"फतेहपुर सीकरी" का शानदार प्राचीन शहर, कभी मुग़ल साम्राज्य की अस्थायी राजधानी रह चुका है। महलों, सार्वजनिक भवनों, मस्जिदों, कब्रों, मीना बाजार, दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास व कई अन्य भव्य इमारतों वाला यह शहर, मुग़लकाल में एक प्रसिद्ध नगर था। फतेहपुर सीकरी मुग़ल स्थापत्य वैभव के बेहतरीन उदाहरणों में से एक है।
मुगल सम्राट अकबर के सहिष्णु धार्मिक विचार व साहित्य, वास्तुकला और ललित कला में रुचि के कारण फतेहपुर सीकरी, हिंदू और मुस्लिम वास्तुकला के बेजोड़ संगम में बना एक अद्भभुत शहर है। फतेहपुर सीकरी के महल मुग़लों की शानो-शौकत के बचे हुए कुछ अंश हैं। फतेहपुर सीकरी शहर में महलों के अलावा यहां स्थित रंग-बिरंगा बाजार, सलीम चिश्ती की दरगाह और सीकरी गांव भी दर्शनीय है।
खराब पानी की व्यवस्था होने के कारण यह शहर सदियों पहले बंजर हो गया था। फिर अजीबो-गरीब परिस्थितियों के कारण यह सुनसान होता चला गया जिसके बाद इसे भूतिया शहर व अभिशप्त नगरी के नाम से पुकारा जाने लगा। लगभग 400 सालों से यह शहर आबाद नहीं हुआ है। यहां दीवान-ए-आम के पास पुरातत्व स्थल संग्रहालय स्थित है जहां मुग़ल ज़माने की कई प्राचीन वस्तुएं संग्रहित कर रखी गई हैं।
16वीं सदी में बना फतेहपुर सीकरी का यह शहर, "महान मुग़ल सम्राट जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर" ने 26 साल की उम्र में बनवाया था। इतिहास के मुताबिक सीकरी नामक शहर में शेख सलीम चिश्ती की दरगाह है जहां अकबर अपने लिए औलाद की मन्नत मांगने गया था। अपनी मन्नत पूरी होने की खुशी में अकबर ने इस शहर को अपनी नई राजधानी बना लिया और इसका नाम रखा फतेहपुर सीकरी यानि जीत का शहर। 10 सालों तक मुग़लों की रही इस राजधानी को अकबर द्वारा 1569 और 1585 ईस्वी के बीच बसाया गया था। 1585 में अफगान के राजाओं से लड़ने के लिए अकबर ने अपनी राजधानी लाहौर में स्थानांतरित कर ली।
फतेहपुर सीकरी के बुलंद दरवाज़े पर कई घोड़ों की नालें लगी हुई हैं। ऐसा माना जाता था कि जब कोई घोड़ा बीमार होता था तो यहां आकर मन्नत मांगने से घोड़ा स्वस्थ हो जाता था। घोड़े के ठीक हो जाने पर घोड़े के मालिक द्वारा आभार प्रकट करने के लिए घोड़े की नाल लगाई जाती थी।
लोकल और विदेशी यात्रियों के लिए यहां अलग-अलग एंट्री फीस है।
गर्मियों के मौसम में जाने से बचें।
पहचान पत्र धारक लोकल गाइड्स ही चुनें।
सूर्योदय से सूर्यास्त तक यह किला हफ्ते के सभी दिन खुला रहता है।
यहां स्थित संग्रहालय में सुबह के नौ से शाम के पांच बजे तक जा सकते हैं।
संग्रहालय में प्रवेश हेतु कोई शुल्क नहीं।