महराजगंज में बनेगा 'जटायु संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र'
महराजगंज में बनेगा 'जटायु संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र'

महराजगंज में बनेगा 'जटायु संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र'

महराजगंज, 25 जून (हि.स.)। जिले के फरेंदा तहसील के भारी-बैसी गांव में ‘जटायु संरक्षण और प्रजनन केंद्र’ की स्थापना को केंद्र सरकार ने स्वीकृति दे दी है। गोरखपुर वन प्रभाग में 05 हेक्टेयर में यह केन्द्र ‘किंग वल्चर’ स्थापित होगा। हरियाणा के पिंजौर में स्थापित ‘जटायु संरक्षण प्रजनन केंद्र’ की तर्ज पर स्थापित होने वाला यह संरक्षण केंद्र उत्तर प्रदेश का पहला वल्चर संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली सरकार ने इसके लिए 82 लाख रुपये का बजट स्वीकृति कर 10 दिन में प्रभागीय वन अधिकारी गोरखपुर अविनाश कुमार से विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट मांगी है। अनुमान के मुताबिक इस प्रोजेक्ट पर तकरीबन 04 से 05 करोड़ रुपये खर्च होना है। 20 सितंबर 2019 को गिद्ध संरक्षण पर कार्य कर रहे बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी के प्रधान वैज्ञानिक डा. विभू प्रकाश ने तत्कालीन मुख्य वन संरक्षक आर हेमंत कुमार, डीएफओ अविनाश कुमार के साथ भारी-वैसी गांव के निकट जंगल की 05 हेक्टेयर जमीन का निरीक्षण कर शासन को रिपोर्ट करते हुए संरक्षण केंद्र के लिए जमीन को उपयुक्त बताया था। इसके बाद प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) सुनील पाण्डेय ने कैम्पा योजना के अंतर्गत वित्त पोषण के लिए भेजा प्रस्ताव था। फिलहाल गोरखपुर में बनने वाला ‘जटायु संरक्षण और प्रजनन केंद्र’ बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) एवं वन्यजीव अनुसंधान संगठन के साथ मिल कर स्थापित होगा। शासन ने इसके लिए डीपीआर चार साल चरणबद्ध ढंग से स्थापित करने पर जोर दिया है। बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी और गोरखपुर वन प्रभाग मिल कर डीपीआर तैयार करेगा। मधवलिया रेंज में दिखे से 100 से अधिक गिद्ध महराजगंज वन प्रभाग के मधवलिया रेंज में अगस्त 100 से अधिक गिद्ध देखे गए थे। प्रदेश सरकार द्वारा स्थापित गो-सदन के निकट भी यह झुण्ड दिखा था। माना जा रहा है कि गो सदन में मृत निर्वासित पशुओं के झुंड ने इन्हें आकर्षित किया होगा। वन विभाग का कहना है कि वर्ष 2013-14 में गिद्धों की गणना की गई तो 13 जिलों में 900 के करीब गिद्ध मिले थे। वन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक बुन्देलखंड, नेपाल के तराई एवं पूर्वांचल की नदियों किनारे के जंगलों में इनका प्रवास है। इन्हें पिछले साल झांसी, ललितपुर, बांदा, चित्रकूट, इलाहाबाद, कौशाम्बी, श्रावस्ती, बहराइच, बलरामपुर, महराजगंज जिले में देखा गया। राप्ती, गंगा, सरयू, केन-बेतवा, माला एवं गोमती के किनारों के ऊंचे पेड़ों दिखे। भारतीय महाद्वीप पर गिद्धों की 09 प्रजातियां भारतीय महाद्वीप पर गिद्धों की 09 प्रजातियां पाई जाती हैं। 03 प्रजातियां व्हाइट बैक्ड (जिप्स बेंगेंसिस), लॉन्ग-बिल्ड (जिप्स इंडिकस) और सिलेंडर-बिल्ड (जिप्स टेनुइरोस्ट्रिस) भारतीय वन्य जीव अधिनियम की अनुसूची (1) के तहत संरक्षित हैं। लेकिन इस केंद्र में किंग वल्चर पर ही सर्वाधिक जोर दिया जाएगा। पर्यावरणविद माइक हरगोविंद पाण्डेय कहते हैं कि गिद्धों की मौत के पीछे डेक्लोफेनिक दवाओं का बढ़ता इस्तेमाल एक बड़ा कारण रहा। माइक एवं बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी के असद रहमानी ने केंद्र सरकार का ध्यान आकृष्ट करने के लिए ‘ब्रोकन विग्स-द वैनसिंग वल्चर’ फिल्म बनाई जिसके बाद 2015 में डेक्लोफेनिक दवाओं पर पूर्ण प्रतिबंध लगा। इधर, हेरिटेज फाउंडेशन से जुड़े और पर्यावरण विशेषज्ञ नरेंद्र मिश्र कहते हैं कि दीर्घायु गिद्ध पांच से छह साल की आयु में प्रजनन योग्य होते हैं। एक बार में सिर्फ एक से दो अण्डे देते हैं। यह शर्मिला पक्षी प्रवास या खानपान में खलल नहीं चाहता। पशुओं का सड़ा मांस इनका भोजन है लेकिन खाने के बाद ये अपने पंजे और चोंच धो डालते हैं, ताकि कोई संक्रमण न हो। इस सम्बन्ध में गोरखपुर के प्रभागीय वनाधिकारी अविनाश कुमार का कहना है कि ‘‘गिद्धों की संख्या और उनके प्राकृतिक आवास का मूल्यांकन किया जा चुका है। यह केंद्र ‘जटायु संरक्षण और प्रजनन केंद्र’, लुप्तप्राय गिद्धों की आबादी को बचाने और बढ़ाने की दिशा में काम करेगा। इस केंद्र में लैब, बाडा, चिकित्सकों का आवासीय काम्पलेक्स समेत अन्य सुविधाएं रहेंगी। केंद्र का संचालन बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी के जरिए किया जाएगा।’’ हिन्दुस्थान समाचार/आमोद/दीपक-hindusthansamachar.in

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