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इसरो जासूस मामले में मालदीव की 2 महिलाओं ने मुआवजे का किया दावा

दिल्ली/तिरुवनंतपुरम, 22 सितम्बर (आईएएनएस)। हाल ही में इसरो जासूसी मामला जब से एक बार फिर से सुर्खियां बटोर रहा है, बुधवार को खबर आई है कि मालदीव की दो महिलाओं ने सीबीआई के जरिए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाकर दो-दो करोड़ रुपये का मुआवजा मांगा है। इसकी जानकारी सूत्रों ने दी। इसरो जासूसी का मामला 1994 में सामने आया जब एस. नांबी नारायणन, जो उस समय इसरो इकाई के एक शीर्ष वैज्ञानिक थे, उनको इसरो के एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी, मालदीव की दो महिलाओं (फौसिया हसन और मरियम रशीदा) और एक व्यवसायी के साथ जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। पिछले महीने सीबीआई ने तिरुवनंतपुरम के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में 18 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की, जिनमें से सभी ने मामले की जांच की और इसमें केरल पुलिस और आईबी के शीर्ष अधिकारी शामिल थे, जिन पर साजिश और दस्तावेजों के निर्माण का आरोप लगाया गया है। जब शीर्ष अदालत ने मामले को फिर से खोलने का फैसला किया तो सभी आरोपियों और गवाहों से कहा कि अगर उन्हें कुछ कहना है तो वे नई सीबीआई जांच टीम को सूचित करें। हसन फिलहाल कोलंबो में सेटल हैं, जबकि रशीदा मालदीव में हैं। संयोग से यह कोविड लॉकडाउन मानदंडों के लिए नहीं है, सीबीआई टीम ने हसन और फिर रशीदा से बयान लेने के लिए कोलंबो की यात्रा करने के लिए बुक किया था। सीबीआई की टीम के अब कभी भी बाहर निकलने की उम्मीद है। शीर्ष अदालत में अपनी याचिका में, जिसे सीबीआई के माध्यम से स्थानांतरित किया गया है, दोनों महिलाओं ने मुकदमे का सामना किए बिना तीन साल से अधिक समय तक गलत तरीके से कारावास के लिए सभी को 2 करोड़ रुपये का मुआवजा देने की मांग की है। उन्होंने मांग की है कि उन 18 अधिकारियों से मुआवजा वसूल किया जाए, जिनका नाम अब प्राथमिकी में दर्ज किया गया है। रशीदा ने तत्कालीन जांच अधिकारी एस. विजयन के खिलाफ एक अलग मामला दर्ज करने के लिए एक और याचिका दायर की है, जिन्होंने उस समय कथित तौर पर उसके साथ दुर्व्यवहार किया था। नारायणन के लिए चीजें तब बदल गईं जब 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी.के. जैन को यह जांच करने के लिए कहा कि क्या तत्कालीन पुलिस अधिकारियों के बीच नारायणन को झूठा फंसाने की साजिश थी। सीबीआई की नई टीम अगस्त में यहां शीर्ष अदालत के आदेश पर काम करने पहुंची थी। सीबीआई ने 1995 में नारायणन को मुक्त कर दिया और तब से वह मैथ्यूज, एस विजयन और जोशुआ के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं जिन्होंने मामले की जांच की और उन्हें झूठा फंसाया। नारायणन को अब केरल सरकार सहित विभिन्न एजेंसियों से 1.9 करोड़ रुपये का मुआवजा मिला है, जिसने 2020 में उन्हें 1.3 करोड़ रुपये का भुगतान किया और बाद में 2018 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्देशित 50 लाख रुपये और राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग द्वारा आदेशित 10 लाख रुपये का मुआवजा दिया। मुआवजा इसलिए था क्योंकि इसरो के पूर्व वैज्ञानिक को गलत कारावास, दुर्भावनापूर्ण अभियोजन और अपमान सहना पड़ा था। --आईएएनएस एसएस/आरजेएस

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