उज्जैन (Ujjain), भारत के महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक है। मध्य प्रदेश राज्य में स्थित यह शहर क्षिप्रा नदी के तट पर बसा है, जिसे कालीदास की नगरी के नाम से भी पुकारा जाता है। 12 ज्योतिर्लिंगों में एक महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग इसी शहर में है। इसी कारण उज्जैन को महाकाल की भूमि भी कहा जाता है। उज्जैन से ही कर्क रेखा गुजरती है। अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण इसे कालगणना का केन्द्र-बिंदु कहा जाता है। उज्जैन से प्रकाशित होने वाले पंचांगों को आज भी सबसे विश्वसनीय माना जाता है। साथ ही इसे नाभिप्रदेश अथवा मणिपुर चक्र का केन्द्र भी माना गया है। पर्यटन के लिहाज से देखा जाए तो उज्जैन में धार्मिक स्थानों के अतिरिक्त ऐतिहासिक जगहें भी हैं। अधिक धार्मिक स्थलों होने की वजह से इस शहर को बनारस, गया और काशी के समान ही महत्व दिया जाता है। हर 12 साल में यहाँ प्रसिद्ध कुंभ मेला लगता है। उज्जैन के मुख्य पर्यटक स्थल (Tourist Places of Ujjain) हैं महाकालेश्वर मंदिर, जंतर-मंतर, कालीदास अकादमी आदि। उज्जैन में स्थित वेधशाला यानि जंतर-मंतर में कई ऐसे यंत्र भी लगे हैं जिनका प्रयोग आज भी किया जाता है।
उज्जैन से पर्यटक रुद्राक्ष, चन्दन की माला आदि किफायती दामों पर खरीद सकते हैं। उज्जैन हैंडीक्राफ्ट आइटम्स के लिए भी प्रसिद्ध है। उज्जैन में मध्यप्रदेश की प्रसिद्ध साड़ियां और महिलाओं के अन्य परिधान भी खरीदे जा सकते हैं।
उज्जैन का वर्णन वेद-पुराणों में भी मिलता है। स्कंद पुराण में स्पष्ट रूप से उज्जैन का वर्णन किया गया है। कई जगह इसे "उज्जयिनी" के नाम से भी वर्णित किया गया है। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण विद्या प्राप्ति के लिए उज्जैन ही आए थे, यहीं उनका गुरुकुल था। उज्जैन से महान सम्राट बिन्दुसार, विक्रमादित्य तथा कालिदास का भी संबंध रहा है। विक्रमादित्य के दरबार के नवरत्नों में से एक महान कवि कालिदास ने अपनी रचना "मेघदूत" में उज्जैन की सुन्दरता का वर्णन किया है।
उज्जैन के प्राप्त ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार छठवीं शताब्दी तक उज्जैन अवंति जनपद की राजधानी थी। इसके बाद मौर्य शासनकाल के समय उज्जैन को अवंति जनपद का मुख्यालय बनाया गया। मौर्य शासनकाल के दौरान उज्जैन का काफी विकास हुआ। महान सम्राट बिन्दूसार ने अपने पुत्र अशोक को उज्जैन का राज्यपाल बनाया। इसी स्थान पर अशोक के पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा का जन्म हुआ जिन्होंने कालांतर में विभिन्न प्रदेशों में जाकर बौद्ध धर्म का प्रचार किया था।
इसके बाद उज्जैन पर महान सम्राट विक्रमादित्य ने राज किया जिनके नाम पर हिन्दू कैलेंडर में "विक्रम संवत" की शुरुआत हुई। सन 1235 ई. में दिल्ली के मुगल शासक शमशुद्दीन इल्तमिश ने उज्जैन पर कूच किया। इस दौरान न केवल उज्जैन को बुरी तरह लूटा गया अपितु यहां स्थित प्राचीन प्राचीन मंदिरों एवं पवित्र धार्मिक स्थानों को भी नष्ट किया गया। इसके बाद यहां लंबे समय तक मुगल शासकों का शासन रहा। इसी दौरान राजा जय सिंह ने उज्जैन के प्रसिद्ध जंतर-मंतर का निर्माण कराया था।
18वीं शताब्दी के शुरुआती वर्षों में में उज्जैन पर सिंधिया वंश ने शासन किया। इसके बाद उज्जैन पर अधिकार पाने के लिए सिंधिया और होलकर राजघराने के बीच युद्ध हुआ। आजादी के बाद उज्जैन मध्य भारत का एक हिस्सा बन गया। 1956 में उज्जैन मध्य प्रदेश राज्य का हिस्सा बन गया।
यह एक ऐसा कला पर्व है जिसमें देश-विदेश के कई कलाकार अपनी प्रतिभा के रंग दिखाते हैं। प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन से यह त्यौहार मनाया जाता है।
प्रत्येक 12 सालों में एक बार मनाया जाने वाला कुंभ मेला उज्जैन की शान है। इस दौरान यहां लाखों श्रद्धालु स्नान करने के लिए आते हैं।
उज्जैन जाने के लिए सबसे निकटतम हवाई अड्डा (Nearest Airport to Ujjain), इंदौर का देवी अहिल्याबाई होल्कर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा (Devi Ahilya Bai Holkar International Airport) है जो उज्जैन से लगभग 60 किमी की दूरी पर स्थित है।
रेल के माध्यम से उज्जैन पहुंचना सबसे आसान माना जाता है। शहर में स्थित उज्जैन रेलवे जंक्शन के लिए देश के प्रमुख शहरों से ट्रेन पकड़ी जा सकती हैं।
देश के प्रमुख शहरों से उज्जैन सड़क परिवहन द्वारा जुड़ा हुआ है। टैक्सी या बस के माध्यम से यहां पहुंचना बेहद आसान और सुगम है। नेशनल हाइवे संख्या 3 और 79 से उज्जैन बेहद करीब है। देश के विभिन्न राज्यों से इन सड़कों का प्रयोग कर उज्जैन पहुंचा जा सकता है।
अक्टूबर से मार्च के महीने का समय उज्जैन घूमने के लिए सबसे बेहतर माना जाता है। इस दौरान मध्य भारत में पड़ने वाली गर्मी भी नहीं होती है। फरवरी के महीने में आने वाले महाशिवरात्रि पर्व का भी इसी दौरान आनंद लिया जा सकता है।