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निवेश के जरिए विदेश में बसने की ख्वाहिश रखने के मामले पर टॉप पर भारतीय रईस

- 2019 के मुकाबले 2020 में आई ज्यादा इनक्वायरी - भारत में ‘दोहरी नागरिकता’ की नहीं है इजाजत - दूसरे नंबर पर अमेरिकी, तीसरे पर पाकिस्तानी नई दिल्ली, 13 फरवरी (हि.स)। कोविड-19 महामारी के चलते बेशक लोगों का विदेश आना-जाना फिलहाल बंद हो गया है, लेकिन इससे भारतीय रईसों की विदेश जाकर खरीददारी करने और वहां रहने की इच्छाओं पर ब्रेक नहीं लगा है। यह जानकारी रेजिडेंस एंड सिटीजनशिप प्लानिंग पर काम करने वाली ग्लोबल फर्म हेनली एंड पार्टनर्स द्वारा जारी की गई है। जानकारी के मुताबिक महामारी वाले साल 2020 में भी रेज़ीडेंट बाई इन्वेस्टमेंट और सिटीज़नशिप बाई इन्वेस्टमेंट प्रोग्राम के लिए पूछताछ करने वालों में भारतीय रईस टॉप पर रहे। निवेश के जरिए विदेशी नागरिकता या रिहायश पाने में मदद करने वाली इस ग्लोबल एजेंसी ने बताया कि पिछले साल उसके पास 2019 से काफी ज्यादा इनक्वायरी आई। ये हालात तब हैं, जब भारत में ‘दोहरी नागरिकता’ की इजाजत नहीं है, इसलिए निवेश के जरिए नागरिकता पाने के मामले में काफी मुश्किलें पेश आती हैं। वेल्थ इंटेलीजेंस फर्म न्यू वर्ल्ड वेल्थ की तरफ से जारी ग्लोबल वेल्थ माइग्रेशन रिव्यू के मुताबिक विदेश में बसने वाले करोड़पतियों का दूसरा सबसे बड़ा तबका भारतीयों का है। लगभग 7,000 भारतीय रईसों ने 2019 में देश छोड़ा, जिससे पता चलता है कि उनका उत्साह कम नहीं हुआ है। कोविड-19 और राजनीतिक उथल-पुथल के बीच अमेरिका से इतनी ज्यादा इनक्वायरी आई कि वह 2019 में छठे नंबर के मुकाबले 2020 में दूसरे नंबर पर आ गया। तीसरे नंबर पर पाकिस्तान के रईस रहे जबकि दक्षिण अफ्रीका के रईस इस मामले में चौथे पायदान पर रहे। इस सूची में नाइजीरिया पांचवें नंबर पर रहा। हेनली एंड पार्टनर्स के डायरेक्टर और ग्लोबल साउथ एशिया टीम के हेड निर्भय हांडा कहते हैं, ‘उनके पास भारतीयों की तरफ से 2020 में 2019 के मुकाबले 62.6 पर्सेंट ज्यादा इनक्वायरी आई।’ निवेश के जरिए रिहाइश या नागरिकता वाली योजना के लिए भारी खर्च वहन करना पड़ता है लेकिन इससे रईसों की लग्ज़री लाइफस्टाइल के अलावा एसेट डायवर्सिफिकेशन का फायदा और यूरोपियन यूनियन जैसे स्पेशल एरिया में बेहतर एक्सेस भी मिलता है। हेनली एंड पार्टनर्स के मुताबिक भारतीयों की तरफ से निवेश के जरिए रिहायश और नागरिकता वाली योजना में जिन देशों के लिए सबसे ज्यादा इनक्वायरी आई, उनमें कनाडा, पुर्तगाल, ऑस्ट्रिया, माल्टा, टर्की टॉप पर रहे। अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया हमेशा से इंडियंस के पसंदीदा रहे हैं। हांडा के मुताबिक सबसे ज्यादा इनक्वायरी कनाडा और ऑस्ट्रेलिया के लिए आई लेकिन इस स्कीम के अंदर एप्लिकेशन के प्रोसेसिंग में ज्यादा वक्त और ज्यादा निवेश लगता है। अंतराष्ट्रीय फाइनेंस सेंटर्स, जैसे दुबई, हांगकांग और सिंगापुर में एनआरआई की बड़ी तादाद है। ये लोग स्थाई रिहायश या नागरिकता नहीं मिलने की सूरत में निवेश वाला ऑप्शन खुला रखते हैं। हिन्दुस्थान समाचार/कुसुम-hindusthansamachar.in

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