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कराची में हिंदू संपत्ति की बिक्री के लिए जाली दस्तावेज तैयार करने का आरोप

नई दिल्ली, 16 नवंबर (आईएएनएस)। पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने इवैक्यूई ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड के अध्यक्ष को कराची में एक हिंदू संपत्ति की कथित बिक्री पर स्पष्टीकरण देने के लिए मंगलवार को कोर्ट में पेश होने को कहा है। डॉन न्यूज की रिपोर्ट में इसकी जानकारी दी गई। अल्पसंख्यकों की संपत्ति किस कानून के तहत बेची जा रही है? मुख्य न्यायाधीश गुलजार अहमद ने वंकवानी द्वारा दायर एक याचिका की सुनवाई के दौरान पूछा कि अल्पसंख्यक समुदायों से संबंधित संपत्तियों के संरक्षण के बारे में शीर्ष अदालत के निर्देशों को लागू नहीं किया जा रहा है। वंकवानी पाकिस्तान हिंदू परिषद (पीएचसी) के संरक्षक हैं। डॉन न्यूज की रिपोर्ट में कहा गया है कि उन्होंने 2014 के एक फैसले के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया, जिसमें स्कूलों और कॉलेजों के लिए पाठ्यक्रम विकसित करके समाज में धार्मिक और सांस्कृतिक सहिष्णुता को बढ़ावा देने के लिए सरकार को दिशानिर्देश दिए गए थे। फैसले में सहिष्णुता को बढ़ावा देने और अल्पसंख्यकों के पूजा स्थलों की सुरक्षा के लिए एक पुलिस इकाई की स्थापना के लिए एक टास्क फोर्स का प्रस्ताव किया गया था। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि एक जांच में पाया गया कि ईटीपीबी ने यह साबित करने के लिए जाली दस्तावेज बनाए थे कि सिंध विरासत विभाग ने कराची में हिंदू तीर्थयात्रियों के लिए एक धर्मशाला, एक शरण स्थल के विध्वंस के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) जारी किया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि 716 वर्ग गज में फैली जमीन को एक शॉपिंग सेंटर के निर्माण के लिए एक बिल्डर को सौंप दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने 11 जून को सिंध सरकार के विरासत विभाग और ईटीपीबी को कराची के सदर में धर्मशाला के किसी भी हिस्से को नहीं गिराने का आदेश दिया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि शीर्ष अदालत ने कराची के आयुक्त को इमारत को अपने कब्जे में लेने का निर्देश दिया था ताकि कोई भी व्यक्ति परिसर में अतिक्रमण न करे। अपने आवेदन में वंकवानी ने शीर्ष अदालत से परिसर का नियंत्रण पास के बघानी मंदिर के प्रबंधन को हस्तांतरित करने का अनुरोध किया। उन्होंने संघीय जांच एजेंसी (एफआईए) द्वारा दस्तावेजों की कथित जालसाजी और ईटीपीबी द्वारा विरासत संपत्ति के विध्वंस की जांच की मांग की। आवेदक ने कहा कि इवैक्यूई ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड ने अदालत के निर्देश का पालन नहीं किया था कि ईटीपीबी ने (पीएचसी) को 38 मिलियन पीकेआर की राशि जारी की, जो उसने श्री परमहंस दयाल की समाधि (मंदिर) के निर्माण और बहाली पर खर्च की थी। केपी सरकार ने पीएचसी को बहाली कार्य के लिए 20 लाख पीकेआर का अनुदान दिया था, जिस पर कुल 40 लाख पीकेआर खर्च हुआ। वंकवानी ने आरोप लगाया, लेकिन दुर्भाग्य से ईटीपीबी ने पीएचसी को 38 मिलियन पीकेआर की शेष राशि का भुगतान नहीं किया है, हालांकि आदेश जारी होने के आठ महीने बीत चुके हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से पीएचसी को 38 मिलियन पीकेआर के भुगतान के लिए ईटीपीबी को एक नया निर्देश जारी करने और संगठन के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने का आग्रह किया। आवेदक ने अदालत को सूचित किया कि कुल 1,831 मंदिर और गुरुद्वारे ईटीपीबी के अधिकार क्षेत्र में हैं, लेकिन उनमें से केवल 31 का उपयोग इन दिनों पूजा के लिए किया जा रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि शेष को या तो बंद कर दिया गया है, अतिक्रमण कर लिया गया है या किसी तीसरे पक्ष को पट्टे पर दे दिया गया है। याचिकाकर्ता ने शिकायत की थी कि महबूब काजी नाम के एक व्यक्ति ने, जिसने खुद को सरकारी कर्मचारी होने का दावा किया था, उसे जान से मारने की धमकी दी थी। वंकवानी ने कहा, उनके (काजी के) हमलावर पिछले हफ्ते कराची के बाथ आइलैंड में मेरे अपार्टमेंट में आए और मेरे गार्ड को पीटा। सुप्रीम कोर्ट ने सिंध के महानिरीक्षक को मंगलवार को धमकियों के बारे में एक रिपोर्ट सौंपने को कहा। --आईएएनएस एसकेके/आरजेएस

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