स्थिति बिल्कुल “अस्वीकार्य” है. सकारात्मक क़दम यूएन महासचिव ने ध्यान दिलाते हुए कहा कि आख़िरकार अब ये पहचान स्थापित हो गई है कि “मानसिक स्वास्थ्य के बिना, कोई स्वास्थ्य पूर्ण नहीं हो सकता.” उन्होंने बताया कि सदस्य देशों ने, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की संशोधित ‘व्यापक मानसिक स्वास्थ्य कार्रवाई योजना’ को स्वीकृति दे दी है. यूएन स्वास्थ्य एजेंसी ने 12 प्राथमिकता वाले देशों में, गुणवत्तापरक और सुलभ मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये, वर्ष 2019 में, ‘विशेष मानसिक स्वास्थ्य पहल (2019-2023): मानसिक स्वास्थ्य के लिये, सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज’ शुरू की थी. इसके ज़रिये लगभग 10 करोड़ लोगों तक मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ पहुँचाने का लक्ष्य है. मई 2021 में, विश्व स्वास्थ्य ऐसेम्बली के दौरान, दुनिया भर के देशों की सरकारों ने, हर स्तर पर गुणवत्तापरक मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं में वृद्धि करने की ज़रूरत को माना था, और कुछ देशों ने अपनी आबादियों को, मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ मुहैया कराने के नए तरीक़े खोजे हैं. एंतोनियो गुटेरेश का कहना है, “संयुक्त राष्ट्र परिवार, पूरे वैश्विक मानसिक स्वास्थ्य समुदाय में अपने साझीदारों के साथ मिलकर, मानसिक स्वास्थ्य बेहतर बनाने की ख़ातिर, नए दिशा-निर्देश और नए उपकरण व संसाधन विकसित कर रहा है.” --संयुक्त राष्ट्र समाचार/UN News

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