एकात्म मानव दर्शन परम्पराओ और जीवन का निचोड़ - अभय महाजन
एकात्म मानव दर्शन परम्पराओ और जीवन का निचोड़ - अभय महाजन

एकात्म मानव दर्शन परम्पराओ और जीवन का निचोड़ - अभय महाजन

चित्रकूट,19जून (हि. स.)। सांची बौद्ध विश्वविद्यालय द्वारा योग एवं आयुर्वेद विभाग के तत्वाधान में शुक्रवार को योग जीवन शैली कोरोना के साथ भी - कोरोना के बाद भी कार्यशाला के अंतर्गत "अपनों से अपनी बात" के विशेष व्याख्यान के रूप में "प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं परंपराएं" विषय पर ऐप के माध्यम से व्याख्यान आयोजित किया गया, जिसमें दीनदयाल शोध संस्थान के संगठन सचिव अभय महाजन का उद्बोधन विशेष रूप से रखा गया। इस दौरान विश्वविद्यालय के शोधार्थी छात्रों द्वारा प्रश्नोत्तरी के माध्यम से विचार विनिमय भी हुआ। विश्वविद्यालय के योग विभाग के अखिलेश कुमार एवं उपेंद्र बाबू खत्री द्वारा संयोजन करते हुए कोरोना काल में योग जीवन शैली और इस आयोजन की महत्वता से सभी को अवगत कराया। दीनदयाल शोध संस्थान के संगठन सचिव अभय महाजन ने अपने उद्बोधन में महारानी लक्ष्मी बाई का स्मरण किया व 2 दिन पहले लद्दाख में शहीद हुए 20 जवानों को नमन किया, जिन्होंने अपना बलिदान देकर भारत माता का वैभव बरकरार रखा। उन्होंने बताया कि हमारी प्राचीन मान्यता है कि जड़ चेतन सब में भगवान का अंश है व परंपरा इस बात का प्रतीक है, यहां तक कि आज वैज्ञानिक भी गॉड पार्टिकल की बात कर रहे है। विदेशी आक्रांताओं का आतंक हजारों वर्षों से होता आया जिन्होंने हमारी परंपरा व संस्कृति को तोड़ने व नष्ट करने का प्रयास किया, विदेशी आक्रांताओं ने हमारे चतुर्थ पुष्टाय अर्थात धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को तोड़ने व नष्ट करने का प्रयास किया। जिससे इसका क्रम बिगड़ता गया। सांस्कृतिक परंपराओं के नष्ट होने से पंचायत व्यवस्था में गिरावट आई, जिससे विवाद मुक्त गांवों में विवाद उत्पन्न हुए व वैज्ञानिक जीवन पद्धति में भी गड़बड़ी उत्पन्न हुई। प्राचीन मान्यता है कि हमारी औषधियों से प्रत्येक रोग निवारण संभव है इसी को ध्यान में रखते हुए श्रद्देय नानाजी देशमुख ने चित्रकूट में 500 से अधिक औषधीय पौधे उनके महत्व एवं बोटैनिकल नेम के साथ औषधि वाटिका की स्थापना की। पंडित दीनदयाल उपाध्याय का मानना था कि "एकात्म मानव दर्शन" वास्तव में हमारी हजारों वर्षों की परंपराओं व चिंतन का निचोड़ है। उन्हीं के विचारों को मूर्त रूप देने के लिए नानाजी ने दीनदयाल शोध संस्थान की स्थापना की और इसी उद्देश्य हेतु नानाजी ने समाज के अंतिम व्यक्ति के उत्थान हेतु समाजमूलक कार्य शुरू किए। नानाजी का मानना था कि जब तक व्यक्ति स्वावलंबी नहीं होगा वह तब तक स्वाभिमानी नहीं हो सकता। उन्होंने वर्तमान परिदृश्य पर कहा कि कोरोना काल में हम सभी को स्वच्छता की आदत अपनानी चाहिए, और मास्क एवं सैनिटाइजर का प्रयोग करते रहना चाहिए तथा अपनी प्राचीन भारतीय संस्कृति को अपनाना चाहिए। हम सबको आज महारानी लक्ष्मी बाई की पुण्यतिथि के उपलक्ष में यह संकल्प लेना चाहिए कि, हम किसी भी प्रकार के चाइनीस प्रोडक्ट का उपयोग नहीं करेंगे, केवल स्वदेशी सामान प्रयोग में लेंगे। योग के विषय में बताते हुए श्री महाजन ने कहा कि चित्रकूट में हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी योग केंद्र चले, जिनमें प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण हुआ, किंतु इस वर्ष कोरोना संकट को देखते हुए सबसे अनुरोध किया गया है कि योग दिवस में अपने ही घर पर रहकर योग करें व स्वस्थ रहें। इसके लिए हजारों की संख्या में पर्चे भी वितरित किए गए। शोधार्थी छात्र धनंजय के प्रश्न चाइनीज सामान का हम बहिष्कार तो करना चाहते हैं लेकिन किफायती दाम में उसका अल्टरनेट क्या हो सकता है, इसका जवाब देते हुए श्री महाजन ने कहा कि जहां देश की अस्मिता-अस्तित्व का प्रश्न आता है तो जल्द से जल्द उसका विकल्प ढूंढ कर उस ओर अग्रसर होना चाहिए।चाइनीज ऐप के कई स्वदेशी अल्टरनेट हमारे देश ने खोजे हैं, ऐसे ही हम हर क्षेत्र में स्वदेशी की ओर अग्रसर हो रहे हैं। योग एवं आयुर्वेद विभाग के अन्य शोधार्थी छात्र उमाशंकर कौशिक एवं लोकेश चौधरी का प्रश्न नानाजी के जो समाज मूलक कार्य हैं, उन कार्यों को समझने के लिए कोई लघु अवधि का प्रशिक्षण और साथ ही चित्रकूट की महिमा का भी दर्शन हो सके इस प्रकार की कोई व्यवस्था पर उत्तर देते हुए श्री महाजन ने कहा कि दीनदयाल शोध संस्थान के सारे कार्य समाज के लिए समर्पित हैं, और संस्थान के जो सफल प्रयोग है, वह देश दुनिया के लिए अनुकरणीय बनें। आप लोग भी शैक्षणिक टूर के रूप में यहां आकर सब देख समझ सकते हैं। उन्होंने चित्रकूट की महिमा पर कहा कि चित्रकूट त्याग की भूमि है, आज देश दुनिया में कुर्सी के लिए-सत्ता के लिए कितना संघर्ष हो रहा है, सब एक दूसरे के खून तक के प्यासे हैं। लेकिन यहां राम जी और भरत जी के सत्ता त्याग का कण कण साक्षी है। ऐसा अनुपम उदाहरण दुनिया में कहीं नहीं है, चित्रकूट ऐसी धरती है जहां सारी दुनिया को मार्ग मिल सकता है। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर श्रद्धेय नानाजी देशमुख ने भगवान राम नहीं मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के ऐसे प्रसंग जो समाज के लिए प्रेरणादाई है उनको चित्र और डायोनुमा पेंटिंग के माध्यम से "रामदर्शन" में चित्रित किया है। आप सब आए और उसको देखें समझें। आयोजन के अंत में आभार व्यक्त करते हुए सांची बौद्ध विश्वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक डॉ श्याम गणपति ने कहा कि हम सब स्वदेशी की प्रेरणा को अपने जीवन में आत्मसात करने का संकल्प भी लेंगे और एक बार चित्रकूट आकर नानाजी के समाज मूलक कार्यों को भी देखने का प्रयास करेंगे। हिन्दुस्थान समाचार/रतन/मोहित-hindusthansamachar.in

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