madras-high-court-dismisses-petition-against-amendment-in-aiadmk-constitution
madras-high-court-dismisses-petition-against-amendment-in-aiadmk-constitution

मद्रास हाईकोर्ट ने अन्नाद्रमुक संविधान में संशोधन के खिलाफ याचिका खारिज की

चेन्नई, 20 सितम्बर (आईएएनएस)। मद्रास उच्च न्यायालय (एचसी) ने सोमवार को अन्नाद्रमुक के संविधान में किए गए संशोधनों को स्वीकार करने के लिए चुनाव आयोग (ईसी) के खिलाफ दायर एक रिट याचिका को खारिज कर दिया। मद्रास हाईकोर्ट की दो-न्यायाधीशों की खंडपीठ में मुख्य न्यायाधीश संजीव बनर्जी और न्यायमूर्ति पी.डी. ऑडिकेसवालु ने थूथुकुडी के एडवोकेट बी. रामकुमार आदित्यन द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि वह 6 दिसंबर, 2000 को कोविलपट्टी में अपनी पूर्व महासचिव दिवंगत जे. जयललिता की उपस्थिति में अन्नाद्रमुक में शामिल हुए थे। उन्होंने कहा कि उन्होंने 2014 में पार्टी की सदस्यता का नवीनीकरण किया जो 2019 में समाप्त हो गया और इसे नवीकृत नहीं किया जा सका। पार्टी ने इसके नवीनीकरण के लिए कोई कदम नहीं उठाया। जयललिता की मृत्यु के बाद, अन्नाद्रमुक जनरल काउंसिल ने वी.के. शशिकला को जयललिता के करीबी सहयोगी के रूप में अंतरिम महासचिव नियुक्त किया था। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग उनकी नियुक्ति के साथ-साथ 29 दिसंबर, 2016 को हुई पार्टी की आम परिषद की बैठक में पारित प्रस्तावों को मंजूरी नहीं दे सका। आय से अधिक संपत्ति के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा शशिकला को दोषी ठहराए जाने और उन्हें जेल भेजने के बाद, उनके भतीजे टीटीवी दिनाकरण को उप महासचिव नियुक्त किया गया था, लेकिन पार्टी में गुटबाजी के कारण, चुनाव आयोग ने मार्च 2017 में अन्नाद्रमुक के दो पत्तों के चिन्ह को सील कर दिया। उन्होंने कहा कि 12 सितंबर, 2017 को हुई अन्नाद्रमुक जनरल काउंसिल की बैठक में 12 प्रस्ताव पारित किए गए थे, जिसमें से एक प्रस्ताव पार्टी के समन्वयक और संयुक्त समन्वयक के साथ शक्तिशाली महासचिव के पद को प्रतिस्थापित करना था। आदित्यन ने कहा कि अन्नाद्रमुक नेता ओ पनीरसेल्वम और एडप्पादी के पलानीस्वामी ने क्रमश: पार्टी समन्वयक और संयुक्त समन्वयक के रूप में पदभार ग्रहण किया और कहा कि अन्नाद्रमुक संविधान में इस बड़े बदलाव को रद्द करना होगा। पीठ ने याचिकाकर्ता के तर्क को मानने से इनकार कर दिया और कहा कि चुनाव आयोग की पार्टी के नियमों में संशोधन की स्वीकृति अनुचित नहीं लगती है। अदालत ने माना कि ऐसी स्वीकृति अधिकृत राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों से प्राप्त संचार के आधार पर की गई थी। कोर्ट ने यह भी घोषणा की कि चुनाव आयोग से हर पार्टी के आंतरिक मुद्दों में हस्तक्षेप करने और यह पता लगाने की उम्मीद नहीं की जाती है कि क्या उस पार्टी के नियमों और विनियमों का ईमानदारी से पालन किया गया था। मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा कि अगर याचिकाकर्ता को अभी भी कोई शिकायत है तो वह अन्नाद्रमुक के खिलाफ उचित उपाय के लिए सिविल कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है। --आईएएनएस एसकेके/आरजेएस

Related Stories

No stories found.
Raftaar | रफ्तार
raftaar.in