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लाल किला के छत्ता बाजार में दुकानदारों का कोरोना से बुरा हाल

नई दिल्ली, 6 जुलाई आईएएनएस। लालकिला देश के लोगों के लिए ही नहीं, बल्कि विदेशी पर्यटकों के भी आकर्षण का विषय हमेशा से रहा है। हालांकि, कोरोना महामारी के कारण लाल किला बेहद लंबे वक्त के लिए बंद रहा, जिसके कारण लाल किला परिसर में मौजूद छत्ता बाजार के दुकानदारों पर इसका काफी प्रभाव पड़ा है। दरअसल शाहजहां ने लालकिले का निर्माण 1638 में करवाना शुरू किया था, करीब 10 साल की अथक मेहनत के बाद 1648 में लालकिला बनकर तैयार हुआ था। लाल किले से बाहर मुगल बेगमें व शहजादियां ना जाएं, इसीलिए पेशावर( अब पाकिस्तान में) की तर्ज पर छत्ता बाजार का निर्माण करवाया गया, जिसे बाजार-ए-मिशकाफ कहा जाता था। लाल किला के लाहौरी दरवाजे के अंदर पहुंचते ही यह बाजार मिलता है। इस बाजार में 40 से अधिक दुकानें है लेकिन कुछ लोगों ने एक दुकान को बदलकर उनमें दो दुकानें बनवा ली हैं। इन दुकानों पर हैंडीक्राफ्ट का सामान बिकता है, कोरोना महामारी पाबंदियों के चलते इंटरनेशनल फ्लाइट पर रोक है। जिसकी वजह से विदेशी इन सभी स्मारकों में घूमने नहीं आ पा रहें हैं। यही कारण है कि दुकानदारों के लिए अब ये परेशानी का सबब बन गया है। हालांकि इस बाजार की अब एसोसिएशन भी है जिसका नाम रेडफोर्ट बाजार शॉपकीपर एसोसिएशन है। एसोसिएशन के अध्यक्ष आसिम हुसैन की दुकान सन 1893 से है उनके परदादा को ब्रिटिश आर्मी द्वारा ये दुकान दी गई थीं। आसिम हुसैन ने आईएएनएस को बताया , हमारी दुकान सन 1893 से है। हमारे परदादा ने उस वक्त लंदन से फोटोग्राफी का कोर्स किया था, तो उन्हें ब्रिटिश आर्मी ने हॉनर में ये दुकान दी थी। हमारी 1904 में फर्म रजिस्टर्ड है। कोरोना महामारी का असर टूरिस्म पर सबसे ज्यादा पड़ा है। जो दुकानदार 100 फीसदी लाल किले के भरोसे ही रहते है, उनका बेहद बुरा हाल है। कुछ तो उधार लेकर या किसी से कर्जा लेकर अपनी जीविका चला रहे हैं। लाल किला बीते साल से अब तक काफी समय के लिए बंद रहा है। अब खुला भी तो विदेशी पर्यटक नहीं है। दिल्ली या आस पास का पर्यटक सिर्फ घूमने आता है कुछ खरीदारी नहीं करते हैं। आसिम के अनुसार, कुछ दुकानदारो ने मौजूदा हालात को देखते हुए कुछ और काम करने का सोच लिया है क्योंकि हालात कब सामान्य हो, किसी को नहीं पता है। दरअसल दुकानदारों ने महामारी के वक्त भी इन दुकानों का बिजली का किराया दिया, हालांकि दुकानों के किराए की बात करें तो किराया बेहद कम है। जानकारी के मुताबिक, 34 रुपए से लेकर करीब 1300 रुपए तक ही इन दुकानों का किराया है। इसके अलावा इन दुकानों में काम करने वाले लोग बेहद लंबे वक्त से यहां बैठते हैं। दुकानदारों के अनुसार, उन्हें हैंडी क्राफ्ट के काम का अनुभव है, हम इन्हें निकाल नहीं सकते वहीं कोई नया आएगा तो उसे सीखाना पड़ेगा। दरअसल छत्ता बाजार का तात्पर्य ढके हुए बाजार से है। छतनुमा बाजार का विचार शाहजहां को वर्ष 1646 में पेशावर शहर (अब पाकिस्तान में) देखने के बाद आया था। आसिम ने आगे बताया कि शाहजहां के बाद फिर ब्रिटिशर्स ने दुकानों को मिल्रिटी की दुकानें बना दी थी। उनके बाद ये मा*++++++++++++++++++++++++++++र्*ट एमसीडी के पास आ गई। ऐसे करते करते अब ये एएसआई के पास है। इस बाजार में एसोसिएशन के वाइस प्रेसिडेंट मनीष की भी पुश्तैनी दुकान है। महामारी के प्रभाव के कारण वह भी अब कहीं जॉब करने का सोच रहे हैं। मनीष आईएएनएस को बताते है, पिछले डेढ़ साल से लाल किला बंद है। हम लाल किले में हैंडी क्राफ्ट प्रोडक्ट ही बेच सकते हैं, जो कि पूरी तरह विदेशी पर्यटकों के ही भरोसे पर है। मनीष कहते हैं, छत्ता बाजार के दुकानदारों ने अब तक जो सेविंग बचाई थी, उसी के भरोसे अपनी जीविका चला रहे हैं। सरकार की तरफ से और एएसआई की तरफ से कोई प्रोत्साहन नहीं है। मौजुद वक्त में करीब 250 पर्यटक आते हैं, जिनका हमारे लिए कोई महत्व नहीं है। लाल किला खुला है तो हमें दुकानें भी खोलनी पड़ती है लेकिन काम नहीं है । इसके अलावा हमारे पास कुछ और काम भी नहीं है। हम सभी परिवारो के खर्चे पूरे हैं, लेकिन कमाई फिलहाल कुछ भी नहीं है। मेरी यहां पुश्तैनी दूकान है जिसे मेरे पिता संभाल रहे है। अब मैं और मेरा एक भाई और है। फिलहाल हम अब जॉब करने का सोच रहे हैं कि एक भाई दुकान पर बैठे और एक जॉब करे। हालांकि करीब 10 से 12 दुकानदारों की लाल किले से बाहर अन्य मा*++++++++++++++++++++++++++++र्*ट में भी दुकान है लेकिन अधिकतर दुकानदार अपनी इन्ही दुकानों के भरोसे है। इसके अलावा ये सभी दुकानदार किसी तीसरे व्यक्ति को दुकान नहीं बेच सकते, यदि ये दुकान किसी को दी जा सकती है तो वो इन्हें के परिवार के सदस्यों को, जिसकी भी एक प्रक्रिया है। --आईएएनएस एमएसके/आरजेएस

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