पूर्वांचल के माटी की पहचान कजरी अब विलुप्तता के कगार पर
पूर्वांचल के माटी की पहचान कजरी अब विलुप्तता के कगार पर

पूर्वांचल के माटी की पहचान कजरी अब विलुप्तता के कगार पर

जौनपुर, 18 जुलाई (हि.स.)। पूर्वांचल की माटी और संस्कृति से जुड़ा लोक गीत कजरी अब विलुप्तता के कगार पर पहुंचता नजर आ रहा है। विगत एक दशक पूर्व सावन मास शुरू होने के साथ ही कजरी लोक गीत की शुरुआत हो जाती रही और लगभग सावन भादों तक इस लोक गीत के लिए दंगल का आयोजन कर जनमानस आनन्द उठाते रहे हैं। पूर्वांचल के मिर्जापुर, वाराणसी सहित जौनपुर की कजरी प्रदेश में विख्यात रही है। लेकिन आज समाज जिस तरह से पाश्चात्य संस्कृति की तरफ भाग रहा है उससे संस्कृति और पहचान विलुप्त होती जा रही है। बात एक दशक पहले की करे तो सावन मास शुरू होते ही रिमझिम फुहारों के बीच महिलायें रात्रि के समय झूला झूलते समय अपनी सुरीली आवाज से जब कजरी का गायन करती थी तो पूरा वातावरण खुशनुमा हो जाता था। महिलायें अपने कजरी लोक गीत के माध्यम से पिया के प्रति जो संवेदना व्यक्त करती थी, वह अपने आप में अद्वितीय होता था। साथ ही विरह रस की अभिव्यक्ति से लेकर शिव पार्वती के श्रृंगार तक की दास्तां कजरी के माध्यम से ऐसा प्रस्तुत करती थी कि श्रोताओं के मन मुग्ध हो जाते थे। वर्तमान में आधुनिकता के दौर में अब ये सब लोक परंपराएं सब कुछ इतिहास के पन्नों में लिखी बात हो गई है। जनपद जौनपुर के राजेपुर और कचगांव की कजरी लगभग सौ वर्षों से मनती चली आ रही है, लेकिन आज उस परंपरा का लगभग समापन सा हो चुका है। क्योंकि आज गांव में भी लोगों को टीवी, मोबाइल के जरिए सिर्फ आधुनिक गाने और सिनेमा में ही रुचि दिखाई दे रही है। जौनपुर में कजरी के बाद कुछ कवि ऐसे थे जो आकाशवाणी पर कजरी का गायन प्रस्तुत करते रहे हैं। वो आज इस दुनियां में नहीं है, लेकिन उनके कुछ शिष्य हैं जो कजरी लोक गीत की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। जनपद जौनपुर में रहमान शाह नाम के बड़े कजरी लोकगीत के रचनाकार थे जो मुसलमान होकर भी इस संस्कृति के वाहक बने थे। जौनपुर सहित आजमगढ़, गाजीपुर आदि जनपदों में कजरी के गायक स्व. रहमान शाह की रचित लोक गीत कजरी गाया करते थे। इस लोकगीत में कृष्ण और राम सहित तमाम देवी देवताओं के ऊपर रचित कजरी जहां लोग आह्लादित होते थे वहीं पर धार्मिक ज्ञान की प्राप्ति भी करते रहे है। इसी तरह सब्बन कौव्वाल कव्वाली के साथ कजरी का भी गायन करते हुए मनोरंजन करने का काम करते रहे हैं। कजरी एक ऐसा लोक गीत है जिसे पुरूषों के अलावां महिलायें भी कजरी के पर्व पर झूला झूलते हुए गाती रही है। जिसमें राधा और कृष्ण के प्रेम का रस टपकता था। यह परम्परा ग्रामीण इलाकों में अधिक थी। गांव के खेतों में धान की रोपाई के समय कजरी का गायन करते हुए महिलायें बिना थके, बिना रूके पूरे दिन खेत में काम करते हुए ताजगी का एहसास करती थी। कजरी गांव के चौपालों से लगायत दूरदर्शन तक पूर्वांचल में लोकप्रिय थी। लेकिन आज इस धरोहर को अब सुनने के लिए कान तरस रहे हैं। पूर्वांचल में मिर्जापुर की कजरी खासी मशहूर थी। यहीं के वरिष्ठ कवि पं.हरीराम द्विवेदी जो साहित्य के साथ कजरी के बड़े रचयिता हैं। इनके द्वारा कजरी लोक गीत का गायन आकाशवाणी और दूरदर्शन पर भी किया गया है। आज भी सावन मास में इनको आकाशवाणी से आमंत्रित किया जाता है। इनका मानना है कि इस लोकगीत के प्रति जो रूचि एक दशक पहले समाज के लोगों में थी आज वह नहीं है। यही कारण है इसके गायक भी मुख मोड़ने लगे हैं। सबसे खास बात इस लोकगीत में रही है कि कोई साज श्रृंगार नहीं होता, कजरी गाने वाले चुटकी बजाकर सुरों को पिरोने का काम करते रहे हैं। मिर्जापुर के साथ ही बनारसी कजरी भी खासी लोकप्रिय रही। यहां के कजरी गायक हाथों में घुंघरू बांधकर चुटकी के साथ उसकी धुन निकालते हुए कजरी का गायन करते रहे हैं। यह लोकगीत पूर्वांचल की परम्परा बनते हुए यहां की माटी में रच बस गया था लेकिन आज धीरे धीरे यह अपने विलुप्तता की ओर बढ़ता ही जा रहा है। जौनपुर में 1955-56 गोमती नदी में भयानक बाढ़ आयी थी, उस समय कजरी का गायन करने वालों ने कजरी बनाया, “सखिंया सुना शहर कै बतिया, नदिया किला बहवले जाय,“ उस समय यह कजरी खासी लोकप्रिय रही। इसके अलावा महिलाओं की कजरी, “हरे रामा जुटै मुरैला बाग, देखन हम जाबै रे सखी,“ सावन मास में भगवान शंकर पार्वती पर आधारित कजरी गीत, शंकर चले वियाहन बूढ़े बैल सवरिया, दुवरिया मैना रानी के घरे,“ कजरी के ये बोल अब सुनने को नहीं मिल रहे हैं। खास बात यह है कि कजरी में भोजपुरी भाषा का अधिक प्रयोग होता रहा जो क्षेत्रियता का बोध करता रहा है। इसके साथ समाज को एक धागे में पिरोते हुए एकता कायम करने का काम करती थी। इस तरह कजरी की विलुप्तता के साथ तमाम सहयोगी परम्पराएं भी खत्म होती जा रही है। हमारे समाज को अपने इस धरोहर को बचाने संजोने की जरूरत है, ताकि हम आपस में अपनत्व का अहसास करते रहे। हिन्दुस्थान समाचार/विश्व प्रकाश/विद्या कान्त-hindusthansamachar.in

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