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कॉप26 में ‘ऊर्जा दिवस’, जीवाश्म ईंधन के प्रयोग पर रोक के लिये उठी आवाज़ें

स्कॉटलैण्ड के ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन कॉप26 में गुरूवार को, दिन का मुद्दा या मुख्य विषय ‘ऊर्जा’ रहा और इस ‘ऊर्जा दिवस’ के मौक़े पर सूरज की गर्मी भी महसूस की गई, जो बुधवार को ही बादल हटाकर, जैसे जलवायु हस्तियों को अभिवादन करने के लिये निकल आया था. यूएन न्यूज़ की टीम, आयोजकों द्वारा मुहैया कराई गई एक विशेष बिजली चालित बस में, सिटी सैण्टर से सम्मेलन स्थल पर पहुँची, जहाँ दरवाज़ों के बाहर, बहुत से कार्यकर्ता मौजूद थे जो सभी देशों से कोयले, गैस और तेल पर अपनी निर्भरता कम करने का आग्रह कर रहे थे. It’s Energy Day at #COP26 The end of coal power is now within sight, and clean power is scaling up. Find out more 👇#TogetherForOurPlanet — COP26 (@COP26) November 4, 2021 कुछ कार्यकर्ताओं ने तो जापानी कार्टून श्रंखला पिकाशू का लिबास या लबादा पहन रखा था, ध्यान रहे कि इस सिरीज़ में पिकाशू को प्राकृतिक तरीक़े से, बिजली के झटके सृजित करने में सक्षम दिखाया गया है. कुछ अन्य जलवायु कार्यकर्ता, विभिन्न भाषाओं में लिखी तख़्तियाँ थामे हुए थे जो मेगोफ़ोन और लाउड स्पीकरों के ज़रिये जलवायु न्याय की पुकार लगा रहे थे: “जीवाश्म ईंधन अब और नहीं”. कोयले पर संकल्प स्कॉटलैण्ड में इस सम्मेलन स्थल के भीतर, दिन की मुख्य बैठक, कॉप26 के सह-मेज़बानों द्वारा, यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश के इन शब्दों की गूंज के साथ शुरू हुई: “कोयला इतिहास को सौंप दें”. इस यूएन जलवायु सम्मेलन के अध्यक्ष आलोक शर्मा ने नए वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा बदलाव वक्तव्य घोषित किया, जिसमें कोयला उत्पादन व प्रयोग में निवेश ख़त्म करने, स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन तेज़ करने, एक न्यायसंगत बदलाव करने, और प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में, वर्ष 2030 तक कोयले का प्रयोग, चरणबद्ध ढंग से बन्द करने, व अन्य देशों में वर्ष 2040 तक ये लक्ष्य हासिल करने के प्रति संकल्प व्यक्त किया गया है. आलोक शर्मा ने बताया कि इस संकल्प पत्र पर 77 पक्षों ने हस्ताक्षर किये हैं जिनमें 46 देश हैं, और उनमें पोलैण्ड, वियतनाम और चिली भी हैं जो कोयला प्रयोग बन्द करने के लिये पहली बार संकल्प व्यक्त कर रहे हैं. आलोक शर्मा ने बैठक में शिरकत करने वाले प्रतिनिधियों को बताया, “इस सबसे, दुनिया को नैट शून्य के लिये शक्ति हासिल करने में मदद मिलेगी. हम समझते हैं कि अभी बहुत कुछ और करने की ज़रूरत है. "ये तमाम देशों की सरकारों, व्यवसायों, वित्तीय संस्थानों और सिविल सोसायटी के कन्धों पर निर्भर है, और हमें, और ज़्यादा एकजुटता व गठबन्धनों के ज़रिये, ये अभियान गतिवान बनाए रखना होगा.” उन्होंने कहा, “मेरा मानना है कि कोयला प्रयोग का अन्त नज़दीक है. मेरा मानना है कि हम एक ऐसे पड़ाव पर पहुँच रहे हैं जहाँ से हम कोयले को इतिहास में छोड़ दें.“ खेद की बात है कि कुछ ऐसे महत्वपूर्ण देश, इस संकल्प घोषणा पत्र से बाहर हैं, जो कोयला प्रयोग में बहुत बड़ा धन ख़र्च करते हैं, जिनमें चीन, जापान और कोरिया गणराज्य प्रमुख हैं. कल, दक्षिण अफ़्रीका, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन, अमेरिका और योरोप ने, एक नई महत्वाकांक्षी, दीर्घकालीन न्यायसंगत ऊर्जा बदलाव साझेदारी घोषित की थी. इसके तहत, दक्षिण अफ़्रीका में, कार्बन उत्सर्जन कम करने के प्रयासों को सहायता व समर्थन दिया जाएगा. अमेरीका के राष्ट्रपति जो बाइडेन और योरोपीय संघ की आयुक्त उर्सुला वॉन डी लेयेन ने वर्चुअल माध्यम से, ये साझेदारी बुधवार को कॉप26 में प्रस्तुत की. पर्याप्त नहीं Unsplash/Andreas Felske जीवाश्म ईंधन जलने से कई तरह के वायु प्रदूषण उत्पन्न होते हैं जोकि पर्यावरण व जन स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होते हैं. जर्मनी के एक ग़ैर-सरकारी संगठन – Urgewald और जलवायु कार्रवाई नैटवर्क ने अलग प्रैस वार्ता करके, मौजूदा ऊर्जा संकट, पर अपनी अप्रसन्नता व्यक्त की. Urgewald के वित्तीय अभियान चालक ने कहा, “गत दो वर्षों के दौरान तो हमने कोयला नीतियों में बढ़ोत्तरी देखी है, मगर तेल व गैस पर कोई ठोस कार्य मुश्किल से ही नज़र आ रहे हैं." "इसका कारण ये है कि जो वित्तीय संस्थान, जीवाश्म ईंधन के प्रयोग से दूर हटना चाहते हैं, उनके सामने सबसे बड़ी कठिनाई – सूचना व जानकारी का अभाव है.” इस संगठन के प्रतिनिधि का कहना था, “गैस व तेल के कम से कम 96 प्रतिशत उत्पादक अपनी सम्पदा का विस्तार करने के इच्छुक हैं. यह उद्योग बेतुके तरीक़े से अपना विस्तार करने पर तुला हुआ है...” इस बीच, अमेरिका में जैव-विविधता केन्द्र में ऊर्जा न्याय कार्यक्रम की निदेशक जिंग झू का ज़ोर देकर कहना था, “हमारे पास अब जीवाश्म ईंधन के लिये कोई समय नहीं बचा है.” --संयुक्त राष्ट्र समाचार/UN News

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