स्वच्छ व स्वस्थ वातावरण की उपलब्धता, अब एक मानवाधिकार

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संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने, शुक्रवार को पहली बार ये पहचान दी है कि स्वच्छ, स्वस्थ और टिकाऊ पर्यावरण की उपलब्धता, एक मानवाधिकार है. शुक्रवार को, मानवाधिकार परिषद के प्रस्ताव संख्या 48/13 में दुनिया भर के देशों से, इस नव स्वीकृत अधिकार को लागू करने के लिये, ख़ुद एकजुट होकर और अन्य साझीदारों के साथ मिलकर काम करने का आहवान किया गया है. इस प्रस्ताव का मसौदा कोस्टा रीका, मालदीव, मोरक्को, स्लोवीनिया और स्विट्ज़रलैण्ड ने पेश किया था, और इसे 43 मतों की स्वीकृति के साथ पारित किया गया. चार सदस्य देश – रूस, भारत, चीन और जापान ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया. 🔴 BREAKING UN Human Rights chief Michelle Bachelet hails landmark recognition by the UN Human Rights Council that having a healthy environment is a human right. ▶️https://t.co/Br5ryBXS5m pic.twitter.com/tnvQdZXdaj — UN Human Rights Council 📍#HRC48 (@UN_HRC) October 8, 2021 मानवाधिकार परिषद ने, इसी के साथ एक अन्य प्रस्ताव (48/14) के ज़रिये, मानवाधिकारों पर जलवायु परिवर्तन पर प्रभाव के लिये अपना ध्यान और ज़्यादा बढ़ाते हुए, इस मुद्दे के लिये समर्पित, एक विशेष रैपोर्टेयर का पद सृजित किया है. साहसिक कार्रवाई यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट ने एक वक्तव्य में, सदस्य देशों से, स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार को तेज़ी से वास्तविकता में लागू करने के लिये साहसिक कार्रवाई करने का आहवान किया है. मिशेल बाशेलेट ने कहा कि इस तरह के क़दम की बहुत समय से ज़रूरत थी, और अब इस घटनाक्रम से, पर्यावरणीय क्षय और जलवायु परिवर्तन को, आपस में जुड़े हुए मानवाधिकार संकटों के रूप में, पहचान मिली है. उन्होंने कहा कि अब लोगों व प्रकृति की रक्षा करने वाली ऐसी परिवर्तनशील, आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय नीतियाँ आगे बढ़ाने की ज़रूरत है जिनके ज़रिये, एक स्वस्थ पर्यावरण व वातावरण के अधिकार को पहचान देने वाला ये प्रस्ताव तेज़ी से लागू हो. यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त ने, मानवाधिकार परिषद के मौजूदा सत्र शुरू होने के मौक़े पर, पृथ्वी पर मौजूद तीन जोखिमों – जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और प्रकृति-क्षय – को इस युग में, मानवाधिकारों के लिये सबसे विशाल चुनौती क़रार दिया था. मानवाधिकार परिषद के ताज़ा प्रस्ताव में, दुनिया भर में, लाखों-करोड़ों लोगों पर, जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय विनाश द्वारा उत्पन्न क्षति को स्वीकार किया गया है. प्रस्ताव में ये भी रेखांकित किया गया है कि आबादी के बहुत निर्बल वर्गों पर, बेहद गम्भीर असर पड़ा है. अब इस मुद्दे पर, आगे की चर्चा और विचार, यूएन महासभा में होंगे. दशक लम्बे प्रयास मिशेल बाशेलेट ने यह प्रस्ताव पारित होने पर, सिविल सोसायटी संगठनों, युवा संगठनों, देशों के मानवाधिकार संगठनों, आदिवासी लोगों के संगठनों, कारोबारी संगठनों और अन्य पक्षों के लम्बे प्रयासों को बधाई दी है. मानवाधिकार उच्चायुक्त ध्यान दिलाते हुए कहा कि गत वर्ष, अनेक पर्यावरणीय मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की हत्याएँ हुईं. उन्होंने सदस्य देशों से, पर्यावरणीय मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को सुरक्षा मुहैया कराने और उन्हें सशक्त करने के लिये, मज़बूत क़दम उठाने का भी आहवान किया. उन्होंने कहा कि हमें, पर्यावरण कार्रवाई और मानवाधिकारों की संरक्षा के बीच खींची गई झूठी रेखा से आगे बढ़ने के लिये, इस गतिवान माहौल को बुनियाद बनाना होगा. “ये बहुत स्पष्ट है कि इनमें से, एक दूसरे के बिना कोई भी लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकता.” ध्यान रहे कि स्वच्छ व स्वस्थ पर्यावरण और वातावरण को मानवाधिकार की पहचान देने वाला ये प्रस्ताव, जलवायु कार्रवाई पर संयुक्त राष्ट्र के महत्वपूर्ण सम्मेलन कॉप26 शुरू होने से कुछ सप्ताह पहले ही पारित हुआ है. कॉप26 सम्मेलन नवम्बर के पहले सप्ताह में, स्कॉटलैण्ड के ग्लासगो में आयोजित होगा. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, दुनिया भर में होने वाली कुल मौतें में से, 24 प्रतिशत मौतें पर्यावरण से जुड़ी हुई हैं और ये संख्या हर साल लगभग एक करोड़ 37 लाख के आसपास होती है. इन मौतें के लिये ज़िम्मेदार कारणों में वायु प्रदूषण और रासायनिक प्रदूषण की चपेट में आने जैसे जोखिम शामिल हैं. --संयुक्त राष्ट्र समाचार/UN News

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