एक महात्मा किसी नगर के बाहर रहा करते थे। उनका एक अनन्य भक्त श्रद्धापूर्वक प्रतिदिन उनके पास आता था और उनकी सेवा सुश्रूषा बड़े ही प्रेमपूर्वक करता था। उसकी श्रद्धा और सेवा से महात्माजी अत्यधिक प्रसन्न हो गए और उससे बोले- तू ईश्वर का भक्त है, तू साधु-संतों का सत्संग क्लिक »-ananttvlive.com