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वर्ष 2030 तक, प्लास्टिक प्रदूषण दोगुना होने की राह पर - UNEP

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की एक नई रिपोर्ट में महासागरों और अन्य जल क्षेत्रों में प्लास्टिक प्रदूषण की तेज़ी से बढ़ती मात्रा पर चिन्ता जताई गई है, जिसके वर्ष 2030 तक दोगुना हो जाने का अनुमान है. यूएन के वार्षिक जलवायु सम्मेलन (कॉप26) से 10 दिन पहले जारी इस रिपोर्ट में प्लास्टिक को भी एक जलवायु समस्या क़रार दिया गया है. रिपोर्ट में प्लास्टिक से स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था, जैवविविधता और जलवायु पर होने वाले दुष्प्रभावों को रेखांकित किया गया है. साथ ही, वैश्विक प्रदूषण संकट से निपटने के लिये, अनावश्यक, टालने योग्य और समस्या की वजह बनने वाले प्लास्टिक में ठोस कमी लाये जाने पर बल दिया गया है. Our oceans are full of plastic. A new @UNEP assessment provides a strong scientific case for the urgency to act, and for collective action to protect and restore our oceans from source to sea. #CleanSeashttps://t.co/97DMOZD3Ee pic.twitter.com/3xjthnsTh2 — Inger Andersen (@andersen_inger) October 21, 2021 प्लास्टिक की मात्रा में ज़रूरी गिरावट को सम्भव बनाने के लिये, जीवाश्म ईंधनों के बजाय नवीकरणीय ऊर्जा की दिशा में तेज़ रफ़्तार से आगे बढ़ने, उनसे सब्सिडी हटाने और उत्पादों को फिर से इस्तेमाल में लाने (चक्रीय) जैसे उपाय अपनाने का सुझाव दिया गया है. ‘From Pollution to Solution: a global assessment of marine litter and plastic pollution’ शीर्षक वाली रिपोर्ट दर्शाती है कि प्लास्टिक से सभी पारिस्थितिकी तंत्रों के लिये ख़तरा बढ़ रहा है. प्लास्टिक के गहराते संकट से निपटने और उसके दुष्प्रभावों की दिशा पलटने के लिये समझ व ज्ञान तो बढ़ रहा है, मगर इसे कारगर कार्रवाई में बदलने के लिये राजनैतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता होगी. यूएन एजेंसी ने ज़ोर देकर कहा है कि प्लास्टिक, एक जलवायु समस्या भी है. उदाहरणस्वरूप, वर्ष 2015 में प्लास्टिक से होने वाला ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, 1.7 गीगाटन कार्बन डाइऑक्साइड के समतुल्य था. वर्ष 2050 में, यह आँकड़ा बढ़कर क़रीब 6.5 गीगाटन तक पहुँच जाने का अनुमान है. यह सम्पूर्ण कार्बन बजट का 15 प्रतिशत है - यानी ग्रीनहाउस गैस की वो मात्रा, जिसे वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को, पैरिस समझौते के लक्ष्यों के भीतर रखने के लिये उत्सर्जित किया जा सकता है. प्लास्टिक के दुष्प्रभाव यूएन पर्यावरण एजेंसी की कार्यकारी निदेशक इन्गर एण्डरसन ने कहा कि यह समीक्षा रिपोर्ट, तत्काल कार्रवाई करने और महासागरों की रक्षा व उनकी पुनर्बहाली के पक्ष में, अब तक का सबसे मज़बूत वैज्ञानिक तर्क है. उन्होंने बताया कि एक बड़ी चिन्ता, टूट कर बिखर जाने वाले उत्पादों से जुड़ी है, जैसेकि प्लास्टिक के महीन कण, और बेहद कम मात्रा में मिलाये जाने वाले रासायनिक पदार्थ. ये ज़हरीले हैं और मानव स्वास्थ्य, वन्यजीवन स्वास्थ्य व पारिस्थितिकी तंत्रों के लिये नुक़सानदेह हैं. समुद्र में कचरे की कुल मात्रा में से 85 प्रतिशत प्लास्टिक ही है. वर्ष 2040 तक इसकी मात्रा तीन गुना होने की आशंका है, और महासागरों में हर वर्ष, दो करोड़ 30 लाख से तीन करोड़ 70 लाख मीट्रिक टन कचरा पहुँचेगा. यह तटीय रेखा के प्रति मीटर हिस्से के लिये लगभग 50 किलोग्राम प्लास्टिक. इससे समुद्री जीवन, पक्षियों, कछुओं व स्तनपायी पशुओं के लिये एक बड़ा जोखिम पैदा होने की आशंका है. प्लास्टिक के दुष्प्रभावों से मानव शरीर भी अछूता नहीं है. समुद्री भोजन, पेय पदार्थों और साधारण नमक में भी मिल जाने वाले प्लास्टिक का सेवन नुक़सानदेह है. इसके अलावा हवा में लटके महीन कण, त्वचा को बेधते हैं और साँस के ज़रिये भी अन्दर आ सकते हैं. संकट से बाहर आने का रास्ता विशेषज्ञों ने स्पष्ट कर दिया है कि केवल री-साइक्लिंग का सहारा लेकर, प्लास्टिक प्रदूषण संकट से बाहर निकल पाना सम्भव नहीं है. इसके अलावा, उन्होंने अन्य हानिकारक विकल्पों, जैसेकि जैव-आधारित (bio-based) या जैव रूप से नष्ट होने योग्य (biodegradable) के इस्तेमाल पर भी सचेत किया है, जिनसे आम प्लास्टिक की तरह ही जोखिम पैदा हो सकते हैं. रिपोर्ट में प्लास्टिक उत्पादन और खपत में तत्काल कमी लाने का आग्रह किया गया है, और सम्पूर्ण वैल्यू चेन में रूपान्तरकारी बदलाव को प्रोत्साहन दिया गया है. यूएन एजेंसी ने प्लास्टिक के स्रोत, स्तर और उसकी नियति की पहचान करने के लिये ठोस व कारगर निगरानी प्रणालियों में निवेश की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है. इस क्रम में, चक्रीय तौर-तरीक़ों (प्लास्टिक के इस्तेमाल को घटाने, फिर से इस्तेमाल में लाने और री-साइक्लिंग) व अन्य विकल्पों को अपनाना भी ज़रूरी होगा. --संयुक्त राष्ट्र समाचार/UN News

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