भारत के खिलाफ युद्ध की हिम्मत नहीं कर पाएगा चीन: डॉ. रावत
भारत के खिलाफ युद्ध की हिम्मत नहीं कर पाएगा चीन: डॉ. रावत

भारत के खिलाफ युद्ध की हिम्मत नहीं कर पाएगा चीन: डॉ. रावत

-प्रसिद्ध इतिहासकार ने डॉ. अजय रावत कहा, पूरी दुनिया के निशाने पर आने और अपनी नाराज जनता का ध्यान भटकाने की कोशिश कर रहा ड्रैगन नवीन जोशी नैनीताल, 23 जून (हि.स.)। भारत के प्राचीन इतिहास खासकर उत्तराखंड के सीमावर्ती देशों से ऐतिहासिक संबंधों के जानकार डॉ. अजय रावत का मानना है कि चीन, भारत के खिलाफ युद्ध की हिम्मत नहीं कर पाएगा। वह कोरोना के कारण विश्व भर के देशों के निशाने पर आ चुका है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग के अपने देश की जनता में छवि खराब होने के कारण ध्यान भटकाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि चीन के लोग फितरती तौर पर सैनिक नहीं होते। वे लड़ना नहीं चाहते हैं। भारतीय शक्ति के उपासक होते हैं तथा पुरातन काल से मानते हैं कि देश के लिए लड़कर शहीद होने से देवत्व की प्राप्ति होती है। उत्तराखंड सहित कई राज्यों के लोग स्वभाव से वीर सैनिक होते हैं। भारतीय सैनिकों ने 1962 के युद्ध में कपड़े के जूतों जैसी संसाधनविहीन स्थिति में भी 16 से 18 हजार फीट की ऊंचाई पर लड़कर चीन को पटखनी दी थी। आज भारतीय सेना विश्व की सर्वश्रेष्ठ सेना है। चीन चाहता तो वर्तमान में हाथापाई के हालातों में हथियारों से हमला कर सकता था पर उसका सर्वाधिक कारोबार भारत में है, इसलिए वह ऐसा करने की स्थिति में नहीं है। डॉ. रावत ने कहा कि शी जिनपिंग को चुनाव में हार का भय सता रहा है। इसलिए वे किसी भी अन्य तानाशाह की तरह अपनी जनता का ध्यान भटकाने के लिए भारत के सामने आ रहा है। प्रथम व द्वितीय विश्व युद्ध तथा पाकिस्तान द्वारा 1965 व 1971 में भारत के साथ किये गये युद्ध ऐसी ही स्थितियों में तत्कालीन तानाशाहों द्वारा ध्यान भटकाने की कोशिशों के तहत किये गये थे। उन्होंने साफ किया कि भारत से टकराव के पीछे भारत के चीन की तरह ही मजबूत होने व सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़क बनाने के कारण चीन में उपजा असुरक्षा का भाव भी है। उन्होंने कहा कि चीन से आये कोरोना विषाणु के कारण परेशान विश्व के देश चीन से अपने उद्योग हटाने की सोच रहे हैं। यदि ऐसा होगा तो चीन तबाह हो जाएगा। उसके साथ पाकिस्तान व नेपाल भी मुश्किल में आ जाएंगे। नेपाल का दावा आधारहीन: नेपाल के भारतीय क्षेत्र लिपुलेख, कालापानी व लिम्पियाधूरा आदि को अपने नक्शे में शामिल करने के दावे पर डॉ. रावत ने कहा कि नेपाल के दावे का कोई आधार नहीं है। वहां छठी सदी से भी पहले से भारतीय होने के सबूत हैं। 1962 तक इसी क्षेत्र के लिपुलेख पास से भारत व तिब्बत के बीच व्यापार होता था। नेपाल 17वीं सदी तक विभाजित था। सिगौली की संधि में भी यह क्षेत्र भारतीय रहा, जबकि क्षेत्र के भारतीय जनजाति के लोगों के टिंकर व एक अन्य गांव नेपाल को दे दिये गये थे। 1815 में अंग्रेजों के आने के साथ हुई सिगौली की संधि में तत्कालीन गढ़वाल को दो हिस्सों-परमार राजवंश की टिहरी रियासत और ब्रिटिश गढ़वाल में बांटा गया। ब्रिटिश गढ़वाल को कुमाऊं कमिश्नरी से जोड़ दिया गया, जिसे तब भारतीय ब्रिटिश कुमाऊं और अंग्रेज कुमाऊं प्रोविंस कहते थे। 1816 में ही कुमाऊं कमिश्नर का पद भी अस्तित्व में आ गया था और इसका मुख्यालय तब अल्मोडा होता था। 1839 में पहली बार ब्रिटिश कुमाऊं में दो जिले-अल्मोड़ा व ब्रिटिश गढ़वाल तथा 1891 में नैनीताल नाम से नये जिला बनाये गये। इसी वर्ष डीएम यानी जिला मजिस्ट्रेट का पद भी सृजित हुआ। इससे पहले सीनियर असिस्टेंट कमिश्नर के पास जिलों की जिम्मेदारी होती थी। इस बीच 1856 के पूर्वार्ध तक कुमाऊं कमिश्नरी का मुख्यालय अल्मोड़ा एवं इसी दौरान नैनीताल लाया गया। उन्होंने कहा कि नेपाल की यह हरकत भी केवल चीन की वजह से और भुखमरी की कगार पर पहुंचे पश्चिमी नेपाल की जनता का ध्यान हटाने की कोशिश मात्र है। हिन्दुस्थान समाचार-hindusthansamachar.in

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